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guryonhalehousto6478
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Thakur Vivek Krishna

"The real man smiles in trouble, gathers strength from distress, and grows brave by reflection."

www.thevivekam.com

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Thakur Vivek Krishna

कृपानिधि शिव ही अजर शिव अमर शंभु शंकर शशिशेखरम, 
 शिव जगत ब्रहम शिव शूलपाणी रुद्र देव हरि शंकरम! 

शिव ही सत्य है,शिव आमोद शिव ही शोध है, 
शिव ही तथ्य है, शिव ही समस्त जगत का बोध है ! 

 आदि शिव अंत शिव योगी भी शिव है,
 शिव धरा में बसे अनीश्वर निरोगी भी शिव है ! 
 
शिव ही है अनंत त्रयम्बक, जटाधारी और विश्वेश, 
 शिव में ही है समाहित सभी सुख और सभी क्लेश! 

 कृपानिधि शिव ही अजर शिव अमर शंभु शंकर शशिशेखरम, 
 शिव जगत ब्रहम शिव शूलपाणी रुद्र देव हरि शंकरम! 
 
शिव ही हैं विश्वेश्वर बेअंत और आदिदेव, 
 शिव ही सार ग्रंथ और शिव ही समस्त वेद ! 

 शिव है आराध्य सबके और देवों के देव, 
 शिव से चलता सम्पूर्ण जग और वेग !
 
कृपानिधि शिव ही अजर शिव अमर शंभु शंकर शशिशेखरम, 
 शिव जगत ब्रहम शिव शूलपाणी रुद्र देव हरि शंकरम! 
  
शिव शिव दिल से बोलो सब कुछ है शिव में समाया, 
  हरा न सकी कभी विपत्तियां उनको, जो है शिव को भाया !
 
ग्रह नक्षत्र राग बेराग तांडव स्वर छंद सब है शिव की माया,
शिव है स्वरमयी परम ब्रह्म और समस्त जग शिव में समाया !
   
कृपानिधि शिव ही अजर शिव अमर शंभु शंकर शशिशेखरम, 
 शिव जगत ब्रहम शिव शूलपाणी रुद्र देव हरि शंकरम!

©Thakur Vivek Krishna #Maha_shivratri
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Thakur Vivek Krishna

मेरी चाहत तुमसे है जन्मों की, मैं इसमें कहीं खो जाऊं !
तुम दर्द ए हाल सुनाओ अपना, मैं तुम्हारा हो जाऊं !

समंदर सा मौन रहो तुम, मैं लहरों सा उसमें खो जाऊं !
आखों के झरनों से बहता दरिया, मैं नदी सा उसमें मिल जाऊं !

पर्वत सा अडिग रहूं सुख दुख में, बादल बन बरस जाऊं !
तुम धरा बन सृजन करो नव रस का, मैं तुम में समा जाऊं !

तुम्हारी निगाहों की किरण छुए जब रूह को, बर्फ बन पिघल जाऊं !
खुशियों से भर दूं दामन तुम्हारा, मैं बूढी दीवाली सा तुम्हें मनाऊं !

तुम्हारी झील सी आंखों की गहराई में खोकर, मैं उनमें डूब जाऊं !
हो इस कदर इश्क मुझे कि, जन्मों  जन्मों तक मैं तुम्हारा हो जाऊं !

©Thakur Vivek Krishna #चाहत
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Thakur Vivek Krishna

फूलों की महक से चमन महकता न,
जो कीचड़ भरी दुनिया में,कमल खिलता न !

क्यों मिलते इतने तोहफे हिजर ए जुदाई के,
अच्छा होता जो उससे, कभी मिलता न !

मधुशाला है अब तो शताए हुओं का ठिकाना,
बिना उसके दर्द भी सीने में,अब पिघलता न !

बोया बीज जो तेरे दिल की बंजर भूमि में,
वो उगता न, जो मैं मिट्टी होता न !

क्यों आता तेरी गलियों में यूं बेखबर,
जो तू दर्द न देती,तो मैं फिर रोता न !

भूल गया था,कि जालिम है दुनिया,
पता न चलता,जो खुद को खोता न !
 
जान कर भी अनजान हो गए हम,
जान पाते भी न,जो किसी का होता न !

दुनिया लूटती रहती दर्द के मारे हुओं को,
 जो अगर दर्द का बोझ,अकेला मैं ढोता न !

©Thakur Vivek Krishna #SunSet
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Thakur Vivek Krishna

जो मौन न समझे, वह हमदर्द कैसा होगा,
एक ही तरफ हो दर्द, तो दर्द कैसा होगा !

तूफ़ान है भीतर उठा जो,दिल में दर्द कैसा होगा,
कम हो न किसी मरहम से, वो मर्ज कैसा होगा !

ख़ामोशी है दिल की भाषा, मगर कौन बोलेगा,
मेरे दिल के दर्दों को, भीतर से कौन खोलेगा !

चुप्पी का शोर है बहुत,दर्द बयां कैसे होगा,
अनजान बना है हमदर्द, इतना बेबदर्द कैसे होगा !

मेरी रुह का अल्हड़, दिल की बेबसी कैसे जानेगा, 
मौन से भरा है मेरा जीवन,दिल की कैसे मानेगा !

रहस्यमय है तेरी आँखों के राज,इनको कौन खोलेगा,
ए खुदा कोई तो हो, जो मेरे भीतर के दर्दों को बोलेगा !

©Thakur Vivek Krishna #boat
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Thakur Vivek Krishna

सौंधी सौंधी रातों में, चाँद की छांव में,दरिया सा गुनगुनाऊंगा,
तुम आँखों के ज़रिये बात करना,मैं तुम में समा जाऊंगा !

पवन का स्पर्श हुआ बादलों को,तो अंबर भी चिल्लाएगा,
दिल का हमदर्द,बारिश में फिर भीगता हुआ आएगा।

मेरी आँखों के जादू से, फिर चाँदनी भी जगमगाएगी,
बसंत की सुगंध सारे पर्यावरण में समा जाएगी ! 

तुम और मैं इस जहां में,खुशियों की बरसात आएगी,
रिमझिम सी बरसात,मौन का संगीत गुनगुनाएगी !

चाँद के रंग से रंगी हुई रातों में,तुम ख़्वाब बन जाओगे,
 फिर आँखों से बात होगी,तुम भी मुझमें समा जाओगे !

सौंधी सौंधी रातों में,चांद की छांव में,कहीं खो जाएंगे,
दिल के साथी दिल की बात और प्यार के गीत गुनगुनाएँगे।

©Thakur Vivek Krishna Love
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Thakur Vivek Krishna

दिए जख्म इतने ,जो वापिस न किए तो कर्ज कैसा,
वो ही दर्द दे सिर्फ मुझको,मैं सहूं ये भी फर्ज कैसा !

टूटे बिखरे लोगों के दर्द न जान पाए,तो इंसान कैसा, 
अटूट विश्वास से बना घर,क्षणिक टूट जाए मकान कैसा!

आए न महक किसी फूल से, तो वो फूल कैसा, 
खुद ही बना के तोड़ दिया,तो यह असूल कैसा !

जहां महजब और पानी की नस्ल अलग, वो स्कूल कैसा,
किसी को इतना चाह कर छोड़ देना,ये रूल कैसा !

©Thakur Vivek Krishna #boat
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Thakur Vivek Krishna

लोगों के बदलते चेहरे,उनकी फजा बताती है, 
ठोकर खाना भी जरूरी है, मंजिल का पता बताती है !

हमारे अपने हमारा अच्छा चाहने वाले होते ही नही,
वक्त के साथ बदलती जरूरत, उनकी रजा बताती है !

लगातार भटक कर ही मिलती है, मंजिल एक राही को,
अक्सर ठोकरें ही, मंजिल का असली मजा दिखाती है !

जो ईमानदारी से लगे रहते है,अपने कर्मपथ पर,
वक्त की आदलत उन्हें,कामयाबी की सजा सुनाती है !

©Thakur Vivek Krishna #मंजिल
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Thakur Vivek Krishna

तिनका-तिनका जोड़ कर,घौंसला बनाती जो !
रहे न भूखी कभी गौरैया,तिनका-तिनका जुटाती जो !

खुले आसमां में ठिकाना,प्रकृति से मेल कराती जो !
न किसी से बैर भाव,अपनी ही धुन में गुनगुनाती जो !

चलत डगरिया हौसलों पर,जोखिम उठाती जो !
सुख-दुख दोनों में सरल,कभी न घबराती जो !

©Thakur Vivek Krishna #गौरैया
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Thakur Vivek Krishna

मंजिल यूं नही मिलती अरमान दिल में,जीत का जगाना पड़ता है, 
और हार जीत तो भय है डगर के, जुनून हो तो आसमान में जाना पड़ता है !

©Thakur Vivek Krishna #WinterSunset
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Thakur Vivek Krishna

बेहिस है,बेफिक्र है,बेघर है,अब कुछ तो ठिकाना चाहिए,
हम ताउम्र ईश्वर के नशे में रहना चाहते है,हो कहीं तो ऐसा महखाना चाहिए !

©Thakur Vivek Krishna #safar
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