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Mohan Somalkar

Sanskar

Gurudeen Verma

कविता

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White शीर्षक- इस ठग को क्या नाम दे
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बड़े नम्बरी होते हैं वो आदमी,
जो करते हैं शोषण छोटे आदमी का,
और छीन लेते हैं उधारी चुकाने के नाम पर,
गरीब आदमी की जमीन और आजादी।

लेते हैं काम छोटे आदमी को,
कोल्हू के बैल की तरह दिनरात,
एक वर्ष की मजदूरी बीस हजार देकर,
जबकि होते हैं खर्च पाँच हजार एक माह में।

लेता है ब्याज बहुत वो आदमी,
छोटे आदमी को देकर उधार रुपये,
बड़े ही ठाठ होते हैं इन आदमियों के,
जिनके होते हैं मकां महलनुमा।

होती है उनकी जिंदगी राजा सी,
जिनके एक ही आदेश पर,
हो जाते हैं सारे काम,
और हाजिर नौकर चाकरी में।

कमाता होगा इतने रुपये वह आदमी,
मेहनत की कमाई से कभी भी नहीं,
बनाता है वह अपनी इतनी सम्पत्ति,
भ्रष्टाचार और दो नम्बर की कमाई से।

लेकिन एक ऐसा आदमी भी है,
जो लेता है बड़े आदमी से भी ज्यादा दाम,
करता नहीं रहम वो अपने भाई पर भी,
और कोसता है वह बड़े आदमी,
इस ठग को क्या नाम दे।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #कविता

Shiv gopal awasthi

कविता #शायरी

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कविता

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©Harsh Sharma #कविता

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कविता

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कविता

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Hadaman Ram

कविता

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Jain Saroj

कविता

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Gurudeen Verma

कविता

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शीर्षक - अफसोस कि अब मुझको भी बदलना पड़ा जमाने के साथ
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मैं अपने विचार, तरीकें और रास्तें, 
नहीं चाहता था बदलना,
रहना चाहता था उसी अवस्था में,
जिसमें इंसान को नहीं होती है,
अंतर की समझ और चालाकी,
एक बच्चे की तरह दुनिया की,

मैं बाँटना चाहता था सबको,
अपनी खुशी और सुख निःस्वार्थ,
और हरना चाहता था मैं,
सभी की तकलीफें और दर्द को,
इसीलिए लिखता था खतो- कविता,
सबकी खुशहाली के लिए ईश्वर को।

देखता था मैं ख्वाब सभी के लिए,
उनके आबाद और सुखी होने के,
मैं याद करता था  हररोज उनको,
जिनसे मेरी मुलाकात हुई थी,
जो बनते थे सहारा मेरी तकलीफ़ में,
छटपटाता था मैं उनसे मिलने के लिए।

ऐसे में कर लिया था निश्चय मैंने,
उनको अपना सब कुछ अर्पण करने का,
लेकिन किसी ने नहीं ली मेरी खैरो- खबर,
परदेश में इतने वर्ष बीतने के बाद भी,
अफसोस कि मुझको बदलना पड़ा,
 जमाने के साथ जमाने की तरह।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #कविता
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