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Payal Dholakia

हिज्र की ऊंची दीवारें।💛 #yqhindi #yqbaba

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बेफिक्री राहों में
नादान सी ये
ख्वाहीशों को साथ लिए
हिज्र की मुंतजिर हूं
अब्र का टुकड़ा हैं सपनों से भरा,
आखिर कब तक
कितनों पे बरसे?
ना जाने क्युं,
फासलों में ही अपनापन ढूंढना
अब आदत सी हो गई हैं
शायद,
तन्हाइयों की खामोशियों को
हमसे लगाव हो गया है
बेशक,
जूनुन से सुकून मिले
फिर भी,
हर हर्फ तन्हा सा हैं
जैसे,
कोई नज्म़
कोरे कागज़ पर अनलिखी हो,
और भुली भी नहीं जाती
ऐसी दास्तान अधूरी होकर भी,
अपनेआप में ही मुकम्मल हैं
एक अधूरे फसाने की तरह,
एक अनकही नज्म़ की तरह।
सिर्फ एक नगमा हैं,
प्यार का।
 हिज्र की ऊंची दीवारें।💛
#Yqhindi #Yqbaba

VIKAS" VKB #DEARJINDAGI

# दीवारें बोलती है #Life_experience

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मैंने खड़ी दीवार की
कि सोचा बनाऊ मैं घर अपना,
उसने खड़ी दीवार की
कि बढ़ सके दुरियाँ अपना, # दीवारें बोलती है

Sourabh Sengar

दीवारें बोलती है। #Music

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दीवारें खुद बयाँ करती हैं के हाल-ऐ-बारिश क्या है,ये मुझसे पूँछती हैं के बता तेरी ख्वाहिश क्या है,मैं बोला तुझे दुल्हन सा सजाने की तमन्ना है मेरी,तो कहती है सजा लो न गुज़ारिश क्या है।  स्वरचित/by-scary love दीवारें बोलती है।

Pooja Dhiman

दीवारें कहती है 🧡 #Shayari

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मैं भी एक स्त्री की तरह हूं,अगर मुझमें दरारें दिखे तो उनमें झांकना मत,हो सकें तो उन्हें भरने की कोशिश करना

©Pooja Dhiman दीवारें कहती है 🧡

mau jha

दीवारें कहती हैकहानी #Quotes

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मैं इस दीवार पर चढ़ तो गयी थी
उतारे कौन अब दीवार पर से

©mau jha दीवारें कहती है#कहानी

APNI_SHAYRI

दीवारें कहती है ..... #Shayar Shayari #शायरी

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मुझे भी शामिल कर लो गुनहगारों की महफिल में , 
मैंने भी अपनी ख्वाहिशों को मारा है

©YAMRAJ दीवारें कहती है ..... 
#Shayar #Shayari

Vijay Kumar उपनाम-"साखी"

ऊंची-ऊंची इमारते #City #कविता

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"ये ऊंची-ऊंची इमारतें"
ये शहरों की ऊंची-ऊंची,इमारतें
बता रही जनसंख्या के आंकड़े
गर अब भी हम लोग न सम्भले
बहुत जल्द होंगे बड़े-बड़े हादसे

कम चीजों से ज्यादा की चाहते
इससे हो रही,हादसों की आहटें
बढ़ रहा,भूमि पर अतिरिक्त बोझ
कत्ल हो रहे,नित ही,भू कालजे

बिगड़ रहा,पारिस्थिकी संतुलन
मनुष्य का बहुत बिगड़ गया,मन
बहुत बढ़े,प्रकृति छेड़छाड़ मामले
कुल्हाड़ी,पांवों पर खुद ही मार रहे

ये शहरों की ऊंची-ऊंची,इमारतें
मिटा रही गांवों की मासूमियतें
फूल दब रहे है,पत्थरो के तले
बहुत बिगड़ गई,हमारी आदतें

गर वक्त रहते हम लोग न सुधरे
बढ़ी जनसंख्या,पार करेंगी हदें
भुखमरी से बढ़ेगी,इतनी मौतें
एक आम खाने,मरेंगे सो-सो जने

प्रकृति से जो गर छोड़ेंगे जड़ें
फिर तो हम सूखकर ऐसे मरेंगे,
जैसे जेठ दुपहरी में बदन जले
व्यर्थ की आधुनिकता छोड़ चले

जो भी कार्य प्रकृति को हानि दे
वो कार्य हम लोग कभी न करे
जितना हम प्रकृति से जुड़ सके,
वो कार्य हम लोग अवश्य ही करे

प्रकृति मां की गोद मे सोने चले
ओर अपने सारे ही गम भूल चले
ये ज़माने की ऊंची-ऊंची इमारतें
आज तक कोई संग लेकर न चले

जिओ-जीने दो,सिद्धांत पर चले
ओर निःस्वार्थ कर्म करते हुए चले
जिसने जिंदादिली के जलाये दीये
उस रोशनी से,तम जगमगाने लगे
दिल से विजय
विजय कुमार पाराशर-"साखी"

©Vijay Kumar उपनाम-"साखी" ऊंची-ऊंची इमारते

#City

Girraj Mehra

दीवारें #शायरी

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कि होश हकीकत में उनसे हमारी नजरें मिल गई थी 2
उनके पास पहुंची तो पहले से ही दिवारी जल गई थी। कोसते रहे हम हमारे नसीब को मगर वह तो पहले से ही किसी और की हो चुकी थी।

©Girraj Mehra दीवारें

alka mishra

बेशक होतें हम बेजान 
मगर ये सच कहा किसी ने
की होतें हैं हमारे कान 
अगर आये न यकीन
तो देख लो जाकर तुम
खंडहर हुए मकान
टूटी हुई दरों-दीवारों ने
 सहेजी हैं करोड़ों दास्तान
जिसे इतिहास कहता जहान।
©अलका मिश्रा

©alka mishra #दीवारें

Sonya Sharma

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