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Pruu upreti
Power and Politics राजनीति की जो महत्वाकांक्षा है वह दूसरों के शोषण की है जब तक शोषक निम्न वर्ग और मध्य वर्ग का शोषण नहीं करेगा वह शासन कर नहीं सकता और लोकतंत्र में तो हमने यह कमान अपने हाथ से दूसरों को दे रखी है । चाहे कोई भी पार्टी का हो या किसी भी समुदाय से वह आता हो, राजनीति में आना ही वहीं चाहता है जो दूसरों के शोषण का इरादा रखता है । #politics समरथ को नहिं दोष गुसाईं ।
#Politics समरथ को नहिं दोष गुसाईं ।
read moreसमरथ पाटीदार
एक दिन ऐसा होगा कि फ़कत हम तो मिलते रहेंगे पर मोहब्बत हमारी न रहेगी! एक दिन ऐसा होगा कि लब ख़ामोश हमारे हो जाएंगे पर डायरी हमारी सब कहेगी! एक दिन ऐसा होगा कि एक दूजे से हम जुदा हो जाएंगे पर यादें एक-दूजे से जुड़ी रहेंगी!! #समरथ #oneday फ़कत हम तो मिलते रहेंगे पर मोहब्बत हमारी न रहेगी! एक दिन ऐसा होगा कि लब ख़ामोश हमारे हो जाएंगे पर डायरी हमारी सब कहेगी! एक दिन ऐसा होग
Vikas Sharma Shivaaya'
शनिदेव जी का तांत्रिक मंत्र - ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः ॐ हं पवननन्दनाय स्वाहा।' हनुमानजी के दर्शन सुलभ होते हैं, “ गुरू बिनु ऐसी कौन करै-माला-तिलक मनोहर बाना,लै सिर छत्र धरै। भवसागर तै बूडत राखै, दीपक हाथ धरै-सूर स्याम गुरू ऐसौ समरथ, छिन मैं ले उधरे। “ सूरदास जी कहते हैं कि चेलों पर गुरू के बिना ऐसी कृपा कौन कर सकता है कि वे गले में हार और मस्तक में तिलक धारण करते हैं। शीर्ष पर छत्र लगा होने से उनका रूप अत्यंतन्त मनमोहक हो जाता है। संसार -साबर में डूबने से बचाने के लिए वे अपने छात्र के हाथ में ज्ञान रूपी दीपक देते हैं। ऐसे गुरू पर बलिहारी जाते हुए सूरदास जी कहते हैं कि हमारे गुरू श्रीकृष्ण के इतने समर्थ हैं कि उन्होंने एक ही पल में मुझे इस संसार-सागर से पार कर दिया। 🙏 बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' शनिदेव जी का तांत्रिक मंत्र - ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः ॐ हं पवननन्दनाय स्वाहा।' हनुमानजी के दर्शन सुलभ होते हैं,
शनिदेव जी का तांत्रिक मंत्र - ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः ॐ हं पवननन्दनाय स्वाहा।' हनुमानजी के दर्शन सुलभ होते हैं, #समाज
read moreरजनीश "स्वच्छंद"
कुछ शेष नहीं है कहने को। अवशेषों का ढेर लगा, कुछ शेष नहीं है कहने को। स्वांग रचाया इतना मैंने, कुछ शेष नहीं है ढकने को। बर्बख्त मैं खुद को छलता हूँ, आवारा सा हुआ मैं चलता हूँ। कोई सोच नहीं, दृष्टि भी नहीं, बस उगता और मैं ढलता हूँ। जीवन पथ पर चला नहीं मैं, बस पांव हवा में चलाता हूँ। जो जमीं टटोली कल मैने, त्रिशंकु बन लटका पाता हूँ। कब हुआ सवेरा, शाम ढली, मुर्गा भी नहीं कि बांग दूँ मैं। भवसागर में गोते खाता हूं। हनुमान नहीं कि लांघ दूँ मैं। समरथ माने बैठा निज को, सत्य असत्य का ज्ञान नहीं। मैं ही दानव, था दैव भी मैं, निज का कतई था भान नहीं। आज अकेला बैठा हूँ, कुछ शेष नहीं है छलने को। अवशेषों का ढेर लगा, कुछ शेष नहीं है कहने को। केवट मुझको दिखा नहीं, जो खेकर पार लगा पाता। मुख पर जल की दे दो बूंदे, मुझ सोये को जगा पाता। सबरी भी नहीं थी बैर लिए, मैं जूठन के मानो योग्य नहीं। हनुमान सा तारणहार मिले, जुट पाया ऐसा संयोग नहीं। जिस पत्थर पर नाम लिखा, घुटने भर पानी में डूब गया। किस आस कदम बढाऊँ मैं, भगवन भी मेरा है रुठ गया। नीर भरी आंखों से मैं अब, अपने पदचिन्ह मिटाता हूँ। ले लेखनी निज बिम्ब बना, दर्पण मैं सबको दिखाता हूँ। अश्रुधार भी सूख गए, कुछ शेष नहीं है बहने को। अवशेषों का ढेर लगा, कुछ शेष नहीं है कहने को। ©रजनीश "स्वछंद" कुछ शेष नहीं है कहने को। अवशेषों का ढेर लगा, कुछ शेष नहीं है कहने को। स्वांग रचाया इतना मैंने, कुछ शेष नहीं है ढकने को। बर्बख्त मैं खुद को
Divyanshu Pathak
कायर और कपूतों की ना अब हमको दरकार रही उठो हमारे वीर सपूतो अब दुष्टों का संहार करो जो घर में छुपकर बैठे अपनी इज्जत लुटती देख रहे डूब मरो चुल्लू भर पानी में या अब कोई अवतार धरो माँ दुर्गा और भवानी रोती भारत माँ की छाती टूटी कब तक तुम निष्प्राण रहोगे अब तरकस में बाण भरो ट्विंकल और दामिनी देखी लक्ष्मी और कामिनी देखी आंखों में खून नहीं लाये तुम कुए में जाकर कूद मरो धरने देकर शमां जलाकर अब वक्त न तुम बर्वाद करो कहदो सरकारों से अपनी या संविधान को ताक धरो उठो धरा के वीर पहरुओं अब कर में तलवार भरो कोई सोचकर देखे कि “ट्विंकल” की मां क्या सोच रही होगी- कि लड़की उसके पेट से पैदा ही क्यों हुई। उसे कौनसे कर्म की सजा मिली है। आज देश में रोजान
कोई सोचकर देखे कि “ट्विंकल” की मां क्या सोच रही होगी- कि लड़की उसके पेट से पैदा ही क्यों हुई। उसे कौनसे कर्म की सजा मिली है। आज देश में रोजान
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