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Praveen Jain "पल्लव"
साहित्य पल्लव की डायरी समाज और देश का चरित्र बनकर दर्पण में उभरता है हल चलो का चलन कवि रचनाओं में उकेरता है जब जब पथ भृष्ट समाज होता है कबीर निराला का दिल कविताओं में रोता है सत्ताओ का चरित्र शोषण करता है तब तब कलमो का लेखन चुनोती पूर्ण होता है तलवारों की ताकत कलमे रखती है कितने औहदे ऊँचे हो नेस्तनाबूद करती है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" तलवारों की ताकत कलमे रखती है #WForWriters #पल्लव_की_डायरी
Tashan Raj
Ashi Saxena
सुनो रंगत-ए-ईश्क़ से भरी हुई है ग़ालिब की कलमें, शायद ज़ुनून-ए-ईश्क़-ए-फ़रवरी शुरू हो चुका है! सुनो रंगत-ए-ईश्क़ से भरी हुई है ग़ालिब की कलमें, शायद ज़ुनून-ए-ईश्क़-ए-फ़रवरी शुरू होने वाला है!
Prem Nirala
उसपे गुस्सा करना भी अपना एक इश्क़ हैं, कलमें सिर्फ मोहब्बत ही नहीं, नफ़रत भी लिखा करती हैं, लेकिन वो भी लेहज़े में रेहकर एक सिद्दत से! prem_nirala_ उसपे गुस्सा करना भी अपना एक इश्क़ हैं, कलमें सिर्फ मोहब्बत ही नहीं, नफ़रत भी लिखा करती हैं, लेकिन वो भी लेहज़े में रेहकर एक सिद्दत से! #pre
अम्बुज बाजपेई"शिवम्"
मैं दीदार-ए-चांद में रातें ज़ाया करुंगा, भले वो रात अमावस की और अंधेरा हो तो हो। तेरे इश्क के कलमें मैं सबको सुनाऊंगा, भले ज़माने को बुरा लग जाए और बखेड़ा हो तो हो। मैं आंखें बंद रख कर तेरे ही ख्वाब देखूं बस, भले दिन चढ़ जाए और सवेरा हो तो हो। तेरे होने की खुशी तेरे न होने गम से कहीं बढ़कर है, भले कुछ पल को ही सही मगर मेरा हो तो मेरा हो। ©अम्बुज बाजपेई"शिवम्" मैं दीदार-ए-चांद में रातें ज़ाया करुंगा, भले वो रात अमावस की और अंधेरा हो तो हो। तेरे इश्क के कलमें मैं सबको सुनाऊंगा, भले ज़माने को बुरा लग
Shree
वो अपने हुस्न, अपनी आरज़ू, अपनी आबरू, लपेटे लिहाज, समेटे लिहाफ में अपनी जिंदगानी अंजुलि में भर, कलमें पढ़ते उम्र भर!! तू गुनहगार सा, ढ़ूंढे पाक़ जिस्म पर लगे निशान बस, उसके नादान मन को कुरेद कर नए-नए लफ़्ज़ों में सुनाता क़ज़ा तू बिन जुर्म के, बनता है ख़ुदा!! मुहब्बत की कीमत वो अदा करने वाले चुकाते रहे, तेरी दगा को अपने ज़हन में दबाए, हर्फ-हर्फ लब पे सज़दा तेरा ही लिए लुटते फ़िर रहे इस मगरुर ज़माने में!! ~क़ज़ा~ वो अपने हुस्न, अपनी आरज़ू, अपनी आबरू, लपेटे लिहाज, समेटे लिहाफ में अपनी जिंदगानी अंजुलि में भर, कलमें पढ़ते उम्र भर!! तू गुनहगार सा
ABHISHEK SWASTIK
ऐसे ही मिल जाए सच्ची मोहब्बत तो मोहब्बत कहां थी जनाब इश्क़ के अजूबे सफ़र में थोड़ा वक्त लगता है । चलते रहे दरिया के किनारे, और ख्वाइश मंजिल की थी, इश्क़ के गहरे समंदर में डूबना तो पड़ता है। पूरी नहीं हुई रस्म-ए-मोहब्बत तो कहते हैं ज़माने ने बगावत की, अरे नादान, इस कलमे को समझने में थोड़ा जुल्म तो सहना पड़ता है। नाम कितने गिनाऊं इश्क़ के सितारों के-2 लैला मजनू, हीर रांझा, देव पारो के कमबख्त इस दुनियां में ज़माने से लड़ना पड़ता है मुकम्मल इश्क़ सजाने में हद से गुजरना पड़ता है ।। -©अभिषेक अस्थाना (स्वास्तिक) ऐसे ही मिल जाए सच्ची मोहब्बत तो मोहब्बत कहां थी जनाब इश्क़ के अजूबे सफ़र में थोड़ा वक्त लगता है । चलते रहे दरिया के किनारे, और ख्वाइश मंजिल
Abhishek Asthana
ऐसे ही मिल जाए सच्ची मोहब्बत तो मोहब्बत कहां थी जनाब इश्क़ के अजूबे सफ़र में थोड़ा वक्त लगता है । चलते रहे दरिया के किनारे, और ख्वाइश मंजिल की थी, इश्क़ के गहरे समंदर में डूबना तो पड़ता है। पूरी नहीं हुई रस्म-ए-मोहब्बत तो कहते हैं ज़माने ने बगावत की, अरे नादान, इस कलमे को समझने में थोड़ा जुल्म तो सहना पड़ता है। नाम कितने गिनाऊं इश्क़ के सितारों के-2 लैला मजनू, हीर रांझा, देव पारो के कमबख्त इस दुनियां में ज़माने से लड़ना पड़ता है मुकम्मल इश्क़ सजाने में हद से गुजरना पड़ता है ।। -©अभिषेक अस्थाना (स्वास्तिक) ऐसे ही मिल जाए सच्ची मोहब्बत तो मोहब्बत कहां थी जनाब इश्क़ के अजूबे सफ़र में थोड़ा वक्त लगता है । चलते रहे दरिया के किनारे, और ख्वाइश मंजिल
Adv Sandeep Saini
गीत नया सुनाता हूँ गीत नया सुनाता हूँ किताबो में अपनी नींद-चैन ग्वाँता हूँ नही मेरे पास पैसा, मैं हूँ बेकार नौकरी की चाह में घिसता हूँ कलमें बार-बार वैकेन्स