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हरीश वर्मा हरी बेचैन
पावर आफ नेटवर्क का.. जलवा बताते है.. पकड़ कर कोई मुर्गा! बेचते हैं उत्पात!! मिल कर समूह में.. सपने दिखाते हैं!! चैन चलाकर दो धारी! कुछ चलाक वरिष्ठ.. भाग्यशाली मौका परस्त! लखपति करोड़पती.. बन ठन दिखाते हैं! लालच में बी एम डब्लू.. विदेश की यात्रा का.. सुन्दर सा ख्वाब दिखाते हैं! बनते है कोई कोई.. गोल्ड स्टार और सिल्वर! एक धारा ही अक्सर.. ज्वाइन करा पाते है ! पे आउट में झुनझुना पाते है! बेरोजगार का भयानक.. तस्वीर दिखाते हैं!! बिचौलियों को हटाकर.. डायरेक्ट सेलिंग का.. राह दिखाते हैं!! सब कुछ नेट से ही होगा! श्रम और कर्म से.. सब का ध्यान हटाते है!! छलिया मकड़ी का.. जाल बिछाते हैं! हरी जाल बिछाते हैं!! 😞😞😞😞🙏✍️ हरीश वर्मा हरी बेचैन 8840812718 पावर आफ नेटवर्क का.. जलवा बताते है.. पकड़ कर कोई मुर्गा! बेचते हैं उत्पात!! मिल कर समूह में.. सपने दिखाते हैं!! चैन चलाकर दो धारी! कुछ चलाक
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
विधा , गीत *{सरसी छन्द}* बचपन के वह खेल पुराने ,आते हैं अब याद । नहीं काम की चिंता कोई , रहते थे आजाद ।। बचपन के वह खेल पुराने ......, बचपन में रिश्तों का मतलब, खाना मिलता खास । बब्लू डब्लू रंजन दीपू , के हम होते पास ।। वह छुपा छुपाई खो खो के , साथी थे उस्ताद । सुन लेते थे बातें सबकी , मगर खेल के बाद ।। बचपन के वह खेल पुराने , आते हैं अब याद... सुबह शाम की होती वर्जिश , घर के करके काम । भूले रहते मास्टर जी के , दिए मैथ के काम । जाने कैसे मुर्गा बोले , कैसा मिले प्रसाद । फिर तो नानी मौसी भी कल ,आ जायेंगी याद ।। बचपन के वह खेल पुराने , आते हैं जब याद .....।। नहीं काम की चिंता कोई , रहते थे आजाद .....।। बचपन के वह खेल पुराने आते हैं अब याद ....।। २६/०७/२०२२ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चित्र चिंतन , विधा , गीत *{सरसी छन्द}* बचपन के वह खेल पुराने ,आते हैं अब याद । नहीं काम की चिंता कोई , रहते थे आजाद ।। बचपन के वह खेल पुर
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- जो रिश्तों का इस दुनिया में आज तमाशा करता है । मतलब आने पर वह ही अब देखो वादा करता है ।।१ बस मीठी बातें करता है वक़्त पे काम नहीं आता अपने पन का स्वाँग रचाकर कैसा दावा करता है ।।२ भूल गया क्या वह भी हमको अब दुनिया की बातों में । भूले बिसरे जो दिल को अक्सर बहलाया करता है ।।३ इंसानों की बस्ती में इक पत्थर जैसा शख़्स मिला। उससे क्या उम्मीद करें जो देख किनारा करता है ।।४ मातु-पिता का सुत जीवन में बस एक सहारा होता । जो बीवी के एक इशारे पर अब नाचा करता है ।।५ खत्म हुई अब रस्म पुरानी घूंघट आज उठाने की । जेठ ससुर के आगे चेहरा कौन छुपाया करता है ।।६ ऐ जी ओ जी की रीति नही नाम लियो सीधे पी का । डब्लू के पापा सुन लो अब कौन पुकारा करता है ।।७ रूठे हमदम से कह कोई लौट के जल्दी आ जाओ उनकी गलियाँ आज प्रखर देख निहारा करता है ।।८ २५/०९/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- जो रिश्तों का इस दुनिया में आज तमाशा करता है । मतलब आने पर वह ही अब देखो वादा करता है ।।१
Ravendra
Ravendra
AB
Dear Chikku Gujju Shukla,! - ' alps ' Dedicating a #testimonial to उज्वला शुक्ला🖤. Dear Chikku Gujju Shukla,!💚 Happy Shappy bday Dear,,🍼🍼🍼🍼🍼 पूरी पांच बोतलें हैं, दो दो घंटे बा
Ravendra
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