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जगदीश कैंथला

वीर रस

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Neeraj Gautam

वीर रस कविता #Poetry

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 वीर रस कविता

prajjval

गाँधी वीर-रस

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कट्टरपंथी सोंच जँहा में ऐसा भी करवाती है।
गाँधी की छाती में नाथू की गोली लग जाती है।
लोग हज़ारों जश्न मनाते की हमने उपकार किया।
हत्या करके उनकी अपने देश का ही उद्धार किया।
माना नही योग्य इतने है कि पूजन की बात करूं।
पर बोलो जब घाव पड़ा हो क्यों सूजन की बात करूं।
माना गाँधी की गलती से देश मेरा बट जाता है।
पर हत्यारे की हत्या भी तो हत्या कहलाता है।
गर ऐसा ही महिमामंडन हम समाज में गाएंगे।
तो अपने बच्चे भी एक दिन हत्यारे बन जाएंगे।
औऱ जँहा भी पाप दिखेगा फिर गोली चल जाएंगे।
बोलो क्या अब यही देश में न्यायप्रणाली आएगी।
नही बोलता हूँ गाँधी ने ठीक सभी ही काम किया।
प्रश्न करो उन इतिहासों से क्यों बापू का नाम दिया।
एक तरफ बच्चे क़िताब में गाँधी जी को पढ़ते हैं।
एक तरफ हम अब भी नाथू-गाँधी पर ही लड़ते हैं।
दो तरफा बातें अक्सर मतभेद यँहा फ़ैलती हैं।
ज़्यादा कट्टरपंथ सोंच भी ज़हरीली हो जाती हैं।
 
©प्रज्ज्वल नीरा मिश्रा 
 #NojotoQuote गाँधी
वीर-रस

Ayush Pandagre

वीर रस प्रधान #nojotophoto

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 वीर रस प्रधान

Anjaan Saraswat

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Durgesh Bahadur Prajapati

वीर रस ....आँधियाँ चलने लगी...

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Anjaan Saraswat

युद्ध नाद 
००००००००००००००
नाना अनुनय के शंद पढे़,
हम याचनाएँ नित करते रहे,
पर उसने एक ना मानी है!
बस युद्ध हो ऐसी ठानी है।।

कमज़ोर पे उसने बल डाला,
चहूं और है ऐसा छल डाला,
कायर ने छाती तानी है,
बस युद्ध हो ऐसी ठानी है।

कुदृष्टी ऐसी प्रबल डाली,
सब बसुधा उसने खल डाली,
नित करता वह नादानी है,
बस युद्ध हो ऐसी ठानी है।

धम्भी ने जाल विछाया है,
बच्चा-बच्चा थर्राया है, 
खुद को समझे नाफानी है,
बस युद्ध हो ऐसी ठानी है।

वह कहता है 'भगवान हूँ मैं,
ना माने तो, शैतान हूँ मैं,
कोई ना मेरा सानी है',
बस युद्ध हो ऐसी ठानी है।

कई बार है उसको चेत्ताया,
हमने पुरज़ोर है समझाया,
हाय कैसा वह अज्ञानी है!
बस युद्ध हो ऐसी ठानी है।

हर जीव का उसने त्रास किया,
मनु जीवन का उपहास किया,
कैसा दम्भी अभिमानी है,
बस युद्ध हो ऐसी ठानी है।।

ऐसे पौरुष का लाभ है क्या?
डर कर जीने का भाव है क्या?
समझो, तब व्यर्थ जवानी है,
बस युद्ध हो ऐसी ठानी है।

अब फैंसला इसी क्षण होगा,
मिट्टी में मिट्टी तन होगा,
जब वीर धरा पर उतरेंगे,
अति घोर भयंकर रण होगा!
००००००००००००००००
कापि र० अंजान सारस्वत #अंजान#सारस्वत#कविता#वीर-रस

kaviyatri shivalini yadav

वीर रस की बेहतरीन कविता,,,,,,,,

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पवन आर्य

मेरा वीर रस ,तुम्हारा नया साल।

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देखों ऋषियों के बच्चों के घर  कैसे आज  सभ्यता  शर्मसार हैं,
जो हुआ करते थे चाणक्य वो आज केवल मुर्खता का प्रचार हैं,
यह बडे  भोले हैं मेरे हिन्दू, यह बिता  वक्त भुल जातें हैं,
जिन्होंने दिए केवल घाव,यह उनका नया साल मनाते हैं,

जिन्होंने इनके पुर्वजों को गिन-गिन  कर के काटा था,
जिनकी नीति ने इनके वतन को दो हिस्सों में बाटा था,
जिन चोरों  ने भारत  को दोनों  हाथों से लुटा था,
जिनके कारण शेर उद्धम सिंह का गुस्सा फुटा था,

यह  मुर्ख  मदमस्त  हो कर अपनी नीच मुर्खता को दर्शाते हैं,
यह भुल गए वीर शहिदों को, अंग्रेजों की औलाद कहलाते हैं,

जिन्होंने  सोने  की चिडिया  के पंखों पर आग  लगाईं थीं,
जिन्होंने जलियांवाला मे देशभक्तों पर गोलियां बरसाईं थीं,
जिन्होंने भारतीय  सभ्यता को  मिटने की  कगार पर छोडा था,
जिन्होंने मेरे आर्यावर्त की रिड की  हड्डी को बेशर्मी से तोडा था,

यह अपनी अज्ञानता के आगे लाचार हो जाते हैं,
भुल स्वाभिमान को यह अंग्रेजी भुत बन जाते हैं,

जिन्होंने वीर सावरकर को वर्षों तक घानी का बैल बनाया था,
जिन्होंने लाला लाजपतराय  को लाठियां मारकर मरवाया था,
जिन्होंने  चन्द्रशेखर आजाद  के बालपन  में कोडा मरवाया था,
 जिन्होंने आर्यवीर रामप्रसाद बिस्मिल को  धोखे से मरवाया था,

जो करें  शहीदों का  सम्मान वो  नया साल हरगिज नहीं मनाते हैं,
जो होते हैं कुछ अंग्रेजी भांड वो जरूर हेप्पी न्यू ईयर चिल्लाते हैं,

जिनका तुम नया साल मनाते हो उन्होंने भारत में दो सो वर्ष हाहाकार मचाया था,
मैं कैसे मनालूं नया साल उनका जिन्होंने मेरे भगत सिंह को फासी पे लटकाया था। मेरा वीर रस ,तुम्हारा नया साल।
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