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Reeshabh Sahu
प्रियजीत प्रताप
तिल तिल मरते उन्मादों में, कभी भीड़ कभी वीरानों में, हाथ धरे,पग समेट लिए हों, पर्वत,वन या सुनसानों में, गिरता रक्त अलाप रहा है, छूटता प्राण प्रलाप रहा है, शिथिल पड़े शरीर के ऊपर, उड़ता गिद्ध ठठकार करे, नोचें,खाएं अपने ही मद में, कौन उनका संहार करे? कब जागे वो आग हृदय में, कौन रोके यह रक्तप्रवाह, कौन बताए इस समर शेष में, कहाँ रावण है,राम कहाँ? -प्रियजीत✍️ कहाँ रावण है,राम कहाँ...
Parasram Arora
ये प्रेम नही कह पायेगा अपनी कहानी कभी. सीने में दर्द है.. पर मुँह में अलफ़ाज़ कहाँ है? सीन में दिल है और धड़कन भी है. पर जीनाचाहता हूं जिसे वो जिंदगी कहाँ है? जिम्मेदारियों के बोझ ने मुझे बूढ़ा कर दीया जल्द इस दरमियान आई थी जवानी पर वो टिकी कहा? मौत का पैगाम तो आ चुका नज़दीक पर न जाने मरने वाला किरदार कहा है? आहों की आवाज़ भी धीमी हुई है रफ्ता रफ्ता और आंसुओं में भी अब वो रवानी कहा है? ©Parasram Arora कहाँ है?
Abhimanyu Dwivedi
🌱🌱 संन्यास 🌱🌱 सं = संपूर्ण सत्य , (शिवोsहं) न्यास = में अवस्थित हो जाना अर्थात सत्य में अवस्थित हो शिव हो जाना ** स्वयं से स्वयंभू की ओर ** 🌱अभिमन्यु ( मोक्षारिहन्त )🌱 🌷🌱🌷 ©Abhimanyu Dwivedi 🌱🌱 संन्यास 🌱🌱
कवि विनय आनंद
याद हैं हमको वो दिन भी मेरा इंतजार रहता था, कभी तुम कुछ न खाती थीं हमारे कुछ भी खाने तक। कहाँ वादे , कहाँ कसमें, कहाँ है वो वफादारी- तुम्हें तो साथ रहना था हमारी जान जाने तक। ©कवि विनय आनंद कहाँ वादे , कहाँ कसमें, कहाँ है वो वफादारी।
Harsh Das
Harsh Das