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Vrishali G

बंबई से आया मेरा दोस्त.. बप्पी लाहिरी स्पेशल #शायरी

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Rajkumar Siwachiya

गैरा की गैल बैठके ओय अपना की जड़ ना काटी भोलेनाथ ने खुब दियासै झुंपा कला की ना भूले माटी –Rajkumar Siwachiya ✍️♠️ #YaariyanZindabad rajk #writer #शायरी #Haryanvi #bhiwani #rajkumarsiwachiya #oyedesi #Loharu #JhumpaKalan #Jhumpa_Kalan

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गैरा की गैल बैठके 
ओय अपना की जड़ ना काटी
भोलेनाथ ने खुब दियासै
झुंपा कला की ना भूले माटी
- Rajkumar Siwachiya✍️♠️

©Rajkumar Siwachiya गैरा की गैल बैठके 
ओय अपना की जड़ ना काटी
भोलेनाथ ने खुब दियासै
झुंपा कला की ना भूले माटी
 –Rajkumar Siwachiya ✍️♠️

#YaariyanZindabad #rajk

Vijay Tyagi

काली घटाओ में जब बिजली चमक जाती थी कसकर मुझे मेरी बाहों में तुम सिमट जाती थी उस बर्क-ए-निशा के साथ रिमझिम बरसात चाहिए तुम्हारा प्यार चाहि #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqquotes #maasharatti #माशारत्ती

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तुम्हारा साथ चाहिए
हाथों में हाथ चाहिए
पहली नज़र में जो
आई थी नज़र
इन नज़रों में हमेशा
वही बात चाहिये
दिन के उजाले भी
तुम बिन अंधेरे
तुमसे जो रोशन हो
वही रात चाहिए
इज़हार-ए-दिल
बिन कहे भी तुम
समझ जाती हो
बस दिल के यही
जज़्बात चाहिए
मुझको हर घड़ी
दीदार चाहिए
"तुम्हारा प्यार चाहिए
मुझे जीने के लिए..."
🎸🎸🎸
 काली घटाओ में जब 
बिजली चमक जाती थी
कसकर मुझे मेरी बाहों में 
तुम सिमट जाती थी
उस बर्क-ए-निशा के साथ 
रिमझिम बरसात चाहिए
तुम्हारा प्यार चाहि

Dr Upama Singh

भारत में विभिन्न भाषा साहित्य के क्षेत्र में जिस तरह पुरुषों ने प्राचीन काल से ही उत्कृष्ट योगदान दिया है ठीक स्त्रीयों की भूमिका भी बराबर क #yqrestzone #collabwithrestzone #rzhindi #similethougths #rzसाहित्य #rzहिंदीकाव्यसम्मेलन

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     रचना नंबर – 1 
“भारतीय साहित्य में स्त्रीयों का योगदान”
          निबंध– अनुशीर्षक में       

 भारत में विभिन्न भाषा साहित्य के क्षेत्र में जिस तरह पुरुषों ने प्राचीन काल से ही उत्कृष्ट योगदान दिया है ठीक स्त्रीयों की भूमिका भी बराबर क

Nisheeth pandey

अमर क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद के जन्म दिवस पर शत् शत् नमन ----------------------------------------------------------------------- अमर द #Thoughts #ChandraShekharAzaad

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6अमर क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद के जन्म दिवस पर शत् शत् नमन
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अमर देशभक्त चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में पंडित सीताराम तिवारी और जगरानी देवी के घर में हुआ था! वाराणसी में शिक्षा ग्रहण करने के बाद वे 1920 में महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गए असहयोग आन्दोलन से जुड़ गए! 1922 में चौरी-चौरा में 22 पुलिसकर्मियों के क़त्ल के बाद गांधीजी द्वारा आन्दोलन वापिस लेने के कारण उन्हें भारी दुःख हुआ, क्यूंकि उनके मन पर जलियांवाला बाग़ हत्याकांड ने अमिट छाप छोड़ी थी!

उनका मानना था कि एक सच्चे ब्राह्मण का धर्म दूसरों के लिए लड़ना है, एक बार पुलिस द्वारा जज के सामने पेश करने पर जब पंडित जी से उनका नाम पूछा गया तो उन्होंने अपना नाम आजाद बताया और अपने पिता का नाम सवतंत्र बताया, जबकि घर का बताया जेल बताया तो जज ने भन्ना कर उन्हें 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई! क्रांतिकारी दलों से प्रभावित होकर आजाद हिंदुस्तान सोसिलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी में शामिल हो गए और पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त, राजगुरु, अशफाक उल्लाह खान, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र लाहिरी और जतिन दास आदि के साथ मिलकर उन्होंने क्रांति की एक नयी इबारत लिखी! चंद्रशेखर आजाद 1925 के काकोरी ट्रेन लूटकांड के सबसे बड़े सूत्रधार थे तो, 1926 में वायसराय की ट्रेन उड़ाने का पर्यास भी उनका ही था! लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए उन्होंने 1928 में लाहौर में अपने साथियों के साथ मिल कर सांडरस का वध कर दिया! 24 साल के अपने छोटे से जीवनकाल में आजाद ने ज्यादातर गतिविधियों का सञ्चालन यूपी के सह्जहानपुर से किया, वे नौजवान भारत सभा और कीर्ति किसान सभा से भी सक्रिय रूप से जुड़े रहे! 27 फरवरी 1931 को अपने दो साथियों से मिलने इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क पहुंचे आजाद को उनके ही एक साथी ने दगा दे दिया, आजाद को पुलिस ने चारों तरफ से घेर लिया और गोलियों की बरसात के बीच आत्मस्मर्पण करने को कहा! मगर पंडित जी खूब दिलेरी के साथ लडे और जब गोलियां ख़त्म हो गयी तो आखिरी गोली से अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली! क्यूंकि उनका मानना था कि :

“दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं और आजाद ही रहें

©Nisheeth pandey अमर क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद के जन्म दिवस पर शत् शत् नमन
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