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drnidhisrivastav9850
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DrNidhi Srivastava

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DrNidhi Srivastava

White मैं क्या मेरा वजूद क्या,
मेरी आस्था मेरा विश्वास तू।
दर्द के रेत में भी,
स्नेह की बहती नदी तू।
घने कोहरे में,
आस की मद्धम रोशनी तू।
तेरे अंक से लिपटकर,
मिल जाये एक ऊर्जा नयी ।
जिन्दगी भर शांत नदी सी,
बहती ही रही।
तेरे भीतर दुनिया कोई,
साथ चलती रही।
नींद नहीं तेरे आँखों में,
पर छोटे छोटे सपनें कई।
रिश्तो के धागों से बुनकर,
घर आँगन को सजाई तू।
हम लय गति से भटकें जब,
तब तब मादल होती तू।
मेरा सारा जीवन तेरे नाम।
तुझ पर ही मेरा सब कुर्बान।

©DrNidhi Srivastava #mothers_day
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DrNidhi Srivastava

White “मिटने को फिर एक बार”

कितनी बार शुरू करूं वहीं से,
दूर पहुंच जाती हूं कई बार,
फिर करनी ही पड़ती है,
एक नई शुरुआत हर बार,
जैसे मिली हूं पहली बार।
क्यूं बिखर जाऊं मैं,
सोचकर लौट जाती हूं,
तिनका तिनका जोड़ने,
फिर वहीं पहुंच जाती हूं,
जुड़ने को फिर एक बार।
सोचती हूं बस हर बार,
नहीं लौटूंगी इस बार,
दूर और दूर निकल जाऊंगी,
सबसे ओझल हो जाऊंगी,
नहीं मनाऊंगी इस बार।
मगर चली आती हूं बार बार,
अंतर्मन के अंतर्द्वद्व के साथ,
नई ऊर्जा व विश्वास के साथ,
फिर वही सृजन की चाह लिए,
मिटने को फिर एक बार।
© डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद”…

©DrNidhi Srivastava
  #akshaya_tritiya_2024
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DrNidhi Srivastava

White “अलसाती सुबह”

देखो मुख मंजीर में ढाकें,
मतवाली, मदिरगामिनी,
धूप की चादर को तानें ,
है खड़ी अलसाती सुबह|

आंखों में कुछ रंग निशा के,
स्वप्न लिये उमंग जीवन के,
मधु मकरंद भर साँसों में ,
खो गई मनमोहिनी सुबह|

है दुबकती जा रही वह अकिंचन,
निष्प्राण , निष्पाप सी लाजवन्ती, 
नव सुरभि के साथ मलय में ,
भोर के गीत गुनगुनाती सुबह||

…डा० निधि श्रीवास्तव "सरोद"…

©DrNidhi Srivastava
  #City
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DrNidhi Srivastava

जब आना तो ले आना
पारिजात अंजुरी भर 
प्रतीक्षा करती रहूंगी 
तुम्हारी मैं उम्र भर
कुछ गूंथना कुछ बिखेर देना
उद्वेलित हो स्पृहा अचल
मन तरंगित हर प्रहर 
मन में अनुराग खिला देना

©DrNidhi Srivastava
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DrNidhi Srivastava

“एक दोस्त ही काफी है “

जीवन के इस आपा धापी में
रंग बदलते रिश्ते में
कड़वे तीखे दौर में
एक दोस्त ही काफी है।
कंधे पर रख हाथ
पकड़ ले हाथ में हाथ
और बोले बिन
सब समझ जाए
बस एक दोस्त ही काफी है।
जीवन की इस आपा धापी में।
© डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद”

©DrNidhi Srivastava
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DrNidhi Srivastava

वो खिड़की से झांकते उमर हो गई।
एक हवा का झोंका भी तिश्नगी बन गई।

©DrNidhi Srivastava
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DrNidhi Srivastava

बंद मुट्ठी से निकलते रेत के घरौंदे,
अपनी अपनी उदासियों को ले।

कहां छुपाएं ये मन की सिसकियां,
भूले बिसरे गीतों से ये प्रीत के मनके।

खुशबुओं का अंबार बिखरा हुआ,
मन का रीतापन भी सिमटा हुआ।

तोड़ लाएं हम कहां से वो तारे,
सपनों को जो जगमगा दें कभी।

दूर हैं हम सभी हंगामों से,
तिनका तिनका समेटे हुए।

आंखों से नूर जो टपका जाए,
रोक लेते हैं हम मुस्कुराते हुए।

©DrNidhi Srivastava रेत के घरौंदे 

#waiting

रेत के घरौंदे #waiting #कविता

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DrNidhi Srivastava

 कुंदन सा दमक रहा नभ,
देख धरा मन दीप जलाती।
इस छोर से उस छोर तक,
पुलक से भर भर जाती।
जैसे हो बेल पल्लवित,
कुसुमित नव अंकुरों से,
हुई निहाल नवयौवना सी।
है सृजन को अभिलाषी,
नभ देखो नवपौरुष सा।
प्यासी अकुलाती सकुचाती,
सुवर्ण किरणों से ताप मिटाती।
शत शत नव जीवन को
आशीषों से भर देती।
कुंदन सा दमक रहा नभ
देख धरा मन दीप जलाती।

©DrNidhi Srivastava
  धरा-नभ #प्रकृति_प्रेम
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DrNidhi Srivastava

अभी टूटने दो मुझको,
अभी आह भरने दो,
ये रेत सा बंजर मन,
कभी तो नम होने दो।
© डा ० निधि श्रीवास्तव "सरोद"

©DrNidhi Srivastava #Texture
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DrNidhi Srivastava

गर्म चाय के बहाने,
नर्म स्वप्न सजाए हैं।
कि वो बिना बताए ही,
रूह में उतर आए है।।
© डा० निधि श्रीवास्तव "सरोद"

©DrNidhi Srivastava #teaLovers
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