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Ashutosh Mishra
White छल गया छलिया छल से मुझे,,,,,,,,,, ,,,,,,,,,,,,,,,,,मैं जान कर भी अंजान रहा वो क्या जाने ,,,,,,,,,,,,,,, ,,,,,,,,,,,,,,,,इस हार में भी जीत है मेरी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, अल्फ़ाज मेरे✍️🙏🙏 ©Ashutosh Mishra #mountain छल गया छलिया छल से मुझे मैं जाकर भी अंजान रहा वो क्या जाने,,,,, इस हार मे भी जीत है मेरी। #छल #छलिया KRISHNA Vaibhav's Poetry R
Shivkumar
White ये पर्वत कहता तुम शीश उठाकर , तुम भी ऊँचे बन जाओ । ये सागर कहता तुम लहराकर , तेरे मन में जो गहराई सा उसको लाओ । तुम समझ रहे हो न वो क्या कहती है , तु उठ-उठ कर और गिर-गिर कर तटल तरंग सा । तु भर ले अपने इस मन में , तेरी मीठी-मीठी बोल और ये मृदुल उमंग सा ॥ पृथ्वी कहती के ये धैर्य को न छोड़ो , इस सर पर भार कितना ही हो । नभ कहता फैलो इतना कि , तुम ढक लो ये सारा संसार को ॥ ©Shivkumar #mountain #Mountains #Nojoto #कविता ये #पर्वत कहता तुम शीश उठाकर , तुम भी #ऊँचे बन जाओ । ये #सागर कहता तुम लहराकर , तेरे मन में जो
Sudha Tripathi
White आल्हा छंद मुक्तक रामायण प्रसंग -जामवंत का हनुमान जी को आत्मबोध करना जामवंत कहते बजरंगी, चुप बन बैठे क्यों पाषाण। भूले हो क्यों अपनी क्षमता, किसमें है तेरा कल्याण।। न हो सके जो तुमसे बोलो, कठिन कौन सा ऐसा काम। नहीं जगत में तुमसा कोई,दूजा स्वीकारो हनुमान।। दीर्घकाय पर्वत से होकर,लिए शक्ति अपनी पहचान। चुका सके ऋण अनुदानों का, जीवन कर अपना बलिदान।। जो कुछ भी कर पाए उसका , नहीं कभी मन में हो दम्भ । सिंहनाद करके फौलादी,ले संकल्प किये प्रस्थान।। *सुधा त्रिपाठी* ©Sudha Tripathi #ramnavmi आल्हा छंद मुक्तक रामायण प्रसंग -जामवंत का हनुमान जी को आत्मबोध करना जामवंत कहते बजरंगी, चुप बन बैठे क्यों पाषाण। भूले हो क्य
Sundar Mohan Marndi
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Life Like दोहा:- बोलो सीता राम सब , बोलो राधेश्याम । यही जगत में सत्य है , भज ले प्यारे नाम ।। बाला जी महराज की , कृपा रहे दिन रात । अब तो उनके भक्त की , बढ़ जाये तादात ।। क्यों लड़ते हो आप अब , लव नगरी लाहौर । लेने दो हमको शरण , वो भी अपना ठौर ।। धाम अयोध्या पास में , बसा लखन पुर देख । जन-जन जपकर राम जी , बदले अपनी रेख ।। चलिये खाटूश्याम जी , जपिये राधे नाम । वही मिलेंगे आपको , अपने राधेश्याम ।। बागेश्वर के धाम में , हो प्रभु की जयकार । सत्य सनातन धर्म के , शास्त्री जी अवतार ।। काया से मत मोह कर , समझ इसे गोदाम । इसके अन्दर ही छिपे , है तेरे श्री राम ।। प्रेमा जी महराज का , सुनता नित सत्संग । जिनसे जीवन में खिला , मेरे भगवत रंग ।। तुझमें मुझमें राम हैं , मत कर ऐसे बैर । चल भगवन से माँगतें , इक दूजे की खैर ।। त्रिकुटा पर्वत पे वहाँ , माता बैठी देख । दर्शन करके हम चलो , बदले अपनी रेख ।। जय कारे महादेव के , करते रहिये आप मिट जायेंगे एक दिन ,जीवन के संताप ।। २१/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा:- बोलो सीता राम सब , बोलो राधेश्याम । यही जगत में सत्य है , भज ले प्यारे नाम ।। बाला जी महराज की , कृपा रहे दिन रात । अब तो उनके भक्त क
DM
Sarita Kumari Ravidas
इन पर्वतों में न जाने समाएं है राज़ कितने ख़ामोश से रहते हैं, पर अपने अंदर है इक गहरा समंदर छुपाए भाषा की बोली इनकी अलग सी होती अपनी शीलाओं में अपनी इक सदी छुपाते वन्य औषधियों का भंडार रखतें गर्भ में अपने। ©Sarita Kumari Ravidas #mountainsnearme ख़ामोश पर्वत
I am MiraJ
किसी भी पर्वत के शिखर को छुआ जा सकता है, बर्शते आप धैर्य और बुद्धिमानी से लगातार आगे बढ़ते चले जाएँ. ©I am MiraJ #MountainPeak पर्वत aur शिखर पर joh सुकून मिलता है.. वह ओर कही नही मिलता.. #Nojoto #viral #Trending #sukoon #Life
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
""*विचार*"" विचार कहाँ उपजाते हैं? कागज, कलम, दवात! विचार तो उपजाते हैं, कष्ट, गरीबी और अत्याचार! विचार तो उपजाते हैं, सागर, पर्वत, आकाश! विचार कहाँ उपजाते हैं? कागज, कलम, दवात! विचार तो उपजाते हैं, घायल-टूटे-बिखरे जज्बात! विचार तो उपजाते हैं, घुटन, अंतर्द्वंद्व और हृदय को पहुँचे आघात। विचार कहाँ उपजाते हैं? कागज, कलम, दवात! विचार तो उपजाते हैं, प्रेम, करुणा और दया भाव। विचार तो उपजाते हैं, प्रकृति का प्यारा संग-साथ। विचार कहाँ उपजाते हैं? कागज, कलम, दवात! विचार तो उपजाते हैं, छूटे-छूटे से घर बार। विचार तो उपजाते हैं, माटी की सोंधी-सोंधी याद। विचार कहाँ उपजाते हैं? कागज, कलम, दवात!2 ©मुखौटा A HIDDEN FEELINGS #विचार ""*विचार*"" विचार कहाँ उपजाते हैं? कागज, कलम, दवात! विचार तो उपजाते हैं, कष्ट, गरीबी और अत्याचार! विचार तो उपजात
Ankur tiwari
कुछ उड़ान अभी बाकी है छूना आसमान अभी बाकी हैं जंग जीत लूंगा मैं भी दुनियां के सभी बस खुद से जीतना मुकाम अभी बाकी हैं सब्र का बांध अभी ठहरा हुआ हैं मेरा शायद आने को कई तूफान अभी बाकी है गर रोशनाई खत्म हो गई तो खून से लिख दूंगा पर्वत सा ऊंचा होना मेरा नाम अभी बाकी हैं रास्ते ऊबड़ खाबड़ पथरीले सब पार कर लूंगा मिलना मुझे अभी कुछ आराम बाकी हैं सब पड़े हुए हैं खींचने को कदम पीछे मेरे आगे बढ़ने को मेरा स्वाभिमान अभी बाकी हैं अंजान पत्थर हूं इतना भी आसान नही तोड़ पाना मुझे सफलता का बनना हसीं मकान अभी बाकी हैं कुछ उड़ान अभी बाकी हैं छूना आसमान अभी बाकी है ©Ankur tiwari #seashore कुछ उड़ान अभी बाकी है छूना आसमान अभी बाकी हैं जंग जीत लूंगा मैं भी दुनियां के सभी बस खुद से जीतना मुकाम अभी बाकी हैं सब्र का ब