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इक तरन्नुम में पिरो रखी है ज़िंदगी, तुम साज़ दो कभ

इक तरन्नुम में पिरो रखी है ज़िंदगी,
तुम साज़ दो कभी, तो ग़ज़ल सुनाएं,

राहों में चल रहे हैं तन्हा कबसे,
तुम साथ दो कभी, तो ग़ज़ल सुनाएं,

ख़ामोशियों में गहरा कर रहे हैं उम्र भर,
मुस्करा कर शोर करो कभी, तो ग़ज़ल सुनाएं,

यूँ तो भीगे बारिशों में हैं कई दफ़ा,
अश्कों की हो घटा कभी, तो ग़ज़ल सुनाएं

यूँ तो रखा है कितनों को करीब करके दिल के,
सच में हो दिल्लगी कभी, तो ग़ज़ल सुनाएं,

खो गया वजूद इस कदर हमारा कहीं कब से,
खुद से हो मुलाकात कभी, तो ग़ज़ल सुनाएं

©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...! 
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