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इमरोज अब्र पर वो सुर्ख़ नहीं हर रोज अंधेरे से गुज़

इमरोज अब्र पर वो सुर्ख़ नहीं
हर रोज अंधेरे से गुज़र रहा हूं 
चले आओगे कभी तो एक बार 
ख़ुद को तसल्ली दिये जा रहा हूं
कभी एक रोज़ अकेला चलता था
हर रोज़ अकेला फ़िर चल रहा हूं 
मैं बे - मग़ज बे-गैरत सा जो 
तिश्ना- ए- मोहब्बत से मर रहा हूं

©rj_vishwa
  Tishna e mohabbat
#mohabbat
rjvishwa7751

rj_vishwa

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Tishna e mohabbat #mohabbat

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