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MUKESHKumarRAJPUT57
Rishu Journalist
REETA LAKRA
मूक बाट जोहते, न कहते जुबानी, भरे चक्षुओं में खारा पानी, जीवन में पड़ गये एकाकी, बताते संतानों के डाॅलर की कहानी। २२/३६५@२०२२ लगभग परिवारों के बच्चे शिक्षित होकर विदेशों में नौकरी करने जा बसे हैं और यहाँ देश में - परिवार में माता पिता एकाकीपन का जीवन व्यतीत करने को
Vivek Sharma
Vote vivek sharma ©Vivek Sharma जंगल में लकड़ी तो बहोत है मगर चंदन जैसी कोई नही! देश में नौकरी तो बहोत है मगर 🅐🅡🅜🅨 जैसी नही a strong💪💜🅐🅡🅜🅨 person JAI HIND 🎖 vivek 🎖 A
B Pawar
अन्य देशों में नौकरी काबिलियत से मिलती है। हमारे यहां नौकरी रियायत पर मिलती हैं। अन्य देशों में नौकरी काबिलियत से मिलती है। हमारे यहां नौकरी रियायत पर मिलती हैं। #रियायत #सियासत #काबिलियत #नौकरी #आरक्षण #छूट #हिन्दी_का
Unknownartist94
Dr Upama Singh
“मेरा गांँव मेरा शहर” अनुशीर्षक में कितनी भी चाहत हो रहने की शहर में पर पहली मोहब्बत अपना गांँव ही है खेत खलिहान मिट्टी की खुशबू हरियाली कहां ये सब मिलता शहर में लोग होते मतलबी
Rakesh Kumar
शहर पूछता हूँ सवाल खुद से 'क्यों आया हूँ इस शहर में' , गंदा, अजीब और बेगाना लगा जो पहली नजर में। जवाब मिला कमाने आया है तू, छोड़ अपने घर को, कुछ कर दिखाने आया है तू। सवाल फिर भी रहता है मेरे अंदर में, 'क्यों आया हूँ इस शहर में'।। याद हैं मुझे आज वो शुरू के दिन-रात, कैसे काटा वो समय, क्या बताऊँ उसकी बात। ख्याल आया लौट चला जाऊं अपने घर में, सवाल वही रहा क्यों आया हूँ इस शहर में।। नौकरी तो पहले भी थी पर थी वो भी घर से दूर, लौटता था शाम को हो थकान से चूर। कुछ तो अलग है इस शहर के मंजर में, फिर भी सोचता हूँ 'क्यों आया हूँ इस शहर में'।। समय बीता और दिन ढलने लगे, कुछ-कुछ अब जवाब मिलने लगे। घर से कोसों दूर इसने मुझे अपनाया है, उन कड़वी यादो को मन ही मन दफनाया है। मिले जो अनजाने लगने लगे अब अपनो से, उनके भी तो ख्वाब थे मेरे सपनो से। साथ मिलता रहा और बढ़ता गया सफर में, समझ मे आने लगा 'क्यों आया हूँ इस शहर में' ।। ....राकेश पूछता हूँ सवाल खुद से 'क्यों आया हूँ इस शहर में' , गंदा, अजीब और बेगाना लगा जो पहली नजर में। जवाब मिला कमाने आया है तू, छोड़ अपने घर को, क
Vikas Sharma Shivaaya'
कार्य में, नौकरी या व्यवसाय में सफलता मंत्र मंगलवार के दिन- 'ऊं नमो भगवते पंचवदनाय ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रूं रूं रूं रूं रूं रुद्रमूर्तये सकलजन वशकराय स्वाहा' -पर ध्यान रहे कर्म जरुरी है -कर्म प्रधान है .... “ अबिगत गति कछु कहत न आवै-ज्यो गूंगों मीठे फल की रास अंतर्गत ही भावै।। परम स्वादु सबहीं जु निरंतर अमित तोष उपजावै-मन बानी को अगम अगोचर सो जाने जो पावै।। मून जाति जुगति बिनु निरालंब मन चक्रत धावै-सब बिधि अगम बिचारहि,तांतों सुर सगुन लीला पद गावै।। “ निराकार ब्रह्म की सोच आवश्यक है- यह समरूपता और भाषण की बात नहीं है- जिस तरह एक गूंगे को मिठाई खिलाई जाती है और उसे स्वाद के लिए कहा जाता है, वह मिठाई का स्वाद नहीं बता सकता है,केवल उसका मन ही मीठे रस का स्वाद जानता है। निराकार ब्रह्म का कोई रूप नहीं है और न ही कोई गुण है-इसलिए मैं यहां खड़ा नहीं हो सकता,वह हर तरह से अगम्य है-इसलिए सूरदास जी ने सगुण ब्रह्म श्री कृष्ण की लीला का गायन करना उचित समझा। 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' कार्य में, नौकरी या व्यवसाय में सफलता मंत्र मंगलवार के दिन- 'ऊं नमो भगवते पंचवदनाय ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रूं रूं रूं रूं रूं रुद्रमूर्तये स