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Stories related to हल्ले हल्ले

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अमरेश सिन्हा

त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में, #कविता

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जब तू ही नहीं मुहल्लें में, 
त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में, 
कउन सा रंग, लगिहे कउन अंग, 
किसको ढूंढे हम दो तल्ले में,
आ, जब तू ही नहीं मुहल्लें में, 
त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में।

लाल-हरा सब रंग मिलाईबे, 
भर अंगनवा खूब पियराई बे, 
कौन रंगिये हमके कल्ले में, 
फागुआ गुजरिये हाथ मल्ले में, 
आ, जब तू ही नहीं मुहल्लें में, 
त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में। त का रखा है ई हुल्लड़-हल्लें में,

Pawan Ojha

किसी किराने की दुकान से, तम्बाकू के पाउच ले आते। गली-गली में बच्चे दिखते, खुल्ल्म-खुल्ला गुटखा खाते। बाली उमर और ये गुट्खा, कैसे-कैसे रोग ब #NoSmoking #poem #notobaccoday

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Love Yourself and think about your family. #NoSmoking #NoTobaccoDay किसी किराने की दुकान से,
तम्बाकू के पाउच ले आते।
गली-गली में बच्चे दिखते,
खुल्ल्म-खुल्ला गुटखा खाते।

बाली उमर और ये गुट्खा,
कैसे-कैसे रोग ब

Vikas Sharma Shivaaya'

✒️📙जीवन की पाठशाला 📖🖋️ 🙏 मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की आजकल सभी जगह शादी-पार्टियों में खड़े #समाज

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✒️📙जीवन की पाठशाला 📖🖋️

🙏 मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की आजकल सभी जगह शादी-पार्टियों में खड़े होकर भोजन करने का रिवाज चल पडा है लेकिन हमारे शास्त्र कहते हैं कि हमें नीचे बैठकर ही भोजन करना चाहिए । 
खड़े होकर भोजन करने से हानियाँ तथा पंगत में बैठकर भोजन करने से जो लाभ हैं वे निम्नानुसार है:-

(1) यह आदत असुरों की है । इसलिए इसे ‘राक्षसी भोजन पद्धति’ कहा जाता है ।

(2) इसमें पेट, पैर व आँतों पर तनाव पड़ता है, जिससे गैस, कब्ज, मंदाग्नि, अपचन जैसे अनेक उदर-विकार व घुटनों का दर्द, कमरदर्द आदि उत्पन्न होते हैं । कब्ज अधिकतर बीमारियों का मूल है ।

(3) इससे जठराग्नि मंद हो जाती है, जिससे अन्न का सम्यक् पाचन न होकर अजीर्णजन्य कई रोग उत्पन्न होते हैं ।

(4) इससे हृदय पर अतिरिक्त भार पड़ता है, जिससे हृदयरोगों की सम्भावनाएँ बढ़ती हैं ।

(5) पैरों में जूते-चप्पल होने से पैर गरम रहते हैं । इससे शरीर की पूरी गर्मी जठराग्नि को प्रदीप्त करने में नहीं लग पाती ।

(6) बार-बार कतार में लगने से बचने के लिए थाली में अधिक भोजन भर लिया जाता है, फिर या तो उसे जबरदस्ती ठूँस-ठूँसकर खाया जाता है जो अनेक रोगों का कारण बन जाता है अथवा अन्न का अपमान करते हुए फेंक दिया जाता है ।

(7) जिस पात्र में भोजन रखा जाता है, वह सदैव पवित्र होना चाहिए लेकिन इस परम्परा में जूठे हाथों के लगने से अन्न के पात्र अपवित्र हो जाते हैं । इससे खिलानेवाले के पुण्य नाश होते हैं और खानेवालों का मन भी खिन्न-उद्विग्न रहता है

(8) हो-हल्ले के वातावरण में खड़े होकर भोजन करने से बाद में थकान और उबान महसूस होती है । मन में भी वैसे ही शोर-शराबे के संस्कार भर जाते हैं ।

 जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की 
बैठ कर (या पंगत में) भोजन करने से लाभ:-

(1) इसे ‘दैवी भोजन पद्धति’ कहा जाता है ।

(2) इसमें पैर, पेट व आँतों की उचित स्थिति होने से उन पर तनाव नहीं पड़ता ।

(3) इससे जठराग्नि प्रदीप्त होती है, अन्न का पाचन सुलभता से होता है ।

(4) हृदय पर भार नहीं पड़ता ।

(5) आयुर्वेद के अनुसार भोजन करते समय पैर ठंडे रहने चाहिए । इससे जठराग्नि प्रदीप्त होने में मदद मिलती है । इसीलिए हमारे देश में भोजन करने से पहले हाथ-पैर धोने की परम्परा है ।

(6) पंगत में एक परोसनेवाला होता है, जिससे व्यक्ति अपनी जरूरत के अनुसार भोजन लेता है । उचित मात्रा में भोजन लेने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है व भोजन का भी अपमान नहीं होता ।

(7) भोजन परोसनेवाले अलग होते हैं, जिससे भोजनपात्रों को जूठे हाथ नहीं लगते । भोजन तो पवित्र रहता ही है, साथ ही खाने-खिलानेवाले दोनों का मन आनंदित रहता है ॥

(8) शांतिपूर्वक पंगत में बैठकर भोजन करने से मन में शांति बनी रहती है, थकान-उबान भी महसूस नहीं होती ।

बाकी कल ,खतरा अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क 😷 है जरूरी ....सावधान रहिये -सतर्क रहिये -निस्वार्थ नेक कर्म कीजिये -अपने इष्ट -सतगुरु को अपने आप को समर्पित कर दीजिये ....!
🙏सुप्रभात 🌹
आपका दिन शुभ हो 
विकास शर्मा'"शिवाया" 
🔱जयपुर -राजस्थान 🔱

©Vikas Sharma Shivaaya' ✒️📙जीवन की पाठशाला 📖🖋️

🙏 मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की आजकल सभी जगह शादी-पार्टियों में खड़े

vishnu prabhakar singh

तिलक के दावत की प्रेसित पर पूर्णत मौखिक व्यवहार वाली सर्वमान्य निविदा प्राप्त कर लोग, सकारात्मक रूप से अच्छे दावत की अपेक्षा में ही रहेंगे।औ #story #yqbaba #yqdidi #विप्रणु

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'दावत'

जब से, लोगों को खिलाना-पिलाना नियम बन गया, तब से, दावत के माध्यम से ख़ुशी को दूना करना कम हो गया।जीवन के आपाधापी में दावतें आलिशान हो कर भी कंगाल होती गई, और तो और उपहार के पल्ले चढ़ गई।धनवान की दावत कतारबद्ध हो चुकी।इस परिवेश से सिमित रूप से अनछुये गांव में, आज तिलक का दावत है।गांव के अपने प्रपंच हैं!

दो होनहार युवा भाई का संयुक्त तिलक का दावत।

(कृपया, शेष कहानी अनुशीर्षक में पढ़ें) तिलक के दावत की प्रेसित पर पूर्णत मौखिक व्यवहार वाली सर्वमान्य निविदा प्राप्त कर लोग, सकारात्मक रूप से अच्छे दावत की अपेक्षा में ही रहेंगे।औ
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