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ankitapradhan5497
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Ankita Pradhan

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Ankita Pradhan

बड़ी शिद्दत से सुनता है वो मुझे,जब मैं खामोश रहती हूँ।
पोछता है आंसू मेरे,अक्सर जब कभी जमाने के संग मुस्कुराती हूँ।
यूँ ही नहीं मैं उसे अपनी डायरी बुलाती हूँ..।

©Ankita Pradhan #diaryoflife
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Ankita Pradhan

इश्क तो हमने भी किया था..,
पर मुकम्मल वो हुआ नहीं। 
बड़ी शिद्द्त् से उसे चाहा था, 
मगर मसला यहाँ सुलझा नहीं।
बात सिर्फ इतनी है जनाब..,
चाय सा इश्क उससे हुआ नहीं।

©Ankita Pradhan
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Ankita Pradhan

होती है सताइश मेरी महफिलों में,
दे देते हैं लोग थोड़ी बहुत दाद भी।
उन्हें क्या पता तू शामिल है मेरी तख़य्युलों में,
लिख देती हूँ तेरी छोटी से छोटी बात भी...।

©Ankita Pradhan सताइश-प्रशंसा।
तख़य्युल-कल्पना। 

#WallPot

सताइश-प्रशंसा। तख़य्युल-कल्पना। #WallPot

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Ankita Pradhan

गुनगुनी धूप अपने नर्म हाथों से हर सुबह जगाएगी,
बरसात में बारिश की बूंदें खुल के अपना राग सुनाएंगी,
खुशीयां, हवा के झोंकों संग शाम सवेरे दस्तक देंगी,
चिड़िया जहां चहचहाने को ना कभी हिचकिचाएगी,
हां...ठीक ऐसा ही आशियाना एक दिन अंकिता बनाएगी..।

©Ankita Pradhan #dreamhouse 
#lightindark
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Ankita Pradhan

चलते चलते कलम मेरी रुक जाती है,
नाम गर कहीं तेरा आ जाता है।
अच्छी खासी रफ्तार से चल रही होती है जिंदगी,
जिक्र तेरा जैसे स्पीड ब्रेकर बन जाता है।

©Ankita Pradhan #emptystreets
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Ankita Pradhan

शामें मेरी अधूरी हैं तेरे बिन,
अधूरा मेरा हर दिन।
कौशिशें लाख की,कि छुट जाए तलब तेरी,
मगर हाल मेरा यूं हुआ,
जैसे त‌ड़पती है मछली जल बिन।

©Ankita Pradhan #addictionoftea
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Ankita Pradhan

मैं कतरा-ए- शबनम,
तू ठहरा समंदर, 
तू अखबारों की शान,
मैं मुज्म़र सी शायर,
मैं खाक का जर्रा,
तू चमकता गौहर..।

©Ankita Pradhan #worldpostday
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Ankita Pradhan

गिरती हूं, संभलती हूं,
खुद ही खुद का सहारा मैं बनती हूँ।
अकेले में रोकर, महफ़िलों में मुस्कुराती हूँ।
अंदाजे बयाँ कुछ यूं रखती हूँ,
जुबां को नहीं....,
किल्क को हथियार बनाती हूँ।
हां..,कुछ इस कदर कभी कभी,
अंकिता से अरविता तक का सफर तय कर जाती हूँ।

©Ankita Pradhan #steps
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Ankita Pradhan

DEAR DIARY..

कैसे कहूं तेरा-मेरा क्या रिश्ता है।
कोई पूछता है भला..सांसों का जिंदगी से क्या वाबस्ता है?

©Ankita Pradhan #Books
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Ankita Pradhan

मुसव्विर हूँ मैं भी एक तर्ज़ की,
जज्बातों को अल्फाजों का रूप देती हूँ।
कुछ तसव्वुर भरी हिकायतें,
कुछ जीस्त भरे नगमें लिखती हूँ।
कागज और किल्क हैँ हम-नफ़स मेरे,
जमाने के शोर से गाफिल रहती हूँ।
मुसव्विर हूँ मैं भी एक तर्ज़ की,
जज्बातों को अल्फाजों का रूप देती हूँ।
महरूम हूँ आज भी एक अच्छे रहबर से,
किसी में गुलजार तो किसी में ग़ालिब जो ढूँढती हूँ।
थक गई है डायरी मेरी बातें सुन-सुन के,
फिर भी मुझपे ये तोहमत है कि मैं बातें कम करती हूँ।
मुसव्विर हूँ मैं भी एक तर्ज़ की,
जज्बातों को अल्फाजों का रूप देती हूँ।

©Ankita Pradhan #WatchingSunset
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