तुझ पे हमदर्दी दिखाई मैंने, तूने मुझे कसूरवार ठहराया, मैंने ज़रा तुझे अपनापन दिखाया, तुम ने मुझे चरित्रहीन बताया। वाह रे पुरुष तेरी कैसी माया, स्त्री के लिए न धूप, न छाया, बस अपना राग अलापते रहो, न माने तो हर बार इल्ज़ाम लगाया। पैरों की जूती समझते आये हो, बस मनमर्ज़ी करते आये हो, बेइज्ज़त कर दिया स्त्री सम्मान को, आँख का पानी किसे दिखाये वो। ज़्यादा हितैषी तुम बने फिरते हो, बताओ तुमने सब सही ही किया हो, क्या तुम भगवान् से भी ऊपर हो, कि हर बार प्रमाण की ही जरूरत हो। पछतावा भी हो गया हो तो क्या, आज नहीं तो कल फिर दोहराओगे, आदत है जो तुम्हारी पैदाइश से, तो क्या माफी माँगने से छूट जाओगे। ज़िन्दगी का हर पल ज़रूरी है जैसे, स्त्री पुरुष का साथ ज़रूरी है वैसे, जब तक लांछन लगाओगे एक दूसरे पर, क्या ज़िन्दगी काट पाओगे उम्र भर। आयु कितनी भी हो जाये, जीवन चक्र तो चलते ही जाना है, क्यों न फिर हँसी खुशी जीवन बितायें, आखिर साथ तो ताउम्र निभाना है। Thanks for poking me sis Ek paheli तुझ पे हमदर्दी दिखाई मैंने, तूने मुझे कसूरवार ठहराया, मैंने ज़रा तुझे अपनापन दिखाया, तुम ने मुझे चरित्रहीन बताया। वाह रे पुरुष तेरी कैसी माया,