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तीव्र तमस की वेदी से जिस पल मैं था टकरा गया कालकोठ

तीव्र तमस की वेदी से जिस पल मैं था टकरा गया
कालकोठरी सम मन में तब घनघोर अंधेरा छा गया

तम के इस वीराने में अस्तित्व स्वप्न का टूट पड़ा
मरुस्थलीय हृदय में तब करुणा का अंकुर फूट पड़ा

निर्जन से हृदयाकाश में चिंगारी सी दमक उठी
ना जाने कैसे ज्वाला बिजली सी चमक उठी

अंततोगत्वा स्वप्न है ये कैसे ये सब स्वीकार करूँ
कैसे आखिर मैं सर्प को रस्सी समाकार करूँ

फिर से मन मंदिर में से पीड़ा की उबाल उठी
कंठ रूँध देने को फिर से तम की दीवार उठी

तीव्र तमस की वेदी से फिर इक बार टकरा गया
फिर कालकोठरी सम मन में घनघोर अंधेरा छा गया

©Dilip Singh gajal 

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तीव्र तमस की वेदी से जिस पल मैं था टकरा गया
कालकोठरी सम मन में तब घनघोर अंधेरा छा गया

तम के इस वीराने में अस्तित्व स्वप्न का टूट पड़ा
मरुस्थलीय हृदय में तब करुणा का अंकुर फूट पड़ा

निर्जन से हृदयाकाश में चिंगारी सी दमक उठी
ना जाने कैसे ज्वाला बिजली सी चमक उठी

अंततोगत्वा स्वप्न है ये कैसे ये सब स्वीकार करूँ
कैसे आखिर मैं सर्प को रस्सी समाकार करूँ

फिर से मन मंदिर में से पीड़ा की उबाल उठी
कंठ रूँध देने को फिर से तम की दीवार उठी

तीव्र तमस की वेदी से फिर इक बार टकरा गया
फिर कालकोठरी सम मन में घनघोर अंधेरा छा गया

©Dilip Singh gajal 

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