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जिंदगी का जादू
छाया से दूर हुआ तो आंचल का मूल्य मैं जाना जब तपी ये दिल की धरती बादल का मूल्य मैं जाना वो छाया वो बदली बस एक जगह मिलती है सब मिलता दूर शहर में बस मां ही नहीं मिलती है पावस रजनी में जुगनू भट्ट के जैसे जंगल में पूछे राम जी वोन से कैसे हैं सब महल में वन में ना कोई दुख है पुण्य ज्योति जलती है देव मुनि सब मिलते बस मां ही नहीं मिलती है @गौतम माँ पर कविता
चेतन घणावत स.मा.
स्वरचित कविता ©chetan ghunawat विश्व हिंदी दिवस पर स्वरचित कविता
Adi_writes04
आजकल खुद से परे हो जाने कहाँ भटकते है ऐसा लगता है कि जैसे भीड़ मे हम खो गये हैं जैसे अपने आप को ही जगह जगह हम ढूंढते है । याद आता है वो आँगन प्यार बसता था जहाँ पर सामने छोटी सी बगिया झूमना फूलों का हंसकर राग भोपाली मे माँ का परमेश को प्रातःजगाना । बिजलियां जब चमकती थी या गरजती थीं घटाएँ दौड़कर डरती सहमती मा के आँचल मे सिमटती उस स्पर्श की उष्मा मेरे मन प्राण फौलादी बनाती। ठोकरे लगने से जब भी चोट खातीऔर तडपती पीठ सहला कुछ न कहती मौन संदेशा ये देती डर न तू तूफा से लड जा कदम चूमेगी सफलता। जाने कहाँ जा रही थी किन विचारों मे थी खोई सामने बिजली सी चमकी तू बडी है भाग्यशाली माँग ले जो जी मे आए आज दे दूँ जो तू माँगे। आज फिर मै खो गई हूं रुक गई थक हारकर हूँ। बख्श दे मुझको तू फिर से माँ के आँचल की वो साया जिसके तले विश्राम करने तू है जनमता बार बार । #RaysOfHope माँ पर कविता #Nojoto