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"न उठकर जा यूँ पहलू से, नज़रों की प्यास बाकी है ।
तुमसे कहने को अभी बहुत सी बात बाकि है ।।
गिरे रहने दे जुल्फों को यूँ ही अपने सानो पर ।
बैठकर इनकी आगोश में, अभी आँशू बहाना बाकि.है ।।
कारवाँ कई जो ख़्वाबों के मेरी पलकों से होकर गुजरे हैं ।
उनको हकिकत में बदलना अभी और बाकि है ।।
तुझे पाने की कोशिश में जो मेरे दिल पर गुजरी है ।
वो दिल-ए-बेकरारी का किस्सा अभी सुनाना बाकि है ।।
रखा है जख्म-ए-दिल लाकर मैंने तेरे कदमों पर ।
उस पर तेरे हाथों का अभी मरहम लगाना बाकि है ।।
इल्म नहीं उसे 'ओमी' तेरे मेराज-ए-इश्क का ।
उसे अपनी मोहब्बत का अभी एहसास दिलाना बाकि है ।।
ओमी"