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Ravikant Raut
पलकें बोझिल हो रही थीं मेरी उसके दिलासे की हर थपकी के साथ मेरे साथ मेरा शहर भी सोने चला था अब एक-एक कर
Prem Nirala
कि, इश्क़ में लफ़्ज़ों का ख़ामोश रहना भी ठीक लगता हैं यूँ आपका हमसे, हर वक़्त मशवरा भी ठीक लगता हैं, ये फ़कत(सिर्फ़) चंद लफ़्ज़ों का खेल नहीं था साहेब, खैर, अब कमरे की बत्तियां बुझाता कोई और भी ठीक लगता हैं कि, गुजरेंगी तुझे ले जाने वाली कईं रेलगाड़ियाँ मेरे शहर होते ही, ट्रेन रुकते ही प्लैटफॉर्म पे आपका आँख चुराना भी ठीक लगता हैं अपना लाज़िम ये भी था, कि मैं तेरे साथ कईं दफ़ा लेहज़े में रहा, कि, अब तेरा एक अज़नबी के साथ हमबिस्तर होना भी ठीक लगता हैं! __प्रेम__निराला__ कि, इश्क़ में लफ़्ज़ों का ख़ामोश रहना भी ठीक लगता हैं यूँ आपका हमसे, हर वक़्त मशवरा भी ठीक लगता हैं, ये फ़कत(सिर्फ़) चंद लफ़्ज़ों का खेल नह
thvachl ;
कौन हूँ , क्या हूँ , कहाँ हूँ , कैसी हूँ , क्या फ़र्क पड़ता हैं ; . . जिस रास्ते पे निकली थीं खुद की तलाश में , वो रास्ता छोटा और सरल ही हो ऐसा जरुरी तो नहीं हैं //- मेरा डर कभी-कभी मुझमे इस क़दर घर कर जाता हैं उस वक़्त मुझे उजाले में भी अंधकार सा नज़र आता है । जो मुझे मिला भी नहीं अभी तक मेरा दिल उसे भी खो
Darshan Blon
फिर दिदी और बाबा सोने चले गए और माँ मुझे कम्बलसे ढक कर, मेरे माथेको चूमते हुए कहने लगी: "बेटा भूत-वूत कुछ नहीं होता,सब तेरे मन में हैं,डरना ही है तो इंसानोसे डरके रहो " पूरी कहानी Caption में पढ़ें.... वो रात काफी ज़्यादा ठंडा थाl वैसे भी १२ मास ही दर्जीलिंग में तो लगभग ठंड ही रहता है और वो तो साल का आखरी महिना "दिसम्बर" था, तो शरीर जकड़ती
Sumit Mgr
हालात जमाने के संभलने नहीं देते हम साथ चलते हैं तो चलने नहीं देते नफ़रत की हवाओं को जमाने से मिटा दो उल्फत के चिराग जो जलने नहीं देते बुझा दो
Amit Saini
मेरा दिल भी कितना पागल है दिन में भी जलता है रात को भी जलता है तेरी यादों में स्ट्रीट लाइट की तरहा #Streetlight बुझा दो