Find the Latest Status about बेटियों की विदाई from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, बेटियों की विदाई.
KHINYA RAM GORA
कौन कहता है माँ का कलेजा दुनिया में सबसे नरम है, मैंने बेटियों की विदाई में अक्सर पिता को टूटते हुए देखा है।✍🏻 ©KHINYA RAM GORA कौन कहता है माँ का कलेजा दुनिया में सबसे नरम है, मैंने बेटियों की विदाई में अक्सर पिता को टूटते हुए देखा है।✍🏻 4.2.23
Divya Joshi
Dear Dad मैं उन्हें डैड नहीं पापा कहती हूँ। मेरी लिखी सबसे पहली कविता उनके लिए ही थी। इसलिए कविता शायद कच्ची हो पर भाव पक्के हैं और रहेंगे। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पिता हैं वे मेरे लिए। पिता से नज़दीकी का एहसास अधिकतर बेटियों को शादी के पश्चात् ही होता है। उनसे दूरी बहुत सालती है। बचपन से शादी तक मेरे, मेरे पिता से रिश्ते और उनके साथ के अनुभव पर आधारित मेरी इक पाती…………dj मेरे पापा पापा हैं वो .……… जो बचपन में गुड़िया रानी कहकर बुलाते थे, मेरी राजकुमारी कहकर प्यार से गोद में उठाते थे, मेरे होठों की हँसी में छिपे दर्द को तुरंत भाँप जाते थे, आख़िर पापा हैं वो........ जो बचपन में मुझे गुड़िया रानी कहकर बुलाते थे। हाथ पकड़ मुझे 'अ' 'आ' लिखना सिखाते थे, उंगली थामकर मुझे 'बस-स्टॉप' तक छोड़ने जाते थे, पापा हैं वो.……… जो मुझे गुड़िया रानी कहकर बुलाते थे। पुरूस्कार मिलने पर प्यार से गले लगाते थे, 'रिज़ल्ट' मेरा आता और ख़ुद, खुशी से झूम जाते थे, मेरे पापा हैं वो .……… जो मुझे गुड़िया रानी कहकर बुलाते थे। बचपन में मुझे कहानियाँ और गीत सुनाते थे, पर कितनी लाड़ली हूँ उनकी, ये कहकर कभी न जताते थे, पापा हैं वो .……… जो मुझे गुड़िया रानी कहकर बुलाते थे। मेरे 'मन' की बिना कहे जान जाते थे, हर मुसीबत में ढाल मेरी बन जाते थे, पापा हैं वो .………जो मुझे गुड़िया रानी कहकर बुलाते थे, सही-ग़लत/अच्छे-बुरे हर फ़ैसले में मेरा साथ निभाते थे, और मेरी आँखों में आँसू का इक क़तरा भी वो देख न पाते थे, मेरे पापा हैं वो .……… जो मुझे गुड़िया रानी कहकर बुलाते थे। हर मुसीबत में तो उनके आँसू, आँखों में थम जाते थे, पर 'बेटियों' की विदाई पर न चाहकर भी छलक ही आते थे , क्योंकि पापा हैं वो .……… जो मुझे गुड़िया रानी कहकर बुलाते थे। dedicated to my पापा with lots of लव and रिस्पेक्ट (स्वरचित) dj कॉपीराईट © ©Divya Joshi मैं उन्हें डैड नहीं पापा कहती हूँ। मेरी लिखी सबसे पहली कविता उनके लिए ही थी। इसलिए कविता शायद कच्ची हो पर भाव पक्के हैं और रहेंगे। दुनिया क
Priya Kumari Niharika
शीर्षक :स्त्री संघर्ष उठ रहा जो धुआं, हर शहर हर गली जा रही नारियां, देखो उससे छली बनके नारी भी जीने से,क्या फायदा? गर चढ़े हर घड़ी,आबरू की बली बनके बेटी जन्म लूं,क्यों आखिर कहो? गर दफन कर मनाए न, मातम कोई बेबसी में कोई गर, दफन ना करें क्यू जियूं बनके मैं, बेबसी ही कोई हर किसी के ही ताने, मैं कैसे सुनु बोझ लगते हैं सबको, क्यू मेरे जूनूँ कि याद आऊं किसी की,दुआ में नहीं कह दो आखिर मैं क्यू,बद्दुआ ही बनु गीत की गूंज से गर, थिरक जाए पग डांटकर, संस्कारे जपे सारे जंग कि द्वार खुलते नहीं, बस हमारे लिए बांधकर बेड़ियां, रोकते मेरे डग नींद में गर रहूं,तो ये सोने न दे जाग जाऊं तो बदलाव बोने न दे कोशिशे करके गर, स्वप्न देखू कोई स्वप्न पूरे भी शायद, ये होने ना दें बिन दहेज के ब्याह,न होता यहां बाप कर्जे में सबकुछ हैं, खोता यहाँ बेटियों की विदाई हुई, ज़ब कभी घर का चूल्हा महीने है,रोता यहां जिसका उज्जवल भविष्य, बनाया कभी क्यों अंधेरे में छोड़ के, जाता है वो जिसको गिरने से अक्सर,बचाया कभी क्यों न देकर सहारा,उठाता है वो जन्म से मौत तक,हर सितम मैं सहू अपनी पीड़ा नहीं मैं,किसी से कहूं क्या हमें आंकोगे,अपनी आंखों से तुम मैं धरा पर सुधा बन हमेशा बहू जिंदगी से खफा,शर्मिंदा हूं मैं बावजूद इतने सबके भी,जिंदा हूं मैं कब अहम त्यागकर, तुम समझ पाओगे कि तेरे आंगन की पावन सी वृंदा हूं मैं स्वरचित कविता- प्रिया वर्मा ©Priya Kumari Niharika शीर्षक :स्त्री संघर्ष उठ रहा जो धुआं, हर शहर हर गली जा रही नारियां, देखो उससे छली बनके नारी भी जीने से,क्या फायदा? गर चढ़े हर समय आबरू की
ज़िंदादिल संदीप
ज़ख्म गहरा है अभी ..मरहम तो होने दो.. रातें बांकी है अभी ..शबनम तो होने दो.. चले जाएंगे हम तेरी बस्ती से मायूस ही सही .. ज़िंदादिल के दिल को हमेशा के लिए ख़तम तो होने दो ।।।।। ज़िंदादिल की विदाई
Rahul Keshwanshi
दिसंबर की विदाई बडा ही कडाई महसूस होती है भर-भर आंखे रोती है तेरे समय में जो भी सिखा खट्टा-मीठा,नमकीन,और तिखा सब मैंने स्वीकार किया सफल साल जो मिला मुझे ये तुने उपकार किया तेरी लख-लख बधाईयां ओ ऊपर वाले मूझे सफल साल दी करके प्याले बडी ही रंगीन रही ये साल मेरी। सुख दुःख समेटा खुशियां बांटी कुछ सिखा और कुछ सिखाया भी बड़ी ही महीन रही ये चाल मेरी।। बड़ी ही रंगीन रही ये साल मेरी।। दिसंबर की विदाई कवि-राहुल कुमार दिसंबर की विदाई
Anshupriya Agrawal
बेटी की विदाई पोस्टमार्टम के बाद, लाश चौखट आई थी,,, पापा धैर्य छोड़ते,,, मैया हाहाकार करती, कभी मूर्छित,कभी चीत्कार करती,, आंगन भूचाल आई थी, पांच वर्षीय, बेटी की विदाई थी।। कौन दरिंदा उठा ले गए, कुत्ते इसे नोंच खा गए,, वहशीयत ने इसे दबोचा, भेड़ियों ने इसे है रौंदा,, कोई चीखें सुन ना पाया,, सिसकी में ढला, मौन हो गया।। बच्ची खून में लथपथ, नग्न लेटी थी सड़क पर,, देख धरती मां भी, खून के आंसू रोइ थी, इस भार वहन से, तड़प -तड़प कर कितनी बार डोली थी।।। भरत के देश में, वीर,,, सिंहों के दांत गिनते थे,, आज शृगाल बने हैं, बच्चियों के, जिस्म से,खेलते हैं।।।। झूठी -मूठी , रूठा- रूठी, सूरत वो, भोली- भाली,, कौन बनाएगा, रंगोली, कैसे खेलेगा, कोई होली? कौन पायल पहनकर,, आंगन में झूमेगी? कस्तूरी चंदन बिना, कैसे जीवन बगिया महकेगी? कैसे दूं बिदाई बिटिया, सूनी- सूनी जीवन फुलवारी है, रोते पिता, बिलखती महतारी है।।।।। -अंशु # बेटी की विदाई