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ऐसे हालात में ‘संतोष’ बहुत मुमकिन है भूल इक रोज़ स

ऐसे हालात में ‘संतोष’ बहुत मुमकिन है
भूल इक रोज़ समन्दर को किनारा जाए

Santosh Khirwadkar

©साहित्य संजीवनी
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