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अभिलाष द्विवेदी (अकेला ) एक अनपढ़ शायर
✍️ऐ दोस्तों ✍️ एक बार फिर उठा हूं हर बार की तरह। बढ़ गए क़दम घर से निकल पड़ा हूं मैं।। ना कर कोशिशें तू रोकने की ना,काम हो जाएगी। तस्वीर मंज़िल की दिल में बसा कर चल पड़ा हूं मैं।। जीतेगी कब तक ज़िंदगी कभी तो हरेगी मुझसे। आंखों में सपना तुझे हराने का लिए चल पड़ा हूं मैं।। देखता हूं कब तक हारता रहुंगा हालातों से मैं भी। फिर हालातों से करने मुक़ाबला निकल पड़ा हूं मैं।। होता रहूं ना,काम बे,शक पर हार मानूंगा नहीं। कि जज़्बा जीतने का दिल में लिए फिर चल पड़ा हूं मैं।। इक दिन लिख दूंगा देख लेना उस फलक पे नाम अपना। सपना सजा कर आंखों में ये चल पड़ा हूं मैं।। कि अब रुकना नहीं है बस आगे बढ़ते ही जाना है। ख़ुद से ही खाके ख़ुद की कसम चल पड़ा हूं मैं।। ©अभिलाष द्विवेदी (अकेला) जज़्बा,ए,दिल 🔥🔥🔥
नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।)
🌹क्या मार सकेगी मौत उसे , औरों के लिए जो जीता है। मिलता है जहां का प्यार उसे, औरों के जो आंसू पीता है।🌹 शेर तो शेर ही होता है, चाहे जंगल में रहे या सिंहासन पर। जय हो,शेर ए हिन्द । 🌹🙏🙏 ©नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।) # शेर ए हिन्द।
शिवा क्षत्रिय
सुना है वतन कि इबादत करनी छोड़ दी हमने, ऐसा अक्सर आवाम में कहा जाता है ! उस अवाम की बात अब कोन सुने, जिसका वक़्त वक़्त पर देखने का नज़रिया बदल जाता है ! ऐलान कर दो उन धर्म के ठेकदारों की बस्ती में हम तो वतन के प्यारे है साहिब , तभी तो हमारा इस वतन कि इबादत करने का ज़रिया हर पल बदल जाता है ! #NojotoQuote आज़ाद - ए - हिन्द
विवेक तोमर
आदरणीय राष्ट्रपति जी, देश के सैनिको की तन्खवाह दुगनी तथा अधिकारियो की तन्खवाह आधी करने का कष्ट्र करे राष्ट्र आपको सदैव याद करेगा. जय हिन्द रूह ए हिन्द का सिपाही
Nainesh Srivastava
✍ना संघर्ष ना तकलीफ तो क्या मजा है जीने में ✔ बङे बङे तूफान थम जाते हैं जब 🔥 आग लगी हो सीने में 🙏 NAINESH SRIVASTAV 🙏 # जज़्बा
Raone
जज़्बा शायद मैं थोड़ा थका हूँ, पर हारा तो नहीं हूँ । बेशक़ दूर निकलना छोड़ा हूँ, पर चलना तो नहीं छोड़ा हूँ ।। चलो माना की फ़ासले अक्सर रिश्तों में दूरियाँ कर देते हैं । पर यकीन मानों, मैं अपनों से मिलना तो नहीं छोड़ा हूँ ।। शायद ज़रा सा सहमा जरूर हूँ, पर हिम्मत भी तो नहीं छोड़ा हूँ । इन समन्दर की लहरों से क्या डरना, उफ़नाना भी तो इन्हीं से सीखा हूँ ।। माना की मंजिल अभी कोसों दूर है । पर मंजिल की ओर से रूख़ मोड़ा भी तो नहीं हूँ ।। माना बेशक़ शाम ने अंधेरा होने की दस्तक दे दी है । पर इन अंधेरों से कहना, अभी दीपक जलाना भी तो नहीं भूला हूँ ।। चलो माना ज़िन्दग़ी अभी थोड़ी नाराज़ सी चल रही है । पर ऐ ज़िन्दग़ी, तेरे साथ जीने का जज़्बा भी तो नहीं छोड़ा हूँ ।। राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी जज़्बा