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Roshni keshari
आजकल लोग कितने बजे से लगते हैं चकाचौंध दुनिया के देश में डूबे रहते हैं चलते हैं फिर रुक जाते हैं दुनिया के इस दौर मे भागने वाले भी कहीं थक के चूर हो जाते हैं बाहर से जो कुछ दिखता है मन ही मन हो रोता है कौन है अपना कौन पराया बस यही वह सोचता है रंग भरी इस दुनिया में दिखावे के लोग मिलते हैं ना जाने उनके अंतर्मन में कितने रहस्य छुपे रहते हैं फूलों सी नाजुक जिंदगी पर कांटो पे हम चलते हैं छोटी-छोटी खुशियों को भूल किसी और के पीछे भागते हैं समय वही संसार वहीं पर लोग बदल से गए हैं हंसती खेलती मुस्कुराती जिंदगी को जिंदगी को कहीं पीछे छोड़ चले हैं कहीं पीछे छोड़ चले हैं रोशनी केसरी असिस्टेंट प्रोफेसर मेवाड़ यूनिवर्सिटी राजस्थान फूलपुर इलाहाबाद ©Roshni keshari वर्तमान जीवन की हकीकत
वर्तमान जीवन की हकीकत #Life
read moremona khan
मन की व्यथा व्यथित वेदनाए न जाने कहां लिए जाए, हृदय पटल के यह संघर्ष हृदय को इतनी क्यों शूल बनकर चूभा करें। ना व्यथा सहा जाए ना कुछ कहा जाए, विचित्र व्यथाए है जो किनारा ढुंढे पर ना मिला करें, चले तो कहां चले। हृदय की मर्मस्पर्शी भाव का क्या किया जाए ना व्यक्त किया जाए ना हृदय पटल पर सिया जाए। ©mona khan # मन की व्यथा
# मन की व्यथा #Poetry
read moreकरन सिंह परिहार
कौन है जो पुकारा हमें रात भर। और अपलक निहारा हमें रात भर। क्या बताऊँ दशा नींद की वह व्यथा? जो हुई स्वप्न द्वारा हमें रात भर। स्वप्न से वो निकल कब हकीकत बनी। आँख के आँसुओं की तिज़ारत बनी। बन गयी ज़िन्दगी की अज़ब दासतां। मेरे' सम्पूर्ण सुख की जरूरत बनी। जल रहा जो दिया एक उम्मीद का। बस उसी का सहारा हमें रात भर। कौन------------------------------(१) जब नज़र से नज़र यूं सँवरने लगी। और दिल में कशिश इक उभरने लगी। हाल मेरा तभी हो गया इस कदर। जैसे जल के बिना मीन मरने लगी। तैरते रह गये हुस्न के ख्वाब में। पर मिला ना किनारा हमें रात भर। कौन-------------------------------(२) बेवफ़ाई मुहब्बत की' तडपन बनी। गुदगुदाती जवानी की' उलझन बनी। दर्द इतना सहा फिर भी' रुसवा हुआ। पीर मेरे कलेजे की' दुल्हन बनी। ज़ाम से दोस्ती प्यार मयखाने' से। बोतलों ने संवारा हमें रात भर। कौन--------------------------------(३) * ©करन सिंह परिहार #नींद की व्यथा
Pushpendra Pankaj
मन की व्यथा -------------------------------------------- कुछ बूँदें तो मिलीं ,पर नहा ना सका , चंद ग्रासों से, बुभुक्षा मिटा ना सका । तेरी झोली भगवान में सब कुछ तो है , फिर कहाँ चूक हुई?मन का पा ना सका ।। पुष्पेन्द्र "पंकज " ©Pushpendra Pankaj मन की व्यथा
मन की व्यथा #कविता
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