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नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर इक उमर की चाहत थी, इक लम्हे की दस्तक, दरवाज़ा खुला तो ख्वाबों का सफर निकला। जो दिन था मुक़द्दर का, वो भी कुछ यूँ बीता, जैसे का

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इक उमर की चाहत थी, इक लम्हे की दस्तक,
दरवाज़ा खुला तो ख्वाबों का सफर निकला।

जो दिन था मुक़द्दर का, वो भी कुछ यूँ बीता,
जैसे काग़ज़ पर गिरा, पानी का असर निकला।

अरमान सजे थे जिनसे रोशन मेरी दुनिया,
वो चिराग़ जला लेकिन हवा का असर निकला।

मिलन की घड़ी आई तो जुदाई के साए थे,
जिसे चाहा था अपना, वो भी बेख़बर निकला।

ख़्वाबों की हक़ीक़त में जो देखा था कभी हमने,
आईना दिखाया तो हर शक्ल बदल निकला।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
इक उमर की चाहत थी, इक लम्हे की दस्तक,
दरवाज़ा खुला तो ख्वाबों का सफर निकला।

जो दिन था मुक़द्दर का, वो भी कुछ यूँ बीता,
जैसे का

नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर तूफ़ान आए तो मेरा हौसला देखो, डूबता हूँ, उभरता ज़रूर हूँ। गिरकर फिर से खड़ा, तूफ़ानों से लड़ने का तरीका, ढूंढता ज़रूर हूँ।

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तूफ़ान आए तो मेरा हौसला देखो,
डूबता हूँ, उभरता ज़रूर हूँ।
गिरकर फिर से खड़ा, 
तूफ़ानों से लड़ने का तरीका, ढूंढता ज़रूर हूँ।

राहें कठिन हो, फिर भी रुकता नहीं ,
गिरते हुए भी खुद को सम्भालता हूँ,
 हार नहीं मानता कभी, 
हर हाल में जूझता ज़रूर हूँ।

हर चोट ने मेरी पहचान बनाई है,
जो गिरा, उसने उठने की कहानी सुनाई है।
राख से उगने की आदत है मुझमें,
जलकर भी खुद को जलाता ज़रूर हूँ।

मुश्किलें मुझसे हार मान जाती हैं,
मेरे इरादे हर मोड़ पर मुस्कुराते हैं।
ज़िंदगी के हर तुफ़ान को मैंने देखा है,
पर ख़ुद को हर बार आज़माता ज़रूर हूँ।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 


तूफ़ान आए तो मेरा हौसला देखो,
डूबता हूँ, उभरता ज़रूर हूँ।
गिरकर फिर से खड़ा, 
तूफ़ानों से लड़ने का तरीका, ढूंढता ज़रूर हूँ।

नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर सूरज हूँ, हर शाम ढलता ज़रूर हूँ, पर हर सुबह फिर से जलता ज़रूर हूँ। जितनी बार गिरा हूँ, उतनी बार सीखा हूँ, हर चोट ने मुझे और सश

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सूरज हूँ, हर शाम ढलता ज़रूर हूँ,
पर हर सुबह फिर से जलता ज़रूर हूँ।

जितनी बार गिरा हूँ, उतनी बार सीखा हूँ,
हर चोट ने मुझे और सशक्त किया, ज़रूर हूँ।

राहें कांटों से भरी हों, फिर भी चलता हूँ,
तक़दीर खुद की बदलता ज़रूर हूँ।

दूरियाँ चाहे जितनी बढ़ें मुझसे,
वो मेरी मंज़िल, फिर भी मेरे कदमों तक पहुँचता ज़रूर हूँ।

लहरों से डरकर मैं किनारे नहीं बैठता,
 तूफ़ान से भी टकराता ज़रूर हूँ।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
सूरज हूँ, हर शाम ढलता ज़रूर हूँ,
पर हर सुबह फिर से जलता ज़रूर हूँ।

जितनी बार गिरा हूँ, उतनी बार सीखा हूँ,
हर चोट ने मुझे और सश

Swati harvansh

#झुमका #लव @writer

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माथे पे सजी बिन्दिया तेरी पसन्द की
 झुमके की मै शोकीन प्रिय
 आखो मे काजल तुमको भाय ओर् तेरे इन्त्ज़ार मे 
मै लीन प्रिय

©Swati harvansh #झुमका #लव 
@writer

Sarfaraj idrishi

#Sands किसी को कमज़ोर और हक़ीर ना समझो क्योंकि रास्ते में छोटा सा पत्थर भी आपको मुँह के बल गिरा सकता है, Dhanraj Gamare Achman Chitranshi

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Red sands and spectacular sandstone rock formations किसी को कमज़ोर और  छोटा ना समझो 
क्योंकि रास्ते में छोटा सा पत्थर भी 
आपको मुँह के बल गिरा सकता है,

©Sarfaraj idrishi #Sands किसी को कमज़ोर और हक़ीर ना समझो क्योंकि रास्ते में छोटा सा पत्थर भी आपको मुँह के बल गिरा सकता है, Dhanraj Gamare  Achman Chitranshi

Rakesh frnds4ever

#टूटा टूटा एक #परिंदा ऐसे टूटा की फिर जुड़ ना पाया लूटा लूटा किसने उसको ऐसे लूटा की फिर #उड़ ना पाया गिरता हुआ वो #आसमां से आकर गिरा ज

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Goldi Raunak Yadav

झुमका♥️ प्रशांत की डायरी Irfan Saeed करम गोरखपुरिया विश्वा " nath Ganesha•~•

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मेरे झुमकों की झमक में गुम हैं ,
न जाने कितने दर्द मेरे.....
मेरी आँखों की चमक ,
किस्मत के फैसलों पे भारी है...

©Goldi Raunak Yadav झुमका♥️ प्रशांत की डायरी  Irfan Saeed  करम गोरखपुरिया  विश्वा " nath  Ganesha•~•

Sk

दुश्मनों को सज़ा देने की एक तहज़ीब है मेरी, मैं हाथ नहीं उठाता बस नज़रों से गिरा देता हूँ।

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White दुश्मनों को सज़ा देने की एक तहज़ीब है मेरी, मैं हाथ नहीं उठाता बस नज़रों से गिरा देता हूँ।

©Sk दुश्मनों को सज़ा देने की एक तहज़ीब है मेरी, मैं हाथ नहीं उठाता बस नज़रों से गिरा देता हूँ।

Jayesh gulati

*सोलह शृंगार* मैं नासमझ, कहां समझता था, किसी शृंगार को । वो जिसने किए मेरे लिए सोलह शृंगार ।। पहले पहना माथे उन्होंने, माँग–टिका । जैसे बा

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सोलह शृंगार ।

(Read in caption)

©Jayesh gulati *सोलह शृंगार*

मैं नासमझ, कहां समझता था, किसी शृंगार को ।
वो जिसने किए मेरे लिए सोलह शृंगार ।।

पहले पहना माथे उन्होंने, माँग–टिका ।
जैसे बा
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