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BANDHETIYA OFFICIAL
याद आता है रामानंद सागर के श्री कृष्ण धारावाहिक का महर्षि उत्तंग और कृष्ण की भेंट का दृश्य- दोषी कृष्ण उत्तंग की दृष्टि में महाभारत न रोक पाने के और शाप देने को उद्यत उत्तंग ,तब कहा कृष्ण ने सीधे-सीधे और सटीक- मुझसे,मेरी इच्छा से शाप फलित होता , मैं तो सबसे परे । क्यूं व्यर्थ तुम नष्ट करते तपोबल , हो जाएगा शून्य पुण्य वह, हो जायेगी क्षीण वो शक्ति । मैं तो बस हूंगा, हूं,निष्प्रभाव । रही गांधारी की बात तो, शाप फलित होगा- मैं चाहूं, जानूं कल क्या होना और हमारे परिजन कैसे और क्या पायें परिणाम ! निष्कर्ष :--- बस गांधी को कोसते जन से है कहना- मत उत्तंग बनो, कृष्ण-चिरंतन हैं गांधी होते जाते सनातन और बधिक का नाम भुलेगा पूर्व जन्म का बाली वानर ! ©BANDHETIYA OFFICIAL कृष्ण-बधिक ! अधिक से अधिक पूर्व जन्म का बाली-वानर! #BookLife
Vandana
कुछ तो बात है, कुछ तो बात जरूर है। बिन देखे जान लेते हैं मेरी चाह क्या है। परख लेते हैं गुणी इंसान को, ऐसा उनमें अद्भुत व्यक्तित्व है। Dedicating a #testimonial to Sushil Jain मेरे पिता सोल्जर है वह देश के लिए समर्पित है।🙏 पर हम उनके प्रेम से महरूम रहहते है ।💜 आज आपके प्
Vivek
पूर्व जन्म की किसी प्यारी कहानी जैसा प्यार...!!! ©Vivek # पूर्व जन्म
ankit saraswat
जनम जनम का साथ, हम निभाऐंगे इसी वादे के साथ जिंदगी में आये थे, और बस एक साल में ही, अब वो वादा किसी और को था, और अब वो किसी और की अमानत थे।। #अंकित सारस्वत # #साथ जन्म जन्म का
✍️NOOR ✍️
जनम जनम का साथ, जन्म जन्म का साथ था फिर तू बदला कैसे।। मेरा दिल तोड़कर किसी और का खरीदा कैसे। तेरे मेरे गिर्द तो एक दायरा था कसमों का। अरे बेवफा तू ओ दायरा तोड़के निकला कैसे। जन्म जन्म का साथ था फिर तू बदला कैसे।। जन्म जन्म का साथ।।।
Rajesh rajak
तुम भूखे रह कर,बेदना बिरह की सहकर, मेरी पायल,मेरी चूड़ी,रहे अमर, मांग में इक लंबी सिंदूर की रेखा खींचकर, ईश्वर से प्रार्थना करती हो मेरी दीर्घायु की, करती हो हमेशा मांग सिर्फ मेरे लिए, मन वचन प्राण वायु की हे प्रिय,ये मोहब्बत नहीं शक है तुम्हारा, तुझे मैंने सिर्फ एक बार में मांग लिया था खुदा से ये कह कर ,,तुझे देना ही पड़ेगा हक है हमारा। शंकित मन मत करो,जन्म जन्म का साथ है हमारा तुम्हारा। जन्म जन्म का साथ हमारा
Parasram Arora
महाभारत के बरबर युग से लेकर ब्रलिन के पतन तक न जाने कितने युद्ध हुए.... कई सभ्यताये जन्मी और नष्ट हुई कई राष्ट्र नए बने कई उजड़े रक्त रंजीत हुए.... सक्ताओ....के उलट फेर हुए शस्त्रों क़ी होड़ मे लाशों के मजमे लगे नर्क जीवंत हुए...अहं के कद बढ़ते चले गए ...नफ़रत के विषैले बीज़ पनपे और अंधी महत्वकक्षाओं क़ी दौड़ मे आदमी और आदमियत दर बदर हुए ज़मीन क़ी परतो मे सात सात तहे लाशों क़ी बिछती चली गई ...और आज हम आधुनिक युग मे पहुंच गए जहाँ आतंकित सांस्कृति ने जन्म लिया और बची खुची आदमियत भी नेस्त नाबूद होने के कगार पर पहुंच गई कदाचित भोर क़ी इस बेहद बहूदी सफेदी मे एक बिधवसक दानवी अपरिशकृत मानवता "आतंकवाद को जन्म देने मे सफल हुई है ©Parasram Arora आतंकवाद का जन्म