White वक्त ले कर गुजरा था गुबार जहां से, वही पे चीथड़े मिले है प्यार के। कुछ नामों के पहले अक्षर गुदे हुए है, लम्हों पे। कुछ किस्सों के आखरी शब्द चमक रहे हैं, उस लहू पे तैड़ते हुए जिनमे बहता था इश्क कभी। वही पे एक खाली लिफाफा लिए ढूंढ रहा हूं,खत। जिसपे बेतरतीब फैले आशुओं की जुबान और मेरी खामोशी की जुगलबंदी में, बने थे अनगिनत गीत। जिन्हे तुम याद रखती थी, गुनगुनाती थी सखियों के सामने। क्या आज भी जमीन पे गिरता है, मेरी याद का मोती और रात होते होते हो जाता है दरख़्त। शायद यूं ही होता होगा। ©निर्भय निरपुरिया #Emotional_Shayari कर्म गोरखपुरिया