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ज़ख्मी दिल
White करनी नही आती तुम्हे मोहब्बत फिर भी करते हो, पाना भी नही चाहते और खोने से डरते हो…! ©सत्यमेव जयते खोने से डरते हो…!
Arora PR
White तुम क्या समझते हो मेरी कब्र की. मिट्टी क़ो सहला कर मुझे जगा दोगे?. तुम शायद नहीं जानते कि मै अलविदा कह कर ही कब्र में.. दाखिल हुआ था क्या तुम मुझे चैन से मरने भी नहीं दोगे? भला यूँ मेरी कब्र क़ोअपने आसूओ से कब तक़ नहलाते रहोगे? ©Arora PR क्या समझते हो तुम?
krishna Kant Mishra
White *जानते हो प्रेम क्या है*.... अपने वक्त के कीमती लम्हें किसी को देना। किसी की सुन लेना। किसी की आंख से आंसूओं को चुन लेना। किसी के ज़ख्मों पर मीठे बोल के मरहम लगा देना। बिना किसी रिश्ते के बिना किसी संबंध के किसी के दर्द का एहसास होना। यहीं तो प्रेम है ! बस हम लोगों ने इसे पढ़ा ही गलत तरीके से है, पढ़ा ही गलत नियत से है। इसलिए आज प्रेम को इतनी गलत नज़रों से देखा जाता है। ऊपर वाले के बाद अगर दुनिया में कोई पवित्र चीज है तो वो है प्रेम....!! ©krishna Kant Mishra #SAD जानते हो प्रेम क्या है
Babita Singh
White बहुत कुछ कह दिया बिन सोचे हमने तेरे दिल में क्या था मेरे लिए कभी पूछा ही नहीं हमने ©Babita Singh क्या करते हो प्यार हमसे?
Palak Parmar
Men walking on dark street क्या पता, कब, कहां, कौन, क्या आखिरी हो। ©Palak Parmar #Emotional क्या पता कब कहां क्या आखिरी हो
ANIL KUMAR
तुम दूर हो भी जाओ तो क्या इश्क़ था इश्क़ है इश्क़ रहेगा _________ ©ANIL KUMAR तुम दूर हो भी जाओ तो क्या !
Shashi Bhushan Mishra
Meri Mati Mera Desh लोग पूछते खाली हो क्या, घर बैठे बदहाली हो क्या, किस्मत ने मुँह फेर लिया है, पढ़ लिख बने मवाली हो क्या, आँसू जहाँ न थमते गम के, रहते संदेशखाली हो क्या, अंधकार से हो वाबस्ता, दीपक बिना दीवाली हो क्या, खिले चाँद सा लगता चेहरा, घर आई खुशहाली हो क्या, खेत में खड़ी हरे वस्त्रों में, तुम कोई हरियाली हो क्या, रोनी सी सूरत क्यों 'गुंजन', तुम भी कोई रुदाली हो क्या, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #खाली हो क्या#
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- उस हँसी दिलरुबा से डरते हैं । खूबसूरत अदा से डरते हैं ।। प्यार आसान अब कहाँ करना । हुस्न की हर बला से डरते हैं ।। वो करेगा गुनाह फिर कैसे । जो अभी तक दफ़ा से डरते हैं ।। दिल की दुनिया हमें नहीं भाती । हर घड़ी अब सजा से डरते हैं ।। भूलकर भी ज़फ़ा नही करते । यार की बददुआ से डरते हैं । बन न जाऊँ गुलाम फिर उनका । आज अपनी वफ़ा से डरते हैं ।। मान लेते हैं बात सब उनकी । क्या करूँ बेलना से डरते हैं ।। आप तो फरिश्ते जमीं के थे । आप नाहक खुदा से डरते हैं ।। प्यार की तुम प्रखर कदर देखो । भूल में भी हुई खता से डरते हैं ।। २७/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- उस हँसी दिलरुबा से डरते हैं । खूबसूरत अदा से डरते हैं ।।