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writer umesh
कुछ ऐसे हादसे भी झेले हैं मैंने इस छोटी सी उम्र में , ना सह सके न बयां कर सके ना लिख सके " ©writer us व्यथा जीवन की
व्यथा जीवन की #Poetry
read moreRoshni keshari
आजकल लोग कितने बजे से लगते हैं चकाचौंध दुनिया के देश में डूबे रहते हैं चलते हैं फिर रुक जाते हैं दुनिया के इस दौर मे भागने वाले भी कहीं थक के चूर हो जाते हैं बाहर से जो कुछ दिखता है मन ही मन हो रोता है कौन है अपना कौन पराया बस यही वह सोचता है रंग भरी इस दुनिया में दिखावे के लोग मिलते हैं ना जाने उनके अंतर्मन में कितने रहस्य छुपे रहते हैं फूलों सी नाजुक जिंदगी पर कांटो पे हम चलते हैं छोटी-छोटी खुशियों को भूल किसी और के पीछे भागते हैं समय वही संसार वहीं पर लोग बदल से गए हैं हंसती खेलती मुस्कुराती जिंदगी को जिंदगी को कहीं पीछे छोड़ चले हैं कहीं पीछे छोड़ चले हैं रोशनी केसरी असिस्टेंट प्रोफेसर मेवाड़ यूनिवर्सिटी राजस्थान फूलपुर इलाहाबाद ©Roshni keshari वर्तमान जीवन की हकीकत
वर्तमान जीवन की हकीकत #Life
read moreDev. The Devil.
जो ज़मीन को जोते बोये वही ज़मीन का मालिक होये कृषक मसीहा चौ० चरणसिंह की पुण्यतिथि पर उनको शत शत नमन ,, 29 मई 1987 Dev The Devil #कृषक मसीहा
#कृषक मसीहा
read moremona khan
मन की व्यथा व्यथित वेदनाए न जाने कहां लिए जाए, हृदय पटल के यह संघर्ष हृदय को इतनी क्यों शूल बनकर चूभा करें। ना व्यथा सहा जाए ना कुछ कहा जाए, विचित्र व्यथाए है जो किनारा ढुंढे पर ना मिला करें, चले तो कहां चले। हृदय की मर्मस्पर्शी भाव का क्या किया जाए ना व्यक्त किया जाए ना हृदय पटल पर सिया जाए। ©mona khan # मन की व्यथा
# मन की व्यथा #Poetry
read moreLakhan Singh Chouhan
#Labour_Day सर से उनके छत उठ गई रोजी छीन गई हाथों की, ना रहा खाने को दाना नींद उड़ गई रातों की। पुलिस ने उनको मारे डंडे और खदेड़ा सड़कों से, सरकारों को क्या करना है गांव के ऐसे कड़को से। उनकी गलती ,जो थे आए भरने पेट वो शहरों में, सिर पे ढोते बोझा देखो जेठ की भरी दोपहरों में। जूते चप्पल नहीं मिले तो बांध ली बोतल पाओं में, लक्ष्य एक है, कैसे भी वो पहुंचे अपने गाँवो में। तुमने भेजे उड़न खटोले उन्हें बुलाया देशों में, जो स्वार्थ के कारण भागे भारत छोड़ विदेशों में। मजदूरों का दर्द ना समझा जाने क्यों सरकारों ने, जमा रुपए भी लूट लिए बीच में कुछ गद्दारों ने। धन्य जिन्होंने पानी पूछा, और दी रोटी खाने को, पैदल ही थे निकल पड़े जो अपने घर जाने को। ठा. लाखन सिंह चौहान मजदूरों की व्यथा।
मजदूरों की व्यथा। #कविता #Labour_Day
read moreJ P Lodhi.
व्यथा कोंरोना लेकर आया संकट विकराल है, अर्थ व्यवस्था को बना दिया बदहाल है। शहरों में श्रमिकों पर टूटा जैसे पहाड़ है, तंगहाली ने खड़े कर दिए बड़े सवाल है। गांव आने को उमड़े श्रमिकों के जत्थे है, मीलों का सफर चल रहे पैदल निहत्ते है। रास्तों में झेल रहे असहनीय पीड़ा वेदना, दर्द से तन जख्मी हुए आहत हुई चेतना। चलते चलते पैरो में पड़ गए कई छाले है, कठिन सफर में पड़े निवालों के लाले है। प्राण बचाने को मिलते खास रखवाले है, बुरे वक्त में मानवता ने जीवन संभाले है। कई अभागे पथ में काल के ग्रास हो गए, माता पिता बेटों की वाट जोहते रह गए। बुरे वक़्त में बन रही दुख भरी कहानियां, विकट बक्त में मौत लील रही ज़िंदगियां। ऐसा समय कभी किसीने देखा नही था, वक्त इतना बुरा आ जाएगा सोचा न था। JP lodhi #वक्त की व्यथा
#वक्त की व्यथा
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