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drnidhisrivastav9850
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DrNidhi Srivastava

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DrNidhi Srivastava

White क्यों लिखूं मैं तुमको?

क्यों लिखूं मैं तुमको,
जब हर लफ्ज़ में बस तुम ही हो?
हर साज़ की धुन में,
हर गीत की गुनगुनाहट में,
बस तुम्हारी ही सरगम बहती हो।

क्यों उकेरूं शब्दों में तुमको,
जब चाँदनी की चादर में तुम्हारा ही रूप झलके?
जब हवा की हर सरसराहट,
तेरी साँसों सी गुनगुनाए,
और सावन की बूंदें तेरा ही स्पर्श बन जाएं।

क्यों लिखूं मैं तुमको,
जब मेरी हर धड़कन तेरा नाम पुकारे?
जब मेरे ख्वाबों की हर गली,
तेरी यादों से गुलज़ार हो?
जब मेरे मन का हर कोना,
तेरे प्रेम का ही संसार हो?

मैं क्या कहूं,
क्या लिखूं,
जब मेरी हर भावना में,
सिर्फ़ "तुम" ही बसे हो…
©®डा० निधि श्रीवास्तव "सरोद "

©DrNidhi Srivastava _#quotes
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DrNidhi Srivastava

प्रेम नित अनादि, नित अनंत, शाश्वत उजास है,
काल की सीमाएँ जहाँ मौन, वहाँ इसका वास है।

यह स्वरित वीणा की रागिनि, अनुगूँज युगों-युगों की,
चंद्रिका की शीतलता संग, धरा की माधुरी सजीवों की।

यह वह सुवास जो फूलों में चिरकाल महकती है,
यह वह नीर जो निर्झरिणी संग अनवरत बहती है।

न मिटे, न रुके, न कभी क्षीण हो,
विरह में भी स्नेह समान, यह अनमोल हो।

यह जीवन का मधुर गीत, यह आत्मा का आलाप,
जन्मों-जन्मों की स्मृतियों में, प्रेम रहे अपरंपार, अपार

©DrNidhi Srivastava #Poetry  #हिंदी_कविता #हिंदी_साहित्य #poetrycollection
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DrNidhi Srivastava

a-person-standing-on-a-beach-at-sunset कितना कठिन है ,
अपनी कहानी लिखना,
कठोर थके हुए कलम से,
आंखों का पानी लिखना।
बोझिल मन को मंजिल तक,
बेमन के पहुंचाना,
कितना कठिन है,
जीवन सार समझाना।
सत्य और मिथ्या से,
गूंथे इस जीवन माला को
अपनी ही परछाई से लड़ते
सहजता से अपनाना।
कितना कठिन है
सपनों के समंदर में,
हकीकत का जहाज चलाना।
कभी आशा की लहरें उठती ,
तो कभी निराशा डुबाती ।
हर मोड़ पर प्रश्न खड़े,
कितना कठिन है,
इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढना

©DrNidhi Srivastava #SunSet
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DrNidhi Srivastava

White “चांद तन्हा ही रहा”

चांद तन्हा ही रहा,
सफर करता रहा।
मंजिल मिली नहीं कभी,
फिर भी चलता ही रहा।
चांद तन्हा ही रहा।

सूरज से मिली जलन,
कभी दिखाता नहीं।
अपने शीतल किरन,
जग को देता ही रहा।
चांद तन्हा ही रहा।

टूट कर जब सिमटने लगा,
खुद को बिखरने से रोकने लगा।
अमावस से निकल आंसुओं को मिटा,
पूनम की छटा बिखेरने लगा।
चांद तन्हा ही रहा।।
©® डा०निधि श्रीवास्तव “सरोद”

©DrNidhi Srivastava #good_night #chaand #hindi shayri
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DrNidhi Srivastava

“पलाश”
मैं निहार रही हूं तुम्हें,
मुग्ध हूं, तुम्हारे विराट सौन्दर्य पर,
हे पलाश! क्या तुम से सुंदर कोई हो सकता है?
तुम्हारे पत्ते हवा में झूम रहे हैं,
मानों खुशी से नाच रहे हैं।

तुम्हारी जड़ों की ताकत,
अनमोल है इस धरा पर,
हे पलाश! क्या तुमसे ताकतवर कोई हो सकता है
बिन सुगंध ही जीवन को महका रहे है
मानों सबको उड़ना सीखा रहे है।

उलझनें ज़िन्दगी की है कितनी,
ठहर कर पल भर देख लूं तुमको
हे पलाश! क्या जी भर कोई देख सकता है
जड़ से पुष्प तक समर्पित हो रहे हैं
मानों स्वयं में समाहित हो रहे हैं।

©DrNidhi Srivastava
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DrNidhi Srivastava

यूं ही नही गिरती वृक्षों से,
ये शुष्क पीली पत्तियां।
वर्षों की हरितिमा छुपाए मन में,
ये कमजोर पत्तियां।
प्रात की ओस लिए,
भोर की आस लिए,
दिनमान को समेटे,
असंख्य रश्मियों में लिपटी,
नए कोंपल को जगह देती,
ये उदार पत्तियां।
यूं ही नहीं बिखरती बेलों से,
ये शुष्क पीली पत्तियां।
थीं कभी शान वटों की,
थिरकती थीं संग बसंत के,
करती थीं मनुहार बादलों से,
सावन में बरसने को,
अनगिनत स्वप्न सजाती,
ये तरुणायी में पत्तियां।
यूं ही नहीं टूट जाती अपनों से,
ये उदास पत्तियां।
यूं ही नही गिरती वृक्षों से,
ये शुष्क पीली पत्तियां।

©DrNidhi Srivastava #Poetry #poetrycollection #fyp #foryoupage #HindiPoem
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DrNidhi Srivastava

White खुल के हंसे जमाना बीत गया।
आइना देख शर्माना बीत गया।
वो कहते है कि आता नही हमें कुछ,
क्या करे वो अल्हड़ ज़माना बीत गया।
© डा० निधि श्रीवास्तव "सरोद"

©DrNidhi Srivastava #Sad_Status
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DrNidhi Srivastava

White पलकों पर रुका है सागर जो ,
उसे आज उमड़ जाने दो.
कि इस ज्वार को रोको नही ,
उसे आज मचल जाने दो .
ये जो लहरें बावरी सी हो ,
मचल रही गगन से मिलने को .
कि आज इन लहरों को ,
गगन से मिल जाने दो. 
भावनाओं  की दरिया को ,
आज बह जाने दो .
कि मन तरंगो को रोको नही ,
उसे आज उन्मुक्त हो जाने दो .
…डा ०निधि श्रीवास्तव  ' सरोद '…

©DrNidhi Srivastava
  #sad_shayari
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DrNidhi Srivastava

White “मन के चट्टानों से”

मन के चट्टानों से,
भावों का यूं टकराना।
रह – रह कर,
तह दर तह पर जाना।
धार समय की यूं देखो,
कैसे उमड़ उमड़ कर जाना।
मन के चट्टानों से ,
भावों का यूं टकराना।
कुछ टूटे – टूटे बिखरे – बिखरे,
ख्वाबों का सिहर – सिहर जाना।
मन के चट्टानों से,
भावों का यूं टकराना।
विस्मृत बातों का आलिंगन कर,
नीर नयन से बरसा जाना।
मन के चट्टानों से,
भावों का यूं टकराना।
सरल श्याम सी उर्मि का,
यूं उदधि से मिलने जाना।
मन के चट्टानों से,
भावों का यूं टकराना।
बिखरे बिखरे श्वांसो का,
निःशब्द संवाद करते जाना।
मन के चट्टानों से,
भावों का यूं टकराना।
रह – रह कर,
तह दर तह पर जाना।

© डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद”…

©DrNidhi Srivastava
  #where_is_my_train
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DrNidhi Srivastava

 पूरी आभा आज मनोरम,
उड़ने दो बस बावरा मन ,
शीतल मधुर  समीर सरल ,
तन घुलता जाये रस नवल ,
दमक रही है चाँदनी धवल,
खिल रहा मन का कमल,
न जाने कितने शत दल,
हो रहे आज देखो मगन।
...निधि...

©DrNidhi Srivastava
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