ऐ मालिक कितने इम्तिहान लोगे तुम खुद ही चक्रव्यू से निकाल दोगे तुम चल रहा हूँ लेकिन ठहरा हुआ हूँ कब मेरे पंखो को उड़ान दोगे तुम ये कैसे चौराहे पर मैं आकर खड़ा हूँ विश्वास है मुझको इक रास्ता दोगे तुम कैसे गुमनाम सा ये शहर हुआ मेरा इन सूनी सड़को पर बाजार दोगे तुम दुनिया अगर देगी तो दिलासा देगी जिंदगी में जिंदगी हर बार दोगे तुम मुझे यू बिगाड़ कर बना कर रख दो जैसे धूप से जलते को छांव दोगे तुम मैं चला हूँ बिना रोशनी ही सफर पर खबर है मुझको चाँदनी रात दोगे तुम उलझ उलझकर मैं सुलझता रहा हूँ एक दिन इस रस्सी को बाँध दोगे तुम -भKत ©Vikas Bhakt #mylife #Nojoto #thought #poem #Poetry #Poet #vikasbhakt