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गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश

मैं पेशे से लेखा एवम वित्त प्रबंधक हूँ। अल्पभाषी होने के कारण शब्द लिखना शुरू से ही पसंद रहा, जो आगे चलकर रचनाओं में बदलने लगे। रचनाओं को लिखने के शास्त्रीय तरीक़े नहीं आते मुझे। मैं बस अपने मन के भाव जो कह नही पाता, लिखकर व्यक्त करता हूँ। मेरी रचनाएँ मेरी जिंदगी के दर्पण नहीं वरन समाज में जो मैं देखता हूँ महसूस करता हूँ उसकी प्रतिक्रिया होती है। गिरीश

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गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश

मेरा जिक्र हो और

मेरा जिक्र हो और #poem

57 Views

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गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश

तिथि - 14.02.2020
दिवस - शुक्रवार
विषय - कोरोना
विधा - घनाक्षरी

मत कर मनमानी,
    तू कम कर नादानी,
        पड़ेगी भारी शैतानी,
            बात मान लीजिए।।

कोई नही देगा पानी,
    राजा हो वो चाहे रानी,
        रह जायेगी वीरानी,
            सच जान लीजिए।।

हो गया गर कोरोना
    होगा जीवन भर रोना
        जागो अब नहीं सोना,
            गांठ बांध लीजिये।।

जीवों से यूँ प्रेम करो
    सब शाकाहारी बनो,
        नया जग मिल गढ़ो,
            याद रख लीजिये।।

गजेंद्र द्विवेदी गिरीश
भिलाई 3 (छ ग)
M#7000858588 कोरोना

कोरोना #poem

9 Love

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गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश

#इस_वैलेंटाइन_बस_यही_निवेदन-

केवल शरीर का आकर्षण ही तो  प्रेम नहीं होता है,
अपनत्व का सिर्फ प्रदर्शन ही तो प्रेम नहीं होता है।
यहाँ बसे हैं मानव संग कोई देव पशु और दानव-
हर जगह पे व्यर्थ समर्पण ही तो प्रेम नहीं होता है।१।

मन का भेद कहे ना फिर तो, कोई कैसे जाने,
दिल में किसके क्या बसा वो, कोई कैसे जाने।
खुलकर आयेगा समक्ष जब, तब तो बात बनेगी-
परदे में सब रहा छिपा तो, कोई कैसे जाने।२।

सूख गया जो प्रेम तो फिर, जीवन कैसे संभव्,
डूब गया जो प्रेम तो फिर, जीवन कैसे संभव।
हररस से जब भीगेगा तो मन खुश भी हो जाए-
ऊब गया जो प्रेम तो फिर, जीवन कैसे संभव।३।

हाथ बढाकर सबके दिल तक हमतुम पहुँच बनाए,
सूरज सा विश्वास जमे फिर, ऐसी अलख जगाएं।
प्रेम तभी सम्पूर्ण बनेगा है सबके दिल का कहना-
आओ मिलकर हम परस्पर, ऐसी समझ बढायें।४।

जीवन में सम्मान तभी, जब जब प्रेम मिला हो,
जीवन कलरव गान तभी, जब जब प्रेम खिला हो।
मिथ्या वह जीवन है जिसमें रंग अलग से दिखते-
जीवन में नव जान तभी, जब जब प्रेम सिला हो।५।

#गजेन्द्र_द्विवेदी_गिरीश
भिलाई 3 (C.G.)
M#70008 58588 वैलेंटाइन
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गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश

मुस्कुराओ हरदम 
खिले गुलाब की तरह
बने रहो हरदम
मेरी खुशियों की वजह
मांगता हूं यही दुआ
जब जब भी तेरे ख्याल ने दिल छुआ।

HAPPY ROSE DAY DOST
गिरीश दोस्त

दोस्त #poem

11 Love

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गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश

+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
*चित्रगुप्त साहित्य समिति – वार्षिकोत्सव
*दिनांक 09.02.2020 समय १ बजे से शाम ६ बजे तक
*स्थान – सरयुपारीण ब्राह्मण समाज भवन, स्मृतिनगर, भिलाई (छ.ग.)*
*प्रथम सत्र*
परिचर्चा *विषय – वर्तमान सामाजिक परिवेश में साहित्य का दायित्व*
मुख्य वक्ता 			आचार्य महेशचंद्र शर्मा वरिष्ठ भाषाविद और साहित्यकार
विशिष्ट वक्ता			श्री मोहन चतुर्वेदी वरिष्ठ साहित्यकार
		 		           श्री विनोद मिश्र पत्रकार, समाजसेवी और साहित्यकार
समिति के प्रतिनिधि वक्ता 	श्री गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश

तत्पश्चात *प्रथम चित्रगुप्त सम्मान २०२० आदरणीय श्री मोहन चतुर्वेदी को सम्मानित किया जाएगा! 
*द्वितीय सत्र*
गजल लेखन पर प्रारंभिक और आवश्यक जानकारियों तथा सावधानियों पर *डॉ साकेत रंजन प्रवीर* के द्वारा कार्यशाला का आयोजन!
*तृतीय सत्र*
उपस्थित रचनाकारों द्वारा रचनापाठ!
*चतुर्थ सत्र*
चित्रगुप्त समिति के संस्कृति विभाग *चित्रगुप्त संगीत समिति* का गठन तथा उपस्थित कलाकारों द्वारा सुगम संगीत गायन! 
*सञ्चालन/ 
प्रथम एवं द्वितीय सत्र 	– डॉ साकेत रंजन प्रवीर
तृतीय सत्र		- श्री गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश
चतुर्थ सत्र		- श्री मुकेश भटनागर आवाज

	अंत में आभार प्रदर्शन कर कार्यक्रम की समापन, रात्रि भोजन और विदाई
*प्रतीक्षारत – मुकेश भटनागर “आवाज” अध्यक्ष एवं समस्त चित्रगुप्त साहित्य समिति 
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ आमंत्रण

आमंत्रण #poem

10 Love

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गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश

ओस भले ढंक लें
भौतिक दृश्य
पर मन के भाव
तो मन से देखे जाते हैं।

मैं तो देख पाता हूँ
और तुम।।

शुभ दिन।
गिरीश पोएम

पोएम #poem

8 Love

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गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश

सत्रहवीं वर्षगाँठ पर मन के भाव
#होगा!!
तेरे बारे में कुछ भी लिखूं तो कम होगा!
बस यही कि बिछड़ा कभी तो गम होगा!!

मुझे नहीं रही चाह सूरज की कभी दोस्त,
तेरा साथ है तो मुझसे दूर सदा तम होगा!

जमाने तेरे ढकोसलों की नहीं करते परवाह,
जुदा जो कर सके हमें वो केवल यम होगा!

रंजिशों से भरी दुनिया, हाथों में तेरा हाथ,
जो भी सोचता हो वो हर निगाह नम होगा!

बनाया है खुदा ने एक दूजे के वास्ते हमें,
देखकर शैतान का भी निकलता दम होगा! 

बजते हैं बरतन अकसर आस पास रहें तो,
टूटने की बात भी यारों मन का भ्रम होगा!

दो जिस्म भले हों पर एक जान है दोनों,
जब कहे गिरीश मैं, तो मतलब हम होगा!   

३१.०१.२०२० love

15 Love

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गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश

आज कुछ अलग भाव 
#रो_लेता_हूँ

दर्द आँखों में छुपाकर रो लेता हूँ!
कसक होठों में दबाकर रो लेता हूँ!1!

तेरी गलियों को मुड़े भूले से ना कभी,
पैरों में जंजीरें चढ़ाकर रो लेता हूँ!2!

धडकनों को नहीं इजाजत नाम लें,
जज्बात दरिया में बहाकर रो लेता हूँ!3!

अजनबीपन दिखाता हूँ हर जिक्र पर,
नाम तेरा यूँ मैं बचाकर रो लेता हूँ!4!

कोई ये ना कहे कि कैसी है समझ,
थोड़ी नासमझी दिखाकर रो लेता हूँ!5!

करने लगा हूँ मै संगत दरवेशों की,
दिल से एहसास हटाकर रो लेता हूँ!6!

बहुत भागें तेरे इशारों को सच मान,
जिस्म वीरानों में नचाकर रो लेता हूँ!7!

कहीं दिखे ना सुरत औ सीरत तेरी,
इश्क तेरा लहू में बसाकर रो लेता हूँ!8!

बचने की उम्मीद गिरीश की नहीं बाकी,
कफ़न को चादर सा बनाकर रो लेता हूँ!9! गजल
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गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश

#मैं_खुश_हूं_बहुत।। #लक्ष्मी

मैं खुश हूं बहुत,
जो आज तुमने हटा लिया,
अपने चेहरे से वो,
मासूमियत और स्नेह का नकाब,
दिखा दी अपनी असलियत।
फिर मुझपर कर दिया,
अपने पुरुषत्व का प्रदर्शन।

चलो इसी बहाने,
तुम कुछ देर भले खुश हो जाओगे।
पर मुझे तो जन्म भर के लिए,
तुमसे छुटकारा मिला।।

तो क्या हुआ
जो तुम्हारी क्रूरता का दंश,
जीवन भर मेरे चेहरे पर रहेगा,
मैं उसे हँसकर झेल जाऊंगी।
पर मीठी बातों की छुरी जो तुम चलाते,
उम्रभर धोखा करते,
उसे शायद मैं पता चलने पर,
बर्दाश्त नही कर पाती।।

मन से एक बोझ सा,
जैसे हट से गया हो अभी अभी।
अब तन्मयता से अपना लक्ष्य तयकर
बढ़ चलूंगी आगे इस आग से।
पर तुम वहीं बंधे रह जाओगे,
मुझे भुला भी न पाओगे।।

यही तुम्हारी सजा है।
तुम भुगतो, मैं तो चैन से सो पाऊंगी अब।।
#ISTANDWITHLAKSHMIAGARWAL
लक्ष्मी पर हुए अमानवीय घटना के बाद भी उसकी जाति जिंदगी पर 
सवाल करने वालों तुम्हारे लिए यही दुआ है कि तुम्हारे घर कभी बेटी ना पैदा हो।।

#गिरीश
09.01.2020 #लक्ष्मी
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गजेन्द्र द्विवेदी गिरीश

*मौन_नहीं_सार्थक_प्रतिकार*
हर मोड़ पर,
हम नर ही नहीं,
वरन कुछ नारियाँ भी,
तुम्हारे खिलाफ पाल रही हैं।
मन मे अनगिनत असंतोष,
अकल्पनीय सोच।।
जो किसी एकाकी क्षण में,
तुम्हारे अहित का,
बन जाती है कारण, अकारण ही।।
और तुम फिर एक बार
असहाय शिकार सी, उनके जाल में फंस 
लूटी छली जाती हो, प्रताड़ित होती हो।
इनका केवल एक ही हल है,
कि अब तुम्हे देखना नहीं है राह,
ताकना नही है किसी और की ओर,
कि वो संग आएंगे,
तब ही तुम सुरक्षित रहोगी।।
तोड़ दो मन मे पनपते,
इन व्यर्थ विचारों को।
सँग रहो, पर अपना अलग वजूद बनाओ।
मौके के आने के पहले ही रहो तैयार,
छोड़ दो अब करना ज्यादा मनुहार,
सुरक्षा को उठा लो हथियार
और कर जाओ संहार,
अपने सँग करने ना दो,
किसी को भी अमर्यादित व्यवहार।।
सदा रहो चौकन्ने, 
अपने आसपास में होती घटनाओं से।।

*प्रियंका*
*विनम्रश्रद्धांजलि*
*गिरीश 29.11.2019* पो

पो #poem

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