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Ashok Yadav Amit
🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️ *जीवन में जितनी रोशनी और सरल मार्गों की आवश्यकता है, उतनी ही आवश्यकता मुश्किलों और कठिनाईयों की भी है.* ओम शांति 🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️ ©Ashok Yadav Amit #Sea 🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️🧚🏽♂️ *जीवन में जितनी रोशनी और सरल मार्गों की आवश्यकता है, उतनी ही आवश्यकता मुश्किलों और कठिनाई
एक इबादत
सिर्फ बाड़मेर हादसा नही देश में प्रत्येक दिवस ऐसे सैकडो़ दुर्घटनाऐं होती है जिनमें भीषण जान-माल की क्षति होती है, आखिर कब तक प्रशासन लाचार और लापरवाह रहेगा? कब तक परिवहन/यातायात नियमों की धज्जिया उडाई जाती रहेगी ... ? #महोदय अब तो शख्त कदम उठा लीजिए,सड़क दुर्घटना में मृत्यु आंकडा़ भारत को विश्व सूची में सर्वोच्च पहुंचा रहा है..!! 😔😠 मान्यवर गति विकास को देनी है मौत को नही, इस रफ्तार पर अंकुश जरुरी है मान्यवर! यह दुर्घटनाऐं ,हादसे भी राष्ट्र की गरिमा को ठेस पहुंचाते है!
Islam Khan
हिंडोली उपखंड क्षेत्र के ग्राम सथूर में गोरक्षा जन क्रांति यात्रा सथूर में निकाली गई! यात्रा तेजाजी चौक बस स्टैंड से होती हुई कस्बे के मुख्य
Satya Prakash Upadhyay
जैसे पेड़ की शाखाएं अलग-अलग होतीं हैं, और वो अपने सुविधानुसार जिधर प्रकाश मिलता है उधर बढ़ जातीं हैं परंतु पोषण तो सभी को एक जगह से हीं मिलना है। ठीक उसी प्रकार जिसकी जैसी मानसिक स्थिति और सोच होती है वो उस मजहब की ओर आकर्षित हो आगे बढ़ता है, घर और सामाजिक परिवेश का इसमे विशेष योगदान होता है। इसमे कोई बुराई भी नही। परिस्थिति तब विकट हो जाती है जब ये शाखाएं अपने मूल को भूल आपस मे ही संघर्ष करने पर उतारू हो जातीं हैं,और एक दूसरे को नष्ट करने के चक्कर मे कहीं न कहीं अपने पोषण के आधार को हीं घायल कर रही होतीं हैं।जो शाखा जितनी विशाल और समृद्ध होती है उस पर जिम्मेवारियां भी उतनी ही होतीं हैं। सभी अपने-अपने मार्गों पर चल कर, अपने कर्तव्यों का जब तक पालन करेंगे तब तक चाहे कोई किसी मजहब को माने कोई समस्या नही आ सकती। बस मेरी बात हीं सही, बाकी गलत,यही समस्या का मूल कारण है। satyprabha💕 जैसे पेड़ की शाखाएं अलग-अलग होतीं हैं, और वो अपने सुविधानुसार जिधर प्रकाश मिलता है उधर बढ़ जातीं हैं परंतु पोषण तो सभी को एक जगह से हीं मिलना
DURGESH AWASTHI OFFICIAL
भक्ति क्या है? भक्ति से क्या लाभ है? * भाव सहित खोजइ जो प्रानी। पाव भगति मनि सब सुख खानी॥ मोरें मन प्रभु अस बिस्वासा। राम ते अधिक राम कर दासा॥ भावार्थ:-जो प्राणी उसे प्रेम के साथ खोजता है, वह सब सुखों की खान इस भक्ति रूपी मणि को पा जाता है। हे प्रभो! मेरे मन में तो ऐसा विश्वास है कि श्री रामजी के दास श्री रामजी से भी बढ़कर हैं॥ भक्ति की भावना से ही हम इस सत्य को अनुभव करते हैं, कि ईश्वर ने हमे कितना कुछ दिया है।वह हमारे प्रति कितना उदार है। इससे हमें अपनी लघुता और उसकी महानताका बोध होता है, अपनी इच्छाओं और इंद्रियों पर नियंत्रण की शक्ति प्राप्त होती है ,और दूसरे जीवों के प्रति प्रेम काभाव पैदा होता है। भक्ति कैसे की जाती है? शास्त्रों में हमें अनेक प्रकार के भक्ति मार्गों का वर्णन मिलेगा।हमारे श्रीरूप गोस्वामी जी ने भक्ति के 64 तरीके बताए हैं। प्रहलाद ने श्रीमद््भागवत में भगवान को प्रसन्न करनेके 9 तरीके बताए हैं। ये हैं श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन व दास्य भाव आदि। श्री चैतन्य चरितामृतमें भगवान के ही मुख से कहलायागया है कि मैं पाँच तरह से बहुत प्रसन्न होता हूँ। ये हैं साधु-संग, नाम-कीर्तन, भगवत्-श्रवण, तीर्थ वास औरश्रद्धा के साथ श्रीमूर्ति सेवा। वे आगेकहते हैं कि इन पांचों में से यदि किसीमार्ग का अवलंबन श्रद्धा के साथ कियाजाए तो वह हृदय में भगवत प्रेमउत्पन्न करेगा। इस विषय में महाप्रभुकहते हैं कि नवधा भक्ति के नौ अंगों में से किसी एक अंग का भी आचरणकरने से भगवत-प्रेम की प्राप्ति होसकती है। परन्तु इन नौ अंगों में भीश्रवण, कीर्तन व स्मरण रूप श्रेष्ठ है। इन सभी मार्गों में श्रेष्ठ भक्ति मार्ग कौन सा है? सरल भक्त-जीवन मेंकेवल नामाश्रय ही सर्वोत्तम साधन हैभगवान की प्राप्ति का। नवधा भक्ति मेंभी श्रीनाम के जाप और स्मरण कोसर्वश्रेष्ठ बताया गया है। यदि निश्छलभाव से हरिनाम का कीर्तन किया जाएतो अल्प समय में ही प्रभु की कृपाप्राप्त होगी। नाम संकीर्तन करना हीभगवान् को प्रसन्न करने का सर्वोत्तमतरीका है, यही सर्वोत्तम भजन है। जिसयुग में हम रह रहे हैं, इस में तोभवसागर पार जाने का यही एक उपायहै। शास्त्र तो कहते हैं कि कलिकाल मेंएकमात्र हरिनाम संकीर्तन के द्वारा हीभगवान की आराधना होती है। नाम संकीर्तन का सुझाव किन ग्रंथों में दिया गया है? श्रीमद्भागवत कहता है कि कलियुग में श्रीहरिनाम-संकीर्तनयज्ञ के द्वारा ही आराधना करनाशास्त्रसम्मत है। वे लोग बुद्धिमान हैं जोनाम संकीर्तन रूपी यज्ञ के द्वारा कृष्णकी आराधना करते हैं। रामचरित मानसमें भी कहा गया है कि कलियुग में भवसागर पार करने के लिए राम नामछोड़ कर और कोई आधार नहीं है। कलियुग समजुग आन नहीं, जो नरकर विश्वास। गाई राम गुण गनविमल, भव तर बिनहिं प्रयास। पावन पर्बत बेद पुराना। राम कथा रुचिराकर नाना॥ मर्मी सज्जन सुमति कुदारी। ग्यान बिराग नयन उरगारी॥ भावार्थ:-वेद-पुराण पवित्र पर्वत हैं। श्री रामजी की नाना प्रकार की कथाएँ उन पर्वतों में सुंदर खानें हैं। संत पुरुष (उनकी इन खानों के रहस्य को जानने वाले) मर्मी हैं और सुंदर बुद्धि (खोदने वाली) कुदाल है। हे गरुड़जी! ज्ञान और वैराग्य ये दो उनके नेत्र हैं॥ नाम संकीर्तन में कथा श्रवण काक्या महत्व है? जीवन में ऐसाअक्सर देखने को मिलता कि किसीव्यक्ति या स्थान को हमने देखा तकनहीं होता, परन्तु उनके बारे में समाचारपत्रों व पत्रिकाओं में पढ़ने से हमें काफीआनंद मिलता है। ठीक इसी प्रकारभगवद धाम, आनन्द धाम, वहाँ केवातावरण या प्रभु की लीलाओं के बारेमें सुन कर हमें आनंद प्राप्त होता है, हमारा चित्त स्थिर होता है और चंचलमन भटकने से रुकता है। ये कथाएंहमारे वेद-शास्त्रों में वर्णित हैं, जिन्हेंपढ़ने या सुनने से हमें भगवान केविषय में कुछ जानकारी भी प्राप्त होतीहै। भजन -कीर्तन करने से क्याहोता है और इसे किस प्रकार करनाचाहिए? गोस्वामी जी कहते हैं किआप भक्ति का कोई भी मार्ग अपनाएं, उसे श्रीनाम कीर्तन के संयोग से हीकरें। इसका फल अवश्य प्राप्त होता हैऔर शीघ्र प्राप्त होता है। सब कहते हैंकि भगवान का भजन करो.....भजनकरो! तो क्या करें हम भगवान काभजन करने के लिए? सच्चे भक्तों केसंग हरिनाम संकीर्तन करना ही सर्वोत्तम भगवद भजन है। सच्चे भक्तों के साथमिलकर, उनके आश्रय में रहकर नाम-संकीर्तन करने से एक अद्भुत प्रसन्नताहोती है, उसमें सामूहिकता होती है, व्यक्तिगत अहंकार नहीं होता और उतनीप्रसन्नता अन्य किसी भी साधन सेनहीं होती, इसीलिए इसे सर्वोत्तमहरिभजन माना गया है। ||आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र:|| ©Surbhi Gau Seva Sanstan #BookLife भक्ति क्या है? भक्ति से क्या लाभ है? * भाव सहित खोजइ जो प्रानी। पाव भगति मनि सब सुख खानी॥ मोरें मन प्रभु अस बिस्वासा। राम ते अधिक
Ravendra
Ravendra
अशेष_शून्य
कुछ शेष है अगर कहीं और उसे खोने के भय से मैं ख़ुद को खो न दूं कहीं; इससे कहीं बेहतर है मैं उसे खो दूं अभी, जो कभी न कभी कहीं न कहीं मुझसे खोने ही वाला है। ~©Anjali Rai सब कुछ खोते खोते मैंने सब कुछ खोने का भय भी खो दिया । कुछ शेष है अगर कहीं और उसे खोने के भय से मैं ख़ुद को खो न दूं कहीं;
Divyanshu Pathak
मैं भारतीय जीवनशैली के वैभवशाली इतिहास में यहाँ की मिट्टी और पर्यावरण का विशेष योगदान मानता हूँ।आज हम प्रकृति के सामीप्य का ढोंग तो करते हैं लेकिन हमें ये पता नहीं होता कि ऋतुओं के अनुरूप पथ्य और अपथ्य क्या है?पहला सुख निरोगी काया तो सब जानते हैं। फिर भी भक्ष्य और अभक्ष्य का भेद भुलाकर "स्वाद" के ग़ुलाम हो नए रोगों को निमंत्रण देते हैं। घी- संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएं आपको। माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की पुण्यतिथि पर उनको सादर नमन। "भादवे का घी" भाद्रपद मास आते आते घास पक जाती है। जिसे हम घास कहते हैं। वह वास्तव में अत्यंत दुर्लभ #औषधियाँ हैं। इनमें धामन जो कि गायों को