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इंसान का जीवन, इंसान की नियति, इंसान फिर तमाम! मिट

इंसान का जीवन, इंसान की नियति, इंसान फिर तमाम!
मिट्टी के खिलौने, मिट्टी का घरौंदा, फिर मिट्टी में विश्राम!

ओढ़ के रुआब, जागते ले ख्वाब, ख्वाहिश बेहिसाब, 
बेवजह ठसक, बेवजह कसक, अंततः हे राम !

दौड़ के लूटा, लुटा इस दौर में, हम सब हैं लुटेरे, 
दौलत भी की जमा, फिर इश्क भी जमा,पर खो गया आराम !

इतनी थी फुटानी, इतने थे हम ज्ञानी,इतना ही था रुतबा, 
इधर गिरा चरित्र, छूट गये मित्र,तो हो गये बे- दाम !
---------------------------------------  तनु थदानी

©tanu thadani
  #कविता #गज़ल #तनुथदानी