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Shashi Bhushan Mishra
कोठी बंगले खड़े हुए, लालच से हैं भरे हुए, लगते तो इंसानों जैसे, पर अंदर से मरे हुए, बाहूबली कहाने वाले, रहते हरदम डरे हुए, बचपन से यादें संजोई, देख देखकर बड़े हुए, राज पाट राजा रजवारे, मिट्टी में सब गड़े हुए, शानो-शौकत देखो सारे, यहीं धरा पर पड़े हुए, मोर मुकुट तलवारें सारी, हीरा मोती जड़े हुए, हरि से नाता जोड़े 'गुंजन', अंदर बाहर हरे हुए, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ• प्र• ©Shashi Bhushan Mishra #अंदर बाहर हरे हुए#
'मनु' poetry -ek-khayaal
i_m_charlie...
White गर्मियों के मौसम में गांव में खुले आसमान के नीचे सोने का जो एहसास है वो अद्वितीय है, पर शहर में जाकर वो सब अब एक ख्वाब सा लगता है, क्यूंकि वहा ना तो गांव जैसा माहौल होता है और ना ही वैसा खुला आसमान मिलता है। ©i_m_charlie... #Romantic शहर में जाकर जैसे जिंदगी रूक सी गई है।
bhim ka लाडला official
bhim ka लाडला official
Yogi Sonu
बाहर की सब खोज व्यर्थ है ? बाहर ईश्वर मिल भी जाए तो क्या करोगे । वह तो भीतर ही बस्ता है ! ©Yogi Sonu #sadak बाहर की सब खोज व्यर्थ है ? बाहर ईश्वर मिल भी जाए तो क्या करोगे । वह तो भीतर ही बस्ता है !