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himkarshyam3414
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Himkar Shyam

Writer। Blogger।

http://himkarshyam.blogspot.com/

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Himkar Shyam

अनकहे लफ़्ज़ों को तुम समझो ज़रा
दर्द   की   हम  तर्जुमानी  क्या  करें

©Himkar Shyam #शायरी

शायरी

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Himkar Shyam

लोग रखते गुमान क्या, मत कह
वो न समझेंगे माजरा, मत कह

जानता  है न  हश्र  क्या होगा
पर इसे पैंतरा नया, मत कह

किसके  हक़ में है  फ़ैसला उसका
कोई खुल कर न बोलता, मत कह

उसकी नीयत न साफ लगती है
देखता सिर्फ़ फ़ाएदा, मत कह

हर तरफ़ बे-हयाई का मंजर
कुछ नहीं है ढका छुपा, मत कह

मीठी बातों से सबको लूट लिया
कितना शातिर है रहनुमा, मत कह

कोई सुनता नहीं  किसी की अब
कहने से फ़ाएदा है क्या, मत कह

दौरे हाज़िर का यह तकाज़ा है
झूठ क्या और सच है क्या, मत कह

मुल्क अपना बदल रहा 'हिमकर'
है यक़ीं या मुग़ालता, मत कह

©Himkar Shyam #shayri#gazal
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Himkar Shyam

एक के बाद एक
फँसते जा रहे हैं हम
समस्याओं के,
दुर्भेद चक्रव्यूह में

चाहते हैं,
चक्रव्यूह से बाहर निकल,
मुक्त हो जाएँ हम भी
रोज प्रत्यंचा चढ़ जाती है,
लक्ष्य बेधन के लिए
लेकिन असमर्थताएँ
परास्त कर जाती हैं
हर तरफ से।

शायद-
हो गये हैं हम भी,
अभिमन्यु की तरह।
काश,
इससे निकलने का भेद भी
बतला ही दिया होता
अर्जुन ने ।

©Himkar Shyam #चक्रव्यूह #कविता
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Himkar Shyam

Happy Holi  जोगीरा सारा रारारा...!!! 

चरचा में है कांड वसूली, अघाड़ी परेशान।।
परमबीर के लेटर बम से, सियासी घमासान।
जोगीरा सारा रारारा...!!!
रवींदर सा दिक्खे नरेंदर, बदला जब से वेश।
सत्याग्रह भी ट्रेंड हुआ है, भौचक बंगलादेश।।
जोगीरा सारा रारारा...!!!
एक रात में कटा प्लास्टर, खुली ढोल की पोल।
वैरी जन ट्विटर पर कहते, दीदी का सब झोल।।
जोगीरा सारा रारारा...!!!
एलजी के हाथों में पावर,  सत्ता की तकरार।
नाराज़ केजरी माँग रहे, वापस दो अधिकार।।
जोगीरा सारा रारारा...!!!
हुई सदन में धक्का-मुक्की, जम जूतम पैजार।
नेताओं की गुंडागर्दी, शर्मनाक व्यवहार।।
जोगीरा सारा रारारा...!!!
तेल गैस सब उछल रहा है, बढ़े दाम दिन-रात।
राष्ट्रप्रेम में भूल गए सब, महंगाई की बात।।
जोगीरा सारा रारारा...!!!
बैंक बिकेगा, भेल बिकेगा, और बिकेगा रेल।
प्रश्न करेगा कोई जब तो, पहुँचा देंगे जेल।।
जोगीरा सारा रारारा...!!!
खूँटा गाड़े टिकैत बैठा, हल के बिना किसान।
मुँह फेरे शासक है बैठा, अड़ियल है परधान।।
जोगीरा सारा रारारा...!!!
कीचड़ पर ही भिनके माखी , खिले कमल का फूल।
मुकुल- शुभेंदु भगवाधारी, बिखर गया तृण मूल।।
जोगीरा सारा रारारा...!!!
संघ भवन से चलती देखो, कॉरपोरेट सरकार।
जोर लगाता पप्पू लेकिन, खिसक रहा आधार।।
जोगीरा सारा रारारा...!!!

©Himkar Shyam #holi2021
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Himkar Shyam

पाँवों  में  काँटा  चुभता  है
लेकिन चलना तो पड़ता है
 
मोल नहीं  है सच का  कोई
पर खोटा सिक्का चलता है
 
सपने सारे  बिखरे जब से
दिल चुपके चुपके रोता है
 
आया है पतझड़ का मौसम 
शाखों  से  पत्ता   झड़ता  है
 
कोई  नग़मा फिर छेड़ो  तुम
कुछ सुनने को मन करता है
 
साँसों का चलना है जीवन
पल भर  का  रिश्ता नाता है
 
आफ़त सर पर रहती 'हिमकर'
हँस कर हर दुःख  सह लेता है

©Himkar Shyam #ग़ज़ल#शायरी
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Himkar Shyam

जब भी अपनी कविताओं में
बाँधना चाहता हूँ
शब्द।
एक चेहरा बार-बार
अपने भीतर
उतरता हुआ महसूस
होता है,
ठीक वैसा ही आकार लेता हुआ
जैसे कि तुम- ?
चुपके से आकर मेरे कानों में
कहती हो-
किसे बाँधना चाहते हो
अपनी कविताओं में-
खुद को,  मुझे या दर्द को ?

©Himkar Shyam #विश्व_कविता_दिवस
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Himkar Shyam

निराकार-साकार शिव, शिव में नहीं विकार।
सृष्टि और संहार शिव, शिव ही पालनहार।।

बाघ छाल का वस्त्र है, ग्रीवा में मुंडमाल।
बसे हलाहल कंठ में, सोम सुशोभित भाल।।

डमरू शिव के हाथ में, बहे शीश से गंग।
अंगराग शव भस्म है, लिपटा गले भुजंग।।

बाम भाग में पार्वती, बैठे नन्दी द्वार।
अविनाशी नटराज हैं, नश्वर सब संसार।।

शिव देवों के देव हैं, शिव सर्वशक्तिमान।
नीति धर्म के मूल हैं, करते जग कल्याण।।

ॐ कार के जाप से, मिटे कलुष अज्ञान।
बम बम भोले बोलिए, धरिए शिव का ध्यान।।

-Himkar Shyam- #Shiva #nojato
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Himkar Shyam

नाम  शोहरत गुमान लेता है
वक़्त सब छीन छान लेता है

कैसा करने लगा है वो धँधा 
तीर देकर कमान लेता है

उससे कुछ भी छुपा नहीं रहता
बात दिल की भी जान लेता है

आदमी है उसूल का पक्का
सबसे लड़ने की ठान लेता है

कौन देता गवाहियाँ हक़ में
कौन सच्चा बयान लेता है

जिसके चर्चे हैं बेवफ़ाई के
वह मेरा इम्तिहान लेता है

तेज़ जब हो बहाव पानी का
जद में कच्चे मकान लेता है

जब भी आता है क़हर क़ुदरत का 
कितनी किस्तों में जान लेता है

साथ जाती नहीं वहाँ दौलत
क्या कभी कुछ मसान लेता है

-Himkar Shyam- #gazal
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Himkar Shyam

भला क्या, बुरा क्या नहीं वास्ता कुछ
समझ में न आता ज़माना नया कुछ 

अजब कश्मकश में फँसी ज़िंदगानी
कोई तो दिखाये हमें रास्ता कुछ 

शिकायत यही है मुझे आदिलों से 
मेरे हक़ में करते नहीं फ़ैसला कुछ 

हुए ज़ख़्म जाहिर नहीं कुछ छुपा है 
मेरे दर्द की अब करो तुम दवा कुछ 

यक़ीं क्या करें हम सियासी जुबाँ का 
कहाँ मुफ़लिसों का हुआ है भला कुछ 

मुक़द्दर के आगे है इंसान बेबस 
नहीं ज़ोर इसपे किसी का चला कुछ 

अगर हाँ कहो तो मैं सबकुछ लुटा दूँ 
न माँगा है रब से तुम्हारे सिवा कुछ 

ज़माना है कैसा ज़रा सोच 'हिमकर'
किसी का किसी से नहीं राब्ता कुछ 

-Himkar Shyam #gazal #ग़ज़ल
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Himkar Shyam

वायु, जल और यह धरा, हुए प्रदूषण ग्रस्त।  
जीना दूभर हो गया,  हर प्राणी है त्रस्त।।
नष्ट हो रही संपदा, दोहन है भरपूर।
विलासिता की चाह ने, किया प्रकृति से दूर।।  

-हिमकर श्याम- #WorldEnvironmentDay
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