चौकसी सरहद पे उसकी भी जरूरी है,
घर बैठे ही हो रही हर ख्वाहिश पूरी है।
उसके भी हाथ राह तकते है किसी की,
कलाई में राखी की मनसा उसकी अधूरी है।
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उसकी जुल्फों की छांव में सोए थे क्या,
समुंदर सी उसकी आंखो में खोए थे क्या।
क्या माजरा है आंखो सुर्ख लाल हैं तुम्हारी
सच बताओ उस बेवफा के लिए रोए थे क्या ?
ये दस्तूर है, कहीं खुशी तो कहीं गम है,
पलट के देख तो सही हंसने वालों की भी आंखे नम है,
सब कुछ तो किसी को भी हासिल नहीं, #Poet#Dil#poem#Talk#nojotonews#baghi#dilbechara