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LOGIC MATHS

बट्टा Type-4

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lafz 4 type

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 lafz 4 type

Shabana Nafees

20/4/20

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शहर में ज़िन्दगी मुसलसल मशीन पे कसती जाती है
कोट सूट के बोझ तले  रूह इंसान की दबती जाती है 20/4/20

Nirmala Pant

#Berukhi 20/4 #Motivational

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Shabana Nafees

20/4/21

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 ये चराग़ जो बुझ रहें हैं सहर तक उन्हें जलाये रखना होगा
 कि इस अमावस में अब उम्मीदों पे हि रोशनी का फ़रीज़ा है

    20/4/21

Shabana Nafees

4/7/20

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बढ़ चुकी हैं जो जानिब ए मंज़िल उन राहों को याद छूटा हुआ चौराहा करता है
बस गए परदेस में जो एक मुद्दत से उन लड़कों को याद गली का नुक्कड़ अब भी करता है 4/7/20

Shabana Nafees

4/7/20

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आग जो सूरज में थी पिघल के सब  बर्फ़ चाँद की बन गयी
गुज़रना मरहलों से ऐसा हुआ तासीर ज़िन्दगी की बदल गयी
 4/7/20

Shabana Nafees

17/4/20

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सर दे के अना बचा ली है मैंने
क़ीमत फिर भी कम हि अदा की मैंने 17/4/20

Shabana Nafees

17/4/20

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आज़माइश के इस दौर को , बेहतर होगा ज़ब्त के साथ गुज़ार दिया जाए
ग़म हम उठा लेते हैं  सब्र तुम कर लो, हिसाब मिलके तय कर लिया जाए 17/4/20

Shabana Nafees

14/4/20

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हम जब अपने घरों में सुकून से बैठें हैं
न जाने कितने ऐसे हैं जो इस वक़्त सड़क पर लेटे हैं
सर पर छत नहीं पेट में कुछ दिनों से दाना नहीं
बच्चों को क्या कह कर बहलायें बचा अब कोई बहाना भी तो नहीं
सैकड़ों किलोमीटर चल चुके हैं
थक कर टूट कर अब सड़क पर ही लेट चुके हैं
आंखें ख़ाली मिलों दूर  तक कोई उम्मीद नहीं  कोई आस नहीं
अपना गांव होता तो चिंता न होती 
पर परदेस में तो अपना मददगार भी कोई पास नहीं
 मेरा मन बेकल है ..मेरा एक सवाल है
क्या है कोई मसीहा उनके लिए भी मुअय्यिन
या ईश्वर के लिए भी इनकी ज़ात बेकार है ?
मर जाएंगे क्या ये यूँही एक एक करके
और पैदा होंगे अगले जन्म में फिर से कीड़े मौकौड़े बनके?
क्या फिर से पांच दिन की भूख से तड़पता अपने बच्चों को देख
कोई बेकस माँ  उठा के उन्हें बहती नदी में देगी फेंक
हम जब अपने घरों में  बैठ के सूकून से बोर हो रहे हैं
कुछ लोग हैं जो ज़िंदा रह भर सकें इसकी कोशिश में उलझे हुए हैं
 14/4/20
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