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Stories related to हाडी ताप

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Vikas Sahni

#फिर_से_कहा कल कविता ने फिर से कहा, "तूने गाना छोड़ दिया; तूने दोहराना छोड़ दिया; तूने जाना छोड़ दिया कोशिशों की कोशिकाओं में उठ, और चल प #Poetry

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White 
कल कविता ने फिर से कहा,
"तूने गाना छोड़ दिया; 
तूने दोहराना छोड़ दिया;
तूने जाना छोड़ दिया 
कोशिशों की कोशिकाओं में 
उठ, और चल
पीकर और लेकर जल
तपती हुई हवाओं में
तू चलता चल! 
अवश्य देगा सुख का सावन नभ का नल।
कभी-न-कभी तो थमेगा 
ताप का तूफान,
कहीं-न-कहीं तो जमेगा 
अपना अड्डा अथवा स्थान।
धरतीधारक अनंत है परेशान,
पीले पेड़ों को देख वसंत है परेशान।
दे देना कहीं और ध्यान 
जब संगीत सुनते-सुनते थक जाएं दोनों कान
और इसी तरह जगे रहना
और अपनी कविता में लगे रहना!! 
इसी प्रकार प्यार में कल भी सहना
मसलन  तुमने  आज है सहा।"
कल कविता ने फिर से कहा।।
                              ...✍️विकास साहनी

©Vikas Sahni #फिर_से_कहा
कल कविता ने फिर से कहा,
"तूने गाना छोड़ दिया; 
तूने दोहराना छोड़ दिया;
तूने जाना छोड़ दिया 
कोशिशों की कोशिकाओं में 
उठ, और चल
प

Abhishek 'रैबारि' Gairola

अनिंद ब्याल राति क्य बतौं, मैतें घड़ैक भी निंद नि ए, भों कथा छुईं छें रिंगणि मुंड मा पर रिंग नि ए।  न सुपिन्यु छो

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

दोहा :- मृत्यु निकट आ ही गई , होते क्यों भयभीत । साथी कोई भी नही , बने वहाँ मनमीत ।। सूर्यदेव के ताप से , काँप रहे हो आज । #कविता

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White दोहा :-

मृत्यु निकट आ ही गई , होते क्यों भयभीत ।
साथी कोई भी नही , बने वहाँ मनमीत ।।

सूर्यदेव के ताप से , काँप रहे हो आज ।
भाग रहे शीतल जगह , छोड़ आज सब काज ।।

वादा करते आपसे , अभी न छोड़ूँ हाथ ।
जीवन भर बस प्यार से , रखना हमको साथ ।।

जीवन साथी संग में , उठा रहे आनंद ।
दुआ यही करता प्रखर , कभी न हो ये मंद ।।

वर्षगाँठ शुभकामना , करें आप स्वीकार ।
जीवन भर मिलता रहे , साथी से यूँ प्यार ।।

आगे जीवन में यही , करे खड़ी दीवार ।
बात-बात पर तुम कहीं , अगर करो तकरार ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 

दोहा :-

मृत्यु निकट आ ही गई , होते क्यों भयभीत ।
साथी कोई भी नही , बने वहाँ मनमीत ।।

सूर्यदेव के ताप से , काँप रहे हो आज ।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

सोरठा :- सूर्यदेव का ताप , नित्य ही बढता जाता । नर नारी सब आज , नजर घूंघट में आता ।। #कविता

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सोरठा :-
सूर्यदेव का ताप , नित्य ही बढता जाता ।
नर नारी सब आज , नजर घूंघट में आता ।।

लियो मजा तुम खूब , सदा पक्की सड़को का ।
करना क्या है आज ,  पहाड़ो औ झरनों का ।।

महल बने फिर चार ,  वृक्ष हो बिल्कुल छोटे ।
गेंदा चंपा छोड़ , वृक्ष सब लगते खोटे ।।

हँसते घूंघट काढ , दिखे सारी बत्तीसी ।
फल कर्मो का आज, निकाले सबकी खीसी ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सोरठा :-


सूर्यदेव का ताप , नित्य ही बढता जाता ।

नर नारी सब आज , नजर घूंघट में आता ।।

Bhanu Priya

कुछ छांव सा कुछ धूप सा कुछ चंचल सा कुछ शांत सा #Poetry

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Bharat Bhushan pathak

#safar #Labourday भूखे रह जो प्यास भुलाके,हाथों अपने ताप लगाके। इच्छा अपने मर्दन करके,रंगे सपने खूब हमारे।। #Poetry

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Bharat Bhushan pathak

पाप-पुण्य युद्ध में विजय प्रतीक पुण्य का। सत्य से असत्य का प्रतीक जीत सत्य का।। राम नाम जाप का पर्व अम्ब मात का। भद्र के ये छाप का अभद्र नाश #भक्ति

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पाप-पुण्य युद्ध में विजय प्रतीक पुण्य का।
सत्य से असत्य का प्रतीक जीत सत्य का।।
राम नाम जाप का पर्व अम्ब मात का।
भद्र के ये छाप का अभद्र नाश ताप का।

©Bharat Bhushan pathak पाप-पुण्य युद्ध में विजय प्रतीक पुण्य का।
सत्य से असत्य का प्रतीक जीत सत्य का।।
राम नाम जाप का पर्व अम्ब मात का।
भद्र के ये छाप का अभद्र नाश
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