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Saurabh Raj Sauri
इश्क के मौसम में सूखे वृक्ष को,बचाने की,उत्सुकता दिल मे लिए फिरता हूँ लबालब भरी प्रीत की हर एक "अंजुरी" में, मैं फिर भी दरबदर भटकता हूँ किस्सा मोहब्बत का यूँहीं खत्म नही होने देगा "राज" शीरी फरहाद के मोहब्बत का पहलू ,मैं हीर के राँझे की प्रेम वास्तविकता हूँ ©Saurabh Raj Sauri अंजुरी♥️
अंजुरी♥️ #शायरी
read moreSaurabh Raj Sauri
"राज" दर्द का जानकार क्या करोगे,बेवजह शायर का कहीं दफन है ख्वाइशें ,कांटा लगा इश्क-ए-इजहार का "अंजुरी भर" रहा होगा नैनों का गुनाह दिल सजा काट रहा है बस,इस छोटी सी तकरार का ©Saurabh Raj Sauri "अंजुरी भर"
"अंजुरी भर" #Shayari
read moreरौशन कुमार प्रिय
मोहन नंदलाल बरसाने वन आयो मोहन नंदलाल बरसाने वनआयो बरसाने की गुंजरिया दाधी बेचन जाए, वात मिले बनवारी कर लियो बोआय कर लियो बोलय बैठ कदम के छाइयां रे दोना बनवाए ,दोना दोना दाढ़ी बांटे दाढ़ी दियो लुटाए दाढ़ी दियो लुटाए ताहि समय हरी आयो मोहन नंदलाल... होली न खेले श्यामरो आपन सासुराय भर पिचकारी मारे हो रंग उरे गुलाला रंग उडे गुलल बेला फुले चमेला जूही कांचनर फुलवा लोरहे मलिनिया गूथे नंदलाल माला पिन्हे कन्हैया हो जसोदा जी के लाल जसोदा जी के लाल ताहि समय हरी आयो मोहन नंदलाल बरसाने बन आयो हो ऊपर पहाड़ गरमोहवा , हो उपद पहाड़ गरमो हवा हो नीचे बराय दुकान बाराय नाय कट्रे पनवा रस बीड़ा लगाए रस वीडा लगाय बीड़ा न खा है कन्हैया जसोदा जी के लाल , जसैदा जी के लाल ताहि समय हरी आयो मोहन बंद लाल तबला बजे मंजीरा , हो तबला बजे मंजीरा धोलाक धुधू आय बाजे सरियांगिया रों य रों य हो रस बजे सितार रस बाजे सितार ताहि समय हरी आयो मोहन नंदलाल #लोकगीत
Manish Shrivastava
लोकगीत तोरी कोमल जुवानी, तुतरयानी | जेठ जमके परो, देखो मछरयानी || होंठ तोरे लाल-लाल, गोरे थे गाल-गाल | 2 भरी दुपहरिया, नजरयानी | जेठ जमके परो, हो गई भुतरयानी || लगन लगीं देखो, कजरयानी |2 जेठ जमके परो, देखो मछरयानी || कारे-कारे गुदना परे, गोरे -गोरे गाल पे | कैसी हो गई है, देखो गुदरयानी | जेठ जमके परो, देखो मछरयानी || लेखक:-मनीष श्रीवास्तव (अर्श) गैरतगंज मो.9009247220 ©Manish Shrivastava लोकगीत
लोकगीत #शायरी
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