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Shravan Goud
ॐ देवी ब्रह्मचारिणी नमः।। दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलु। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।। या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। 🌹🌹🙏🙏 आभार: विकीपीडिया ॐ देवी ब्रह्मचारिणी नमः।। दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलु | देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा || या देवी सर्वभू
Poet Shivam Singh Sisodiya
जय जय जगन्नाथ शचीर नन्दन | त्रिभुवन कोरे जार चरण वन्दन || 🐚🔅📍🌷 नीलाचले शंख चक्र गदा पद्म धर | नदीया नगरे दण्ड कमण्डलु कर || 🙏🏻 केहो बोले पूरवे रावण बधिला | गोलोकेर वैभव लीला प्रकाश कोरिला || बंगाली महाकवि वासुदेव घोष जय जय जगन्नाथ शचीर नन्दन | त्रिभुवन कोरे जार चरण वन्दन || 🐚🔅📍🌷 नीलाचले शंख चक्र गदा पद्म धर | नदीया नगरे दण्ड कमण्डलु कर || 🙏🏻 केहो बोले पूर
B Pawar
शिव स्तुति 27/05/2018 🌐www.whosmi.wordpress.com 👇यहां नीचे पूरा पढें। शीतल ,जल , गंग की धारा हरगिरि पे उसका जैकारा ॐ ॐ गूँजे ओंकारा हरगिरि पे उसका जैकारा
KP EDUCATION HD
KP EDUCATION HD कंवरपाल प्रजापति समाज ओबीसी for ©KP EDUCATION HD बुध प्रदोष व्रत की पूजा शाम के समय प्रदोष काल में की जाती है. प्रदोष व्रत में शिव पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 06 बजकर 12 मिनट से रात 08 बजकर 36
Vikas Sharma Shivaaya'
नवरात्र के तीसरे दिन करें मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। मां के माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र सुशोभित है। इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। इनका वाहन सिंह है और दस हाथ हैं। इनके चार हाथों में कमल फूल, धनुष, जप माला और तीर है। पांचवा हाथ अभय मुद्रा में रहता है। वहीं, चार हाथों में त्रिशूल, गदा, कमंडल और तलवार है। पांचवा हाथ वरद मुद्रा में रहता है। मान्यता है कि भक्तों के लिए माता का यह स्वरू बेहद कल्याणकारी है। मां चंद्रघंटा के मंत्र: पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥ ध्यान मंत्र: वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्। सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥ मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्। खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥ 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 नवरात्रि के चौथे दिन मां के चौथे स्वरूप माता कूष्मांडा की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता कूष्मांडा ने ही ब्रहांड की रचना की थी। इन्हें सृष्टि की आदि- स्वरूप, आदिशक्ति माना जाता है। मां कूष्मांडा सूर्यमंडल के भीतर के लोक में निवास करती हैं। मां के शरीर की कांति भी सूर्य के समान ही है और इनका तेज और प्रकाश से सभी दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। मां कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं। मां को अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में जपमाला है। मां सिंह का सवारी करती हैं। देवी कूष्मांडा मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ध्यान मंत्र: वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्. सिंहरूढाअष्टभुजा कुष्माण्डायशस्वनीम्॥ सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च. दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥ – दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्. जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥ – जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्. चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥ 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' नवरात्र के तीसरे दिन करें मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। मां के माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र सुशोभित है। इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा क
Divyanshu Pathak
2. अष्टम ( 8 ) अंक- आठ देवी शैलपुत्री के बारे में हमने कल नव ( 9 ) अंक से जीवन के आरंभ से अनन्त की यात्रा के बारे में जाना।वे नदियों के रूप में हमारे समक्ष सदैव उपस्थित रहती हैं।आज मैया ब्रह्मचारिणी का दिन है और इन्हें हम ( 8 ) अंक के रूप में देखते हैं। जीवन के पहले आठ साल हम अपने माता पिता और परिवार के सानिध्य में ही रहते हैं। देवताओं में वसुओं (पृथ्वी, अग्नि, वायु, अंतरिक्ष, आकाश, ध्रुव, चंद्रमा, और सूर्य ) की संख्या भी आठ ही है। सिद्धियों की संख्या भी आठ है, योग के भी आठ अंग अष्टाङ्ग योग कहलाते हैं।भावनात्मक समझ और भाषा की बूझ का प्रथम सोपान 8 वर्ष की आयु में प्रकट होता है।जीवन चेतना और उसकी उन्नति के लिए आवश्यक शक्ति के इस स्वरूप का नाम ही ब्रह्मचारिणी' है। हम गौरी' माता के इस रूप को नमन करते हैं। 2. अष्टम ( 8 ) अंक- आठ देवी शैलपुत्री के बारे में हमने कल नव ( 9 ) अंक से जीवन के आरंभ से अनन्त की यात्रा के बारे में जाना।वे नदियों के रूप