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चार वक्त जख्म, दो वक्त प्यार महबूब सनम ना हुए, टू

 चार वक्त जख्म, दो वक्त प्यार
महबूब सनम ना हुए, टूटा ऐतबार।
एक फूल था खिला, वो भी गया मुरझा
माली सीचता रहा, वो ना खिला एक बार।
सावन आए, आया पतझड़, टूटी टहनी
चोट लगी, मरहम लगा, खिले फूल हजार।

©Ravi Kant
  फूल और माली

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Ravi Kant

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