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शान्ति (दोहे) शोर सराबा कर रहे, हुई शांति है भंग।

शान्ति (दोहे)

शोर सराबा कर रहे, हुई शांति है भंग।
मन भी अब बेचैन है, करते भी वे तंग।।

शांति चित्त में हो नहीं, करते तभी विलाप।
दर-दर भटके वो फिरे, तन का बढ़ता ताप।।

लगन लगी है काम की, मिलता है पैगाम।
हो पूरा जब वो कभी, मिले शान्ति फिर नाम।।

धड़कन में जब राम हों, सुख का फिर विस्तार।
शांति हृदय को भी मिले, जीवन का ये सार।।

भवन कलह जब भी मिटा, मिला शान्ति का दान।
रचना की तब हो उपज, जैसे हो वरदान।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit 
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शान्ति (दोहे)

शोर सराबा कर रहे, हुई शांति है भंग।
मन भी अब बेचैन है, करते भी वे तंग।।

शांति चित्त में हो नहीं, करते तभी विलाप।
deveshdixit4847

Devesh Dixit

New Creator

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