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हुनर तनहाई पर उसने, इस कदर आजमाया था मेरे साथ तमाम

हुनर तनहाई पर उसने, इस कदर आजमाया था
मेरे साथ तमाम उम्र चला, वो सिर्फ मेरा साया था

सूखे पत्तो को अलग कर दिया नए की ख्वाइशों में
बाकी फर्ज उन्हों ने तो, बिछड़ने तक  निभाया था

उन आंखों की नमी बहोत,गहरी सी दिखाई देती थी
उन आंखों से हमने इसलिए, काजल भी चुराया था

अकेला मुझे आते देख,दोस्त मेरा तो उदास हो गया
पता न था उसे बाहों में, छुपाके बचपन,में लाया था

उसकी खुशियों को खातिर, था बहोत कुछ जाने दिया,
और "साहील" वो समझा की, मुझे अपनेदम हराया था

©Vijay Gohel Saahil
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