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क्या हस्ती हमारी,बस सहारा उसी का ये आँखे उसी की,नज़

क्या हस्ती हमारी,बस सहारा उसी का
ये आँखे उसी की,नज़ारा उसी का

क्या शिकायत उससे जब वो ही है दाता
ये ज़ा उसी की,अब इशारा उसी का

मैं कब तक उन्हें कमरे में सजाता
हवाएं उसी की,गुब्बारा उसी का

क्यूँ मैं ये सोचूँ क्या खोया क्या पाया
हर नफ़ा उसी का,हर ख़सारा उसी का

हम पहुँचे भी तो किस जगह को पहुँचे
वो छोर उसी का,ये किनारा उसी का

©क्षत्रियंकेश गुब्बारा!
क्या हस्ती हमारी,बस सहारा उसी का
ये आँखे उसी की,नज़ारा उसी का

क्या शिकायत उससे जब वो ही है दाता
ये ज़ा उसी की,अब इशारा उसी का

मैं कब तक उन्हें कमरे में सजाता
हवाएं उसी की,गुब्बारा उसी का

क्यूँ मैं ये सोचूँ क्या खोया क्या पाया
हर नफ़ा उसी का,हर ख़सारा उसी का

हम पहुँचे भी तो किस जगह को पहुँचे
वो छोर उसी का,ये किनारा उसी का

©क्षत्रियंकेश गुब्बारा!
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