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Ramkishor Azad
White प्रेम सरोवर धरती पर बरसे प्रेम की बगिया हर घर आंगन में महके, प्रेम प्यासे पंक्षी तरसे प्रेम की दुनियां हरियाली हर चेहरे पर चमके! डीयर आर एस आज़ाद... ©Ramkishor Azad #short_shyari #पर्यावरण #प्रेम #सरोवर #शायरी #treanding #viral #Life #हरियाली Pari.. sing with gayatri !!R@jni!! Nandani patel rasmi
Gaurav Prateek
White प्रकृति को बचाना है तो 🌳 पेड़ पौधे लगाना सीखो । वातावरण शुद्ध रखना है तो हर और हरियाली बढाना सीखो ।। प्रदूषित हवा से रहना है दूर वृक्षों के प्रति प्यार जगाना सीखो। । आग का गोला ना उगले सूरज तो पौधों को उगाना सीखो। । इस प्रकृति के लिए इकट्ठा होके अपने कर्तव्यों को निभाना सीखो। ©Gaurav Prateek #short_shyari #प्रकृति #हरियाली #hunarbaaj #EnviournmentDayspecial2024 Rajdeep Sneha Rajesh ali sha AD Grk almeet jassi Sm@rty Divi P@nde
AJAY NAYAK
पुराने दिनों के विद्यालय उन दिनों की बात ही न कीजिए जब झोला उठाए, पहुंच गए विद्यालय जब झोला उठाए, पहुंच गए घर बस रास्ते होते थे अलग अलग बस बहाने होते थे अलग अलग जाते थे तो एक बड़े से गेट से निकलते थे अलग अलग रास्तों से कहीं दिवाल फान कर तो कहीं कटीले तारों के बीच से कभी खुद का पेट दुख रहा है के बहाने से कभी दोस्त का दुख रहा है के बहाने से हद तो तब कर देते थे जब पापा मम्मी बीमार ही हो जाते थे उससे भी ज्यादा हद तब करके निकल जाते थे जब अपनी नाना नानी दादा दादी को ही मार देते थे आधे दिन की छुट्टी के लिए मार भी मिलती थी मास्टर से बहुत जब मौका मिलता था मौका फिर से कोई बहाना तरकीब निकाल निकल लेते थे वो दिन बड़े सुहाने थे न बोझ था न तनाव था जितनी हरियाली खेतो में थी उतनी हरियाली हमारे मनो में थी एक दूसरे के घर वालों को हर रोज मारकर हम सभी दोस्त एक ही रिक्शा में सवार हो घर जाते थे –अjay नायक ‘वशिष्ठ’ ©AJAY NAYAK #पुरानेदिनकेविद्यालय पुराने दिनों के विद्यालय उन दिनों की बात ही न कीजिए जब झोला उठाए, पहुंच गए विद्यालय जब झोला उठाए, पहुंच गए घर बस
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- अधरो पर आकर रुकी , मेरे मन की बात । देख देख रजनी हँसे , न होगी मुलाकात ।। रात अमावस की बड़ी , होती काली रात । सँभल मुसाफिर चल यहाँ , करती पल में घात ।। रात-रात भर जागकर , रक्षा करे जवान । अमन हमारे देश हो , किए प्राण बलिदान ।। कह दूँ कैसे मैं सजन , अपने मन की बात । रजनी मुझको छेड़ती , कह बिरहन की जात ।। रात-रात करवट लिया , तुम बिन थे बेहाल । एक-एक रातें कटी , जैसे पूरा साल ।। अपने दिल के मैं सभी , दबा रही जज्बात । समझाओ आकर सजन , रजनी करे न घात ।। नींद उड़ी हर रात की , देख फसल को आज । करता आज किसान क्या , रुके सभी थे काज ।। उन पर ही अब चल रहे , सुन शब्दों के बाण । रात-रात जो देश हित , त्याग दिए थे प्राण ।। जो कुछ जीवन में मिला , बाबा तेरा प्यार । व्यक्त न कर पाऊँ कभी , तेरा वही दुलार ।। हृदय स्मृतियों में चले , बचपन के वह काल । हाथ थाम चलते सदा , कहते मेरा लाल ।। जीते जी भूलूँ नही , कभी आप उपकार । कुछ ऐसे हमको दिए , आप यहाँ संस्कार ।। जीवन में ऐसे नहीं , खिले कभी भी फूल । एक परिश्रम ही यहाँ , है ये समझो मूल ।। बिना परिश्रम इस जगत , मिलते है बस शूल । कठिन परिश्रम से यहाँ , खिलते सुंदर फूल ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR अधरो पर आकर रुकी , मेरे मन की बात । देख देख रजनी हँसे , न होगी मुलाकात ।। रात अमावस की बड़ी , होती काली रात । सँभल मुसाफिर चल यहाँ , करती
Azaad Pooran Singh Rajawat
White "हरियाली होगी जहां बादलों को वहां आना ही होगा दिल खोल कर अपना पानी बरसाना ही होगा सुख समृद्धि होगी सर्वत्र पंछी भी ना प्यासा होगा ।" "जय श्री कृष्णा" ©Azaad Pooran Singh Rajawat #lonely_quotes #हरियाली #
Arora PR
White सावन ने भी अगर नहीं फुटा अकुर हरियाली का तो समझ लेना ये बादलों द्वारा की गई उपेक्षा हैं...... इंसमे खुदा क़ा कोई हाथ नहीं ©Arora PR हरियाली
Bharat Bhushan pathak
चित्रपदा छंद विधान:-- ८ वर्ण प्रति चरण चार चरण, दो-दो समतुकांत भगण भगण गुरु गुरु २११ २११ २ २ नीरद जो घिर आए। तृप्त धरा कर जाए।। कानन में हरियाली। हर्षित है हर डाली।। कोयल गीत सुनाती। मंगल आज प्रभाती। गूँजित हैं अब भौंरे। दादुर ताल किनारे।। मेघ खड़े सम सीढ़ी। झूम युवागण पीढ़ी।। खेल रहे जब होली। भींग गये जन टोली।। दृश्य मनोहर भाते। पुष्प सभी खिल जाते।। पूरित ताल तलैया। वायु बहे पुरवैया।। भारत भूषण पाठक'देवांश' ©Bharat Bhushan pathak #holikadahan #होली#holi#nojotohindi#poetry#साहित्य#छंद चित्रपदा छंद विध
Poet Kuldeep Singh Ruhela
Life Like जीवन भी एक पत्ते की तरह है मेरे भाई चार दिन हरियाली में रहकर सुख जाता है हरे भरे जीवन में भी एक दिन दुखो का आता है फिर बचपन से जवानी और बुढ़ापे में बिखर जाता है ©Poet Kuldeep Singh Ruhela #Lifelike जीवन भी एक पत्ते की तरह है मेरे भाई चार दिन हरियाली में रहकर सुख जाता है हरे भरे जीवन में भी एक दिन दुखो का आता है फिर बचपन से
Poet Kuldeep Singh Ruhela
Blue Moon कोई रुखसार से पर्दे को हटा दो मेरे चांदनी को आज जमी पर ला दो मुमकिन हो तो अमावस की रात में मेरे सनम का दीदार करवा दो कही छुप कर बैठा है दूर गगन में बदलो में घिरा हुआ कोई मेरी बात मेरे चांद तक पहुंचा दो आज रुखसार से आसमान का पर्दा हटा दो ! कुलदीप सिंह रुहेला ©Poet Kuldeep Singh Ruhela #bluemoon कोई रुखसार से पर्दे को हटा दो मेरे चांदनी को आज जमी पर ला दो मुमकिन हो तो अमावस की रात में मेरे सनम का दीदार करवा दो कही छुप क