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"सर्द रात" अकेले गुजरता नहीं ये सर्द रातों का साया

"सर्द रात"
अकेले गुजरता नहीं ये सर्द रातों का साया मुझसे
अब तुम्हें करीब मेरे आना होगा
आना होगा इतने करीब की 
सुन सको दिल-ए-दास्ता दिल का
सांसों का गुस्ताखियां सुन सको
और साथ ही सुन सको 
मेरे जेहन की तन्हाई को
मन में उठते हलचल को
बेबस धड़कन की आवाज को
बिस्तर में लेते अंगड़ाई को 
ठिठुरते बदन की दास्तान को
बहकते जिस्म का खामोशी सुन सको
और ये चांद तारे किसी के जागीर नहीं
जुगनूओ से कमरा चमकाना होगा
अकेले गुजरता नहीं ये सर्द रातों का साया मुझसे
अब तुम्हे मेरे और करीब आना होगा।

©Akhilesh Dhurve
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