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amityadav8293
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Amit Yadav

Mai samandar ki pyaas likhta hu...jo kabhi khatam na hui wo talash likhta hu...

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Amit Yadav

"दरवाज़ा"
ठीक है मैं अब चलती हूँ, - मेरे पी जी के कमरे से उठती हुई वो बोली।
मैं कुछ बोल नहीं पाया। हृदय चाह रहा था सबकुछ ना सही पर वो इस पल के लिए यहीं थम जाए। उसने एक कदम आगे बढ़ाया ही था कि, मेरी तरफ मुड़ी। "तुम मन की दीवारों में बंद दरवाज़े रखते हों पर पता है कमरे में सिर्फ दरवाज़े से नहीं जाया जाता। खिड़कियाँ भी होती है।" इतना कहकर वो चली गयी। मैं कहीं विचारों में खो गया, ऊपर नज़र उठा कर देखा तो पाया दरवाज़ा बंद था।
कमरे में हल्की सूरज की रोशनी गिर रही थी जो रोशनदान से सीधे मेरे चेहरे को छू रही थी।
- अमित यादव

©Amit Yadav #दरवाज़ा 

#Woman
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Amit Yadav

"उम्मीद"
उसकी आँखें बंद थी। सुबह के चार बजे रहे थे। लगभग पौने घंटे बाद मेरी ट्रेन थी। रात में सोने से पहले जगाने का वादा किया तो था, पर अब वो बेमानी सा लग रहा था। 
वो किसी दुनिया मे थी खोई हुई, मैं किसी और जगह जागा हुआ था । मैं यूँ ही निकल गया, नहीं चाहता था कि मुझे जाता देख एक भी दफ़ा उनमें विरह का भाव आए।   
बस इतना चाहा कि जब भी खुले, तो उम्मीद हो उन आँखों में मेरे लौट आने की।

©Amit Yadav #उम्मीद

#IFPWriting
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Amit Yadav

"रिश्ता"
"तो फिर कैसा है हमारा रिश्ता",- मैंने हल्के गुस्से में उसकी तरफ देखते हुए कहा।
वो मेरी आत्मा से नज़रे मिलाते हुए मेरे करीब आयी। और मेरे शरीर पर अपनी छाती की सारी स्वास बिखेर कर चली गई।

©Amit Yadav #रिश्ता

#us
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Amit Yadav

"खुशबू"
मैं सीट पर बैठ चुका था। बस चलने को तैयार थी। मन में ढेरों विचार कौंध रहे थे। जिस्मों की आखिरी मुलाकात करके आ रहा था। उसकी बातों के सही गलत के मायने मस्तिष्क में जद्दोजेहद कर रहे थे। जीवन धुंधलाता सा नज़र आ रहा था।
मगर सामने देखता तो और सीटों पर जीवन कभी नन्हे बच्चे में हँसता तो कभी किसी अनुभव की सूरत में अस्त होता प्रतीत होता। प्रेम और जीवन के बीच झूलती मेरी नज़रें बग़ल में बैठे यात्री पर गिरी। चेहरे पर अनुभव की झुर्रियां लिए हाथों में एक फटा कागज़ थामे एक बुज़ुर्ग आँखे मूँद बैठे थे। मैंने कागज़ पर गौर किया तो देखा किसी पुरानी धुँधलाती स्याही में लिखा था, " वो मुझसे वैसे ही गयी, जैसे बिना कहे जाती रहती है खुशबू फूल से, उसके मुरझाने तक! पंक्ति पढ़ के मैं हतप्रभ रह गया। मैंने फिर से उनके चेहरे को देखा, वो मुरझाये हुए से लगते थे। मैंने उन्हें हिला के देखा, तो बस इतना ही देख पाया कि उनके अंदर की खुशबू पूरी तरह जा चुकी थी।

        - अमित यादव

©Amit Yadav #खुशबू 

#Photos
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Amit Yadav

"मिलन"

ट्रेन प्लेटफार्म पर आ चुकी थी। वो बेंच से उठकर डिब्बे की और जाने लगी। 
फिर मिलना होगा- मैं यकायक बोल पड़ा।
उसने मुड़कर देखा और केवल एक शब्द कहा-"हाँ"
हृदय को जरा सी शांति मिली पर साँसे फिर अधीर हो चली
मैं फिर पूछ बैठा,"कहाँ और कब"?
मैंने एक बार मे दो सवाल दाग दिए थे। वो एकटक मुझे निहारती रही फिर भावविभोर होकर बोली,"अभी, क्षितिज पर"। इतना कहकर वो चली गयी।
मैं उस रोज उसकी बात का मर्म नहीं समझा। पर आज जान पड़ता है की मिलन केवल भौतिक स्तर के को तो नहीं कहते ।

©Amit Yadav "मिलन"
#short_Story #लघुकथा #कहानी 

#lily
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Amit Yadav

जी चाहता है एक शाम 
निचोड़ लू खुद को,


और भर दूँ वक्त की दरारों में
जहाँ से हमारा जीवन टूटा है...!

 - अमित यादव

©Amit Yadav #September #poem #Shayari #vichaar 

#SunSet
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Amit Yadav

#AzaadKalakaar
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Amit Yadav

सफ़र की शुरूवात में ' तुम '  तुम रहोगे,
पर सफ़र के अंतिम पड़ाव में
ना तुम का ' तू ' रहेगा ना ' मैं ' ।

©Amit Yadav # विचार # shayari

#MereKhayaal

# विचार # shayari MereKhayaal

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Amit Yadav

दूर ट्रेन से आती आवाज़..
अकेली रात
अकेला चांद
अकेला मै
अकेला ईश्वर
खड़े हैं समक्ष
एक विचार के
की सृजन क्यों है
एक विचार का भी..।

©Amit Yadav #MereKhayaal
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Amit Yadav

#Rakhi #ehsaas 

#RishtaDilKa
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