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casandeepdwivedi4236
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CA Sandeep Dwivedi

ख़्वाब देखोगे तो हमे पाओगे जब नीँद से जागोगे तो हमे पाओगे

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CA Sandeep Dwivedi

एक अरसा हो गया कलम थामे, 

चंद पंक्तियाँ लिखना चाहता हूँ,

चादर ओढ़े तारों की, 

नीचे आसमाँ के बैठना चाहता हूँ

भीगी रोशनी में दीये के सहारे, 

अंधियारा काटना चाहता हूँ

कोरी छोड़ दी है मैंने, 

अनगिनत मोड़ पे काहानी अपनी,

उन क़िताबों के पन्नो में, 

अल्फ़ाज़ अपने रखना चाहता हूँ

वक़्त का साया ऐसा पड़ा पीछे, 

रह गया सब उसके बोझ के नीचे

सुनहरे शाम में एक दूजे के साथ कि,

बाग़डोर संभालना चाहता हूँ

यूँ तो चलती रहेगी सदा,

दुनियादारी की रेल गाड़ी

लंबे सफर में एक नए हमसफ़र की,

भूमिका निभाना चाहता हूँ

किस्से तुम शुरू करो संग तुम्हारे,

उसके तमाम अंजाम देखना चाहता हूँ

मैं क़िताबों के खाली पन्नों में,

अल्फ़ाज अपने रखना चाहता हूँ

©CA Sandeep Dwivedi #restart 

#booklover
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CA Sandeep Dwivedi

हर पहर में हैं मेरे आदि योगी
जन जन में जिये आदि योगी
कण कण में बसे आदि योगी
पल पल में हैं बस आदि योगी

श्वांस में शुरू आदि योगी
भस्म भी कहे आदि योगी
अनंत का भी है आदि अंत
पर वो अनंत हैं आदि योगी

डमरू बजे है आये आदि योगी
गंगा कल कल करे आदि योगी
तुझसे ही संभव सब आदि योगी
असंभव ही नहीं कुछ आदि योगी

यक्ष स्वरूपा हैं आदि योगी
चंद्रशेखर भी है आदि योगी
गौरापति हैं मेरे आदि योगी
सत-सत है नमन तुझे हे आदि योगी #aadiyogi #mahashivratri #shiva #worship
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CA Sandeep Dwivedi

घर बैठे आंगन में एक दीप जला लें
तमस भगाएं चार किरणे लाएं
कर मन को तन को पवित्र
चल सखी आज दिवाली मनालें #soulpurification
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CA Sandeep Dwivedi

सब सकुशल कहूँ , तो शायद मैं ज़िंदा नहीं
सब मंगल कहूँ, तो शायद मैं ज़िंदा नहीं,
नहीं दिख रहा उजियारा, छा गया घनघोर अंधेरा
जाने कब निकलेगा निडर न्याय का सवेरा,
बंद कर लीया नेत्र व श्रवण, हो रहा बस चीर हरण
जाने कब कृष्णा आएगा
कब द्रोपदी की लाज बचाएगा,
देख अमङ्गल विनाशकारी डर गई हर एक नारी
कब सज्जन मौन तोड़ेगा
कब दुर्जन धरती छोड़ेगा,
धिक्कार है मुझे इस दुर्बलता पर
क्यों अहँकार है इस सज्जनता पर,
होगा क्या तब मेरा सवेरा
दिखेगा जब मुझे अंधेरा,
रे उठ भाग खड़ा हो कर स्मरण
रच दे एक और महाभारत रामायण
हो ललकार तू कर हुँकार
करा दे न्याय की नैया पार
#Priyanka_Reddy
#RIPHumanity #RIPPriyanka_Reddy
#AshamedIndian
#Ashamedhumanity
#Nojoto
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CA Sandeep Dwivedi

Frustration जब मनुष्य निरंतर किसी पीड़ा को सहन करता है और विवश्ता से उस पीड़ा को व्यक्त नहीं कर पाता है, तब जन्म लेता है मन में वो भाव जो उस पीड़ा से उत्पन्न कड़वाहट अपने क्रियशैली, वाच्या और मुखभाव को दूषित करता है। प्रारम्भ में उसका अनुभव पीड़ित मनुष्य को छोड़ समक्ष व्यक्ति करता है। #frustration
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CA Sandeep Dwivedi

ऐसी सादगी न समझे कोई
बैर सादगी से क्यों करे कोई
लज्जा भी क्यों सादगी से आये
ऐसी दुनिया क्यों रब बनाये

देख चकमक चका चौंध सी
पर्दा सुनहरा नज़र पे चढ़ जाए
देखे दिखावटी, दिखे परत सी
दो पल की खुशी कैसे सुहाए

ना जाने अहमीयत है दूर असलीयत
अंदर के मन को क्यों आडम्बर हराये
ता उम्र न रहेगी चमक बात ये जाने है सब
फिर क्यों सामाजिक दिखावट ही भाये

भोले भंडारी भी फसे इस जाल में
अघोरी वेश भूषा में बारात लाये
ना माना समाज उनकी भी सादगी
अंत मे चंद्रशेखर रूप में आये #सादगी
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CA Sandeep Dwivedi

तू इशारा तो कर दिल से अपने
तेरे सारे जज़्बात मैं ओढ़ लूंगा
ऐसे नज़रें ना चुरा मेरी नज़र से
बिन कहे मैं तेरे इरादे पढ़ लूंगा

देख ख़्वाब तू जी भर कर
हर ख़्वाब को हक़ीक़त मैं कर दूंगा
डर ना इतना तक़दीर के शमशीर से
तेरे तक़दीर में मैं खुशनसीबी भर दूंगा

मन्ज़र देखे है हमने अच्छे बुरे
हसीं मन्ज़र को तेरी नज़रों में कैद कर दूंगा
राब्ता रखना तू सिर्फ खुशियों की दीवारों से
दरों दीवार पे मैं अपने लम्हें सजा दूंगा तेरी ख़ुशी

तेरी ख़ुशी #Shayari

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CA Sandeep Dwivedi

दुविधा वो मनोवृर्ति है जिसमे मनुष्य विवेक से नहीं अपितू चित्तक्षोब के वश में आकर अप्रीय निर्णय लेता है। दुविधा

दुविधा #Quote

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CA Sandeep Dwivedi

#OpenPoetry विश्वास कब होना चाहिए, कितना होना चाहिए, किसपर होना चाहिए और क्यों होना चाहिए ये वो चार प्रश्न हैं जिनका उत्तर हमें ज्ञात रहे।

अंततः इतना तो पता हो कि हमारा विश्वास कैसा है,आत्मविश्वास, पूर्णविश्वास, अपूर्णविश्वास अपितु अंधविश्वास?

ये बोध जीवन मे सबसे विलम्ब से आता है परन्तु जब इसका बोध होता है तो जीवन को जीने का ढंग सँवर जाता है। #faith#trust#life
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CA Sandeep Dwivedi

आया जब लौट के वापस, आके हमसे मिला तो नहीं
शायद ख़फ़ा हो गया होगा वो, अभी कुछ कहा तो नहीं
गया था वो बस एक पल, आने का उसका था इरादा
नहीं था मालूम मुझे, वक़्त वो मेरा वापस कहीं दिखा तो नहीं

उन लम्हों में था बचपन मेरा, वो भी किसी का सगा तो नहीं
खिलाये और खेला सबके संग, खेल आज तक वैसा खेला तो नहीं
खिलखिलाहट थी नज़रों में, अटखेलियां थी क़दमों में
वो नज़रे, वो कदमें, वो खुशियां किसी से छुपा तो नहीं लम्हा
#poem #nojoto #lamhamera

लम्हा poem nojoto lamhamera

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