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POONAM TIWARI

आम का अचार #Society

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Amit Singhal "Aseemit"

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MauryaJi

दाल चावल के साथ आम का अचारNotojasayari #शायरी #nojotovideo

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MasterChefkshma

एक दम आसान तरीके से बनाये आम का अचारfoodrecipe #chef #chefkunal #SanjeevKapoor #Home #जानकारी

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अंदाज़ ए बयाँ...

बदले बदले मेरे सरकार नज़र आते हैं कभी लगते थे आम, अब आम का अचार नज़र आते हैं

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बदले बदले मेरे सरकार नज़र आते हैं
कभी लगते थे आम, 
अब आम का अचार नज़र आते हैं बदले बदले मेरे सरकार नज़र आते हैं
कभी लगते थे आम, 
अब आम का अचार नज़र आते हैं

अंदाज़ ए बयाँ...

बदले बदले मेरे सरकार नज़र आते हैं, कभी लगते थे आम अब आम का अचार नज़र आते हैं।

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बदले बदले मेरे सरकार नज़र आते हैं, 
कभी लगते थे आम,
 अब आम का अचार नज़र आते हैं।
रविकुमार बदले बदले मेरे सरकार नज़र आते हैं, 
कभी लगते थे आम अब आम का अचार नज़र आते हैं।

अंदाज़ ए बयाँ...

बदले बदले मेरे सरकार नज़र आते हैं, कभी लगते थे आम अब आम का अचार नज़र आते हैं।

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बदले बदले मेरे सरकार नज़र आते हैं, 
कभी लगते थे आम,
 अब आम का अचार नज़र आते हैं।
रविकुमार बदले बदले मेरे सरकार नज़र आते हैं, 
कभी लगते थे आम अब आम का अचार नज़र आते हैं।

AK__Alfaaz..

#पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_में #क्या_थीं_वो..? क्या थीं वो, ​आग थीं, ​पानी थीं, ​आसमान थीं, #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqquotes #bestyqhindiquotes

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क्या थीं वो,
​आग थीं,
​पानी थीं,
​आसमान थीं,
​खूँटियों पर टँगी,
​तस्वीरों की मुस्कान थीं,
​
​​मिट्टी थीं,
​बिछौना थीं,
​संसार थीं,
​दरीचे से झाँकती,
​धूप का एहसास थीं,
​
​ #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_में

#क्या_थीं_वो..?

क्या थीं वो,
​आग थीं,
​पानी थीं,
​आसमान थीं,

Sunil itawadiya

मुझे गर्मियों का शाम याद आता है, जिस पर फेंका था पत्थर वो आम याद आता है, यहाँ तो है हर तरफ उजाले ही उजाले मुझे उस आँगन का वो अकेला चाँद याद #letters #YourQuoteAndMine #yolewrimo #प्यारेआम

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गर्मी से कर लेते हम कब की बगावत,
जो न देती कुदरत आम की रिश्वत. मुझे गर्मियों का शाम याद आता है,
जिस पर फेंका था पत्थर वो आम याद आता है,
यहाँ तो है हर तरफ उजाले ही उजाले
मुझे उस आँगन का वो अकेला चाँद याद

Dear diary

#MothersDay बचपन में छोटी छोटी ज़िद पर चोटी ही नहीं बनवाई । ऐसी लड़ाई मैंने माँ से ना जाने कितनी बार लड़ाई । लम्बी लम्बी आंहे भर के कितना स

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बचपन में छोटी छोटी ज़िद पर
चोटी ही नहीं बनवाई ।
ऐसी लड़ाई मैंने माँ से
ना जाने कितनी बार लड़ाई ।

लम्बी लम्बी आंहे भर के
कितना सुकुड़ कर  रोती थी ।

मुझे याद है , जब छोटी छोटी गलतियों की
वो डाँट कैसी होती थी!!

भरी दोपहर में चुपके से
मोहल्ला नाप आती थी ।

गुड्डे गुड़िया की शादी कराई, घर-घर खेला 
और छुपके से आकर सो जाती थी ।

अब बड़ी हो गई हूँ  और
गोल रोटी बनाना भी सीख लिया ।

और सीख लिया, माँ से घर को समेटना ,
खुद की ख्वाहिशों को दबाकर  घर का बजट बनाना ।

और सीखा मैंने आम का अचार , घर की सजावट ,
परिवार के रीति-रिवाज और परम्पराएँ निभाना । #MothersDay बचपन में छोटी छोटी ज़िद पर
चोटी ही नहीं बनवाई ।
ऐसी लड़ाई मैंने माँ से
ना जाने कितनी बार लड़ाई ।

लम्बी लम्बी आंहे भर के
कितना स
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